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: कालाजार उन्मूलन के लिए झारखंड में किये जा रहे समन्वित प्रयास के बेहतर नतीजे आ रहे हैं। राज्य के चार जिले पाकुड़, साहिबगंज, दुमका व गोड्डा कालाजार से प्रभावित हैं। इनमें पाकुड़ में अपेक्षाकृत अधिक मामले मिलते हैं, पर लगातार इस बीमारी के नियंत्रण के लिए चलाये जा रहे अभियान के कारण यह सम्भावना बनती दिख रही है कि इस साल झारखंड कालाजार से उन्मूलित हो जाये।
झारखंड में वेक्टर बोर्न डिजिज के स्टेट प्रोग्राम ऑफिसर वीरेंद्र कुमार सिंह के अनुसार, सिर्फ पाकुड़ जिला का लिट्टीपाड़ा एक ऐसा ब्लॉक है, जहां प्रति 10 हजार की आबादी पर एक केस अभी भी मिल रहा है। कुछ प्रखंड में प्रति दस हजार की आबादी पर केस की संख्या 0.90 या 0.86 है। उन्होंने कहा कि स्थिति में सुधार हो रहा है और हमलोग आशान्वित हैं। स्वास्थ्य केंद्र व अस्पतालों में कालाजार से संबंधित सभी दवाइयां उपलब्ध हैं और स्वास्थ्य कार्यकर्ता लगातार काम कर रहे हैं। झारखंड कालाजार उन्मूलन की दिशा में स्थानीय ग्राम प्रधान, परगनैत के सहयोग और सहिया, समूह की दीदियों व स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की मदद से आगे बढ़ रहा है।
बीमारी को लेकर काफी जागरूकता आयी है
लिट्टीपाड़ा के परगनैत चुटार किस्कू कहते हैं, पाकुड़ जिले में छह ब्लॉक हैं। महीने में एक दिन हर ब्लॉक में और उसके बाद जिले के स्तर पर हमलोग प्रधान व परगनैत की बैठक करते हैं। उसमें भी हमलोग कालाजार के नियंत्रण व उन्मूलन प्रयासों की चर्चा व समीक्षा करते हैं। हम बैठक में अलग- अलग क्षेत्र के प्रधान से पूछते हैं कि क्या उनके यहां कोई केस है या उसको लेकर किस तरह का अभियान चल रहा है। उन्होंने कहा कि अभी यह बीमारी काफी नियंत्रण में है। वहीं, हिरणपुर ब्लॉक के दराजमाथ के प्रधान जय शिव ने कहा कि हमारे यहां कालाजार नियंत्रण के लिए प्रभावी काम हो रहा है। आंगनबाड़ी व ग्रुप की दीदियों की मदद से महिलाओं में भी बीमारी को लेकर काफी जागरूकता आयी है।
सर्वे में पता चला स्थिति नियंत्रण में है
पाकुड़ के हिरणपुर ब्लॉक के शिवनगर की सहिया बेबी किस्कू कहती हैं कि हमने 15 दिनों का अभियान चला कर सर्वे कर लिया है और स्थिति नियंत्रण में है। उन्होंने कहा कि मेरे सर्वे में एक बुखार का मरीज मिला था, उसकी जांच अस्पताल में करायी गयी, वह कालाजार से पीड़ित नहीं था और बुखार भी ठीक हो गया। वह कहती हैं कि अब महिलाएं भी इस बीमारी के लेकर जागरूक हो गयी हैं और वे इसके होने की वजह और इससे बचाव के उपाय को जानने लगी हैं।
पाकुड़ के डीएमओ, वेक्टर बोर्न डिजिज डॉ. केके सिंह ने कहा कि हम इस साल कालाजार के उन्मूलन (एलिमिनेशन) का पूरा प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ज्यादातर ब्लॉक में यह बीमारी नियंत्रण में है और लिट्टीपाड़ा और अमड़ापाड़ा ब्लॉक पर हमारी विशेष नजर है। पाकुड़ में कालाजार बीमारी के कंसलटेंट राजू के अनुसार, लिट्टीपाड़ा, अमड़ापाड़ा और हिरणपुर ब्लॉक पर हमलोग ध्यान केन्द्रित कर काम कर रहे हैं।
पाकुड़ में 31 अगस्त तक वीएल के 50 केस मिले
पाकुड़ में वर्ष 2023 में 31 अगस्त तक वीएल के 50 केस मिले, जबकि पिछले साल यानी 2022 में इसी समय अवधि यानी अगस्त तक 49 केस मिले थे। वहीं, इस साल 31 अगस्त तक पीकेडीएल (पोस्ट कालाजार डर्मल लिशमैनियासिस) के 32 केस मिले हैं, जबकि पिछले साल 42 केस मिले थे। वर्ष 2022 में पाकुड़ जिले में वीएल के कुल 64 और पीकेडीएल के भी कुल 64 केस मिले थे।
कालाजार नियंत्रण के लिए साल में छह बार एक्टिव सर्च अभियान चलाया जाता है, जिसमें सहिया व एमडीडब्ल्यू (मल्टी पर्पस वर्कर) घर-घर जाकर रोगी की पहचान करते हैं। इसके साथ साल में दो बार आइआरएस छिड़काव किया जाता है। एक बार फरवरी-मार्च में और दूसरी बार अगस्त-सितम्बर में। यह 45 दिनों का अभियान होता है।
पांच अक्टूबर से फिर 20 दिनों का एक्टिव सर्च अभियान जिले में चलाया जायेगा, जिसमें सहिया व एमपीडब्ल्यू कालाजार बुखार के लक्षण वाले रोगियों की पहचान करेंगे। इसके साथ ही इस बीमारी के तीव्र संक्रमण की संभावना वाले गांवों में विशेष सर्च अभियान चलाया जाता है, जिसमें सिर्फ एफपीडब्ल्यू शामिल होते हैं। ये ऐसे गांव होते हैं, जहां कालाजार संक्रमण की अधिक सम्भावना मिलती है।