Jharkhand News, Ranchi news : सामान्य तौर पर एक जिलाधिकारी और उनसे ऊपर बढ़ें तो आयुक्त, सचिव आदि अफसरों के पास उनके लाव लश्कर की लंबी-चौड़ी फौज होती है। पदभार संभालते ही उनकी प्राथमिकताएं बदल जाती हैं। कई मामलों में शान ओ शौकत के वशीभूत ये अफसर आते ही गाड़ियां बदल लेते हैं। लाखों रुपए गृह सज्जा पर फूंक डालते हैं, वह भी सरकारी खर्च पर। परंतु आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे झारखंड के नये राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन इन सबसे अलग हैं। आपको बता दें, इन्होंने फिजूलखर्ची के नाम पर राजभवन के करोड़ों रुपए बचा डाले हैं। और तो और इनकी सादगी की बात करें तो महामहिम को जूता पहनाना अर्दलियों की खास आदत रही है। लेकिन राधाकृष्णन ने आते ही सख्त आदेश जारी कर दिया है कि अगर किसी ने उनका जूता उठाया तो सस्पेंड कर दिए जाएंगे। आइए राज्यपाल की सोच और उनके जीने के अंदाज पर गौर फरमाएं…
पत्नी के आने-जाने का खर्च खुद करते हैं वहन, उन्हें लाने को कोई लाव लश्कर भी नहीं होता
सीपी राधाकृष्णन की बात करें तो उन्होंने फिजूलखर्ची पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। नतीजतन राजभवन और राज्यपाल के नाम और उनकी शान ओ शौकत पर खर्च लगभग 75 प्रतिशत तक घट गया है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि ज्यादातर चेन्नई में रहनेवाली उनकी पत्नी अथवा उनके परिवार के किसी भी सदस्य को झारखंड आना होता है तो उनकी हवाई यात्रा का खर्च राज्यपाल खुद उठाते हैं। यहां तक कि एयरपोर्ट से उन्हें लाने के लिए कोई स्कॉट नहीं होता, सिर्फ एक गाड़ी भेजी जाती है।
मोबाइल तक का खर्च खुद करते हैं वहन, पीए भी नहीं
झारखंड के नए राज्यपाल अपने मोबाइल का खर्च भी खुद के वेतन से वहन करते हैं। हाल ही में उन्होंने राजभवन में तीन दिनों का धार्मिक अनुष्ठान किया था। इसके लिए भी उन्होंने सरकारी पैसे का उपयोग नहीं किया, बल्कि खुद 10 हजार रुपए देकर सामान मंगवाया। पूर्व राज्यपाल रमेश बैस ने को-टर्मिनस के आधार पर अलग-अलग काम के लिए जहां डेढ़ दर्जन निजी कर्मचारी रखे थे और इन सभी कर्मचारियों के वेतन का भुगतान सरकारी कोष से होता था। वहीं, वर्तमान राज्यपाल ने अब तक अपना पीए तक नहीं रखा है।
एकेडमिक एडवाइजर भी ऐसा, जिसे कोई वेतन नहीं
आपको बता दें कि सीपी राधाकृष्णन ने हाल ही में बालागुरु स्वामी को अपना एकेडमिक एडवाइजर नियुक्त किया है। कई विश्वविद्यालयों के वीसी, यूपीएससी के सदस्य और शिक्षा क्षेत्र में कई अहम पदों पर रह चुके बालागुुरु इसके लिए कोई वेतन नहीं लेंगे। उन्होंने बस इतना कहा है कि वे सलाह देने या विश्वविद्यालयों का निरीक्षण करने जब भी रांची आएंगे, उनके लिए सिर्फ एक गाड़ी और रहने-खाने की व्यवस्था करा दी जाए।