मत्स्य निदेशालय की सराहनीय पहल, झारखंड के जलाशयों में महाझींगा संचयन से जनजातीय समुदायों की आजीविका में सुधार सम्बन्धी परियोजना का शुभारम्भ
Jharkhand news, Ranchi news, Fisheries in Jharkhand: मत्स्य विभाग, झारखंड सरकार व केंद्रीय अन्तस्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सीआईएफआर आई) बैरकपुर के द्वारा एक दिवसीय झारखण्ड के जलाशयों में महाझींगा संचयन के माध्यम से जनजातीय समुदायों की आजीवका में सुधार के लिये एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर आईसीएआरआई/सीआईएफआर आई के प्रधान वैज्ञानिक डॉ एके दास तथा उनके दो सहयगी मत्स्य विभाग के वरीय पदाधिकारी तथा कर्मचारी उपस्थित थे। कार्यक्रम का उद्घाटन निदेशक मत्स्य डॉ एचएन द्विवेदी द्वारा किया गया। डायरेक्टर आइसीएफआर आई के द्वारा विडीयो कॉफेसिंग के माध्यम से इस कार्यक्रम को सम्बोधित किया गया। मत्स्य विभाग, झारखण्ड सरकार द्वारा प्रायोजित एवं आईसीएआर व आईसीएफआर आई द्वारा संचालित राज्य के जलशयों में तीन वर्षीय परियोजना प्रारम्भ की गयी है, जिसका उद्देश्य झींगा मछली की शिकारमाही कर जनजातियों समुदायों की अजीवीका में सुधार करना तथा उनकी आर्थिक स्थिति को सुदृढ करना है।
परियोजना का संचालन आईसीएआर, सीएफआरआई बैरकपुर द्वारा किया जा रहा है
इस परियोजना का संचालन आईसीएआर, सीएफआरआई बैरकपुर द्वारा किया जा रहा है। इस परियोजना को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में झारखण्ड के तीन जलाशयों में यथा सिमडेगा के कलाधाच जलाशय, गुमला का मसलिया जलाशय तथा हजारीबाग का घाघरा जलाशय का चयन किया गया है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. एके दास द्वारा बताया गया कि झारखण्ड के जलाशयों की भौगोलिक स्थिति झींगा पालन के लिए अनुकुल है तथा झींगा पालन कर किसानों की आय दोगुनी हो सकती है। झींगा बीज के संचयन के उपरान्त 3-4 माह तक शिकारमाही नहीं करना है, क्योंकि 3 से 4 महीने में अनुमानित वजन 100 150 ग्राम जाता है।
फायदा यहां के जनजातीय भाई – बहनों को
निदेशक मत्स्य झारखण्ड डॉ. एचएन द्विवेदी द्वारा बताया गया कि इस परियोजना द्वारा झारखण्ड में मछली पालन के क्षेत्र में एक नया अध्याय प्रारम्भ किया जा रहा है, जिसका फायदा यहां के जनजातीय मत्स्य, भाई-बहनों को मिलेगा। इस परियोजना की सफलता की पहली सीढ़ी यह है कि जो झींगा के बीजो का संचयन किया गया है, उनके रख-रखाव पर ध्यान रखें, जिसके लिए किसानों को गोष्ठी के माध्यम से जानकारी दी जायेगी। तेलगाना, महाराष्ट्रा जैसे राज्यों में झींगा की खेती की जा रही है ठीक उसी तरह झारखण्ड में भी झींगा के पैदावार को बढ़ाना है। उन्होंने इस कार्यक्रम की सफलता तथा आगे बढ़ने के लिए आइसीएफआर आई/सीएफआरआई बैरकपुर को वैज्ञानिकों को धन्यवाद दिया। कुल मिला कर इस परियोजना की सफलता से ही किसानों को फायदा होगा तथा भविष्य में झारखण्ड के अन्य जलाशयों मत्स्य समृद्धि के लिए कार्य किया जा सकेगा।
झारखण्ड में छोटे और मध्यम आकार के जलाशय काफी संख्या में है, जहां झींगे की खेती की प्रबल सम्भावना है
संयुक्त मत्स्य निदेशक मनोज कुमार द्वारा बताया गया कि जलाशय एक स्लीपिंग जंट है। झारखण्ड में छोटे तथा मध्यम आकार के जलाशय काफी संख्या में है, जहां झींगे की खेती की प्रबल सम्भावना है तथा कम समय में झारखण्ड राज्य के किसान कम समय में अधिक मुनाफा कमा सकते है। झींगो के प्राकृतिक आवास जैसे जलीय पठारी जमीन तथा पत्थरों आदि के होने के कारण झींगा उत्पादन के लिए अनुकूल है। झींगा पकड़ने की तकनीक के लिये बैरकपुर से सहयोग करने की अपील किया गया। निदेशक द्वारा बताया गया कि इस परियोजना के द्वारा झारखण्ड नीली क्रांति में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करेगा। जिस तरह से झारखण्ड का कंज कल्चर में पूरे देश में नाम है, उसी प्रकार झींगा पालन में भी अपनी पहचान बनाये। उनके द्वारा इस परियोना की सफलता की कमना की गयी। हजारीबाग से आये मत्स्य किसान चन्द्र गंझू द्वारा बताया गया कि झींगा संचयन के उपरान्त हम झींगा को प्रतिदिन शाम में फीड दे रहे है। इसके अलावा गुमला तथा सिमडेगा के संतोष उरांव और निरंतर तिर्की ने अपना अनुभव को साझा किया। इस कार्यक्रम में उप मत्स्य निदेशक अमरेन्द्र कुमार, संजय कुमार गुप्ता शंभु प्रसाद यादव, मरियम मुर्मू साथ-साथ जिला मत्स्य पदाधिकारी प्रदीप कुमार, कुसुमलता, नवराजन तिर्की, अरूप कुमार चौधरी द्वारा अपना वक्तव्य से सभी किसानों का मार्गदर्शन किया। साथ ही, वीडियो कॉफ्रेंसिंग के माध्यम से डॉ. राजू बैठा, सहायक अनुदेषक द्वारा भी किसानों को सम्बोधित किया गया। मंच संचालन अजय कुमार पण्डेय तथा मुकेश राम के द्वारा किया गया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. एके दास द्वारा किया गया। उन्होंने आश्वासन दिया कि झारखंड को झींगा पालन में एक नयी ऊंचाई पर ले जायेंगे।