Nitish never got majority on his own in Bihar, yet remained Chief Minister for the longest period, Bihar news, Patna news, Nitish Kumar, Bihar politics : जनता दल यूनाइटेड सुप्रीमो नीतीश कुमार ने स्वयं को एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित किया है, जिन्होंने अब तक बिहार में सबसे ज्यादा समय तक बिहार में मुख्यमंत्री के पद पर रहे। लेकिन उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड कभी भी अपने बल पर बहुमत हासिल नहीं कर पाई। इस उपलब्धि के पीछे छिपा हुआ तथ्य और उनका राजनीतिक कौशल यह है कि नीतीश कुमार कभी भी अपने सहयोगियों के साथ सहज नहीं रहे। इस कारण उन्हें शासन के लिए कई बार साझेदार बदलने पड़े। इस बाबत कांग्रेस के नेता अजीत शर्मा ने कहा, ‘‘जितनी बार नीतीश कुमार ने भाजपा संग गठबंधन किया, साथ छोड़ा और फिर से गठबंधन किया, उसके लिए उनका नाम ‘गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ में दर्ज होने लायक है।’’
पाला बदलने के कारण पलटू राम कहे जाने लगे
शर्मा ने वर्ष 2013 में नीतीश के भाजपा से नाता तोड़ने के बाद की गई उनकी उस टिप्पणी का भी जिक्र किया, जिसमें नीतीश ने कहा था, ‘‘मिट्टी में मिल जाएंगे, मगर भाजपा के साथ नहीं जाएंगे।’’ इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि अपने चार दशकों के राजनीतिक करियर में ‘‘अवसरवादिता’’ का आरोप और ‘‘पलटू राम’’ जैसे नामों के साथ नीतीश पर तंज कसा जाता रहा। हालांकि, उनके ऐसे प्रशंसकों की भी कमी नहीं है जो उन्हें भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से दूर रहने और धार्मिक बहुसंख्यकवाद के आगे कभी नहीं झुकने वाला नेता करार देते रहे।
नीतीश ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की
एक मार्च, 1951 को पटना के बाहरी इलाके बख्तियारपुर में एक आयुर्वेदिक चिकित्सक-सह-स्वतंत्रता सेनानी के घर जन्मे नीतीश ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। पटना के बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज (अब राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान) से पढ़ाई करने के समय नीतीश छात्र राजनीति में आए और ‘जेपी आंदोलन’ से जुड़े। इस आंदोलन में शामिल लालू प्रसाद और सुशील कुमार मोदी सहित अपने कई सहयोगियों से उनकी नजदीकी बढ़ी। फिर वह पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष और महासचिव बने।
नीतीश को पहली चुनावी सफलता 1985 में मिली
नीतीश को पहली चुनावी सफलता 1985 के विधानसभा चुनाव में मिली, जिसमें कांग्रेस ने शानदार जीत हासिल की थी। हालांकि वह लोकदल के लिए हरनौत सीट जीतने में कामयाब रहे। पांच साल बाद, वह बाढ़ सीट (अब यह सीट समाप्त कर दी गई) से सांसद चुने गए। जब मंडल लहर अपने चरम पर थी और प्रसाद इसका लाभ उठा रहे थे, नीतीश ने जॉर्ज फर्नांडीस के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई, जो बाद में जनता दल यूनाइटेड में तब्दील हो गई। जदयू ने भाजपा के साथ केंद्र में सत्ता साझा की और, फिर 2005 से राज्य में सत्ता संभाली। मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश के पहले पांच वर्षों को उनके आलोचकों द्वारा भी प्रशंसा के साथ याद किया जाता है क्योंकि नीतीश ने बिहार में कानून और व्यवस्था को मजबूत किया, जो आपराधिक घटनाओं और फिरौती के वास्ते अपहरण के लिए अक्सर चर्चा रहता था।
नीतीश का निर्णय यादवों को नागवार गुजरा
मंडल आयोग की लहर में उभरे कुर्मी नेता को यह भी एहसास हुआ कि वह बहुत ज्यादा आबादी वाली जाति से संबंध नहीं रखते। इसके बाद उन्होंने ओबीसी और दलितों के बीच उप-कोटा बनाया, जिन्हें ‘‘अति पिछड़ा’’ और महादलित कहा गया। उनका यह निर्णय प्रमुख जाति समूहों – यादव और पासवान के समर्थकों को नागवार गुजरा। नीतीश सरकार ने हाल ही में सभी वंचित वर्गों के लिए कोटा बढ़ा दिया है, जिससे उन्हें उम्मीद है कि इस कदम से उनकी पार्टी को चुनावी बढ़त मिलेगी। उन्होंने ‘‘पसमांदा’’ मुसलमानों को भी संरक्षण दिया, जिसके चलते उनकी भाजपा के साथ संबंधों के बावजूद अल्पसंख्यक समुदाय में भी पैठ बनी।
साल 2013 में भाजपा से अलग हो गए
साल 2013 में भाजपा से अलग होने के बाद भी नीतीश सत्ता में बने रहे, क्योंकि उस समय बहुमत के आंकड़े से कुछ ही सदस्य कम रही जदयू को राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के असंतुष्ट गुट के अलावा कांग्रेस और भाकपा जैसी पार्टियों से बाहर से समर्थन मिला। हालांकि, एक साल बाद, उन्होंने लोकसभा चुनाव में जदयू की हार के लिए नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए पद छोड़ दिया। एक साल से भी कम समय में उन्होंने जीतन राम मांझी को हटाकर मुख्यमंत्री के रूप में वापसी की और इस बार उन्हें राजद और कांग्रेस का भरपूर समर्थन मिला।
‘महागठबंधन’ ने 2015 शानदार जीत दर्ज की
जदयू, कांग्रेस और राजद के एक साथ आने से अस्तित्व में आए ‘महागठबंधन’ ने 2015 के विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की, लेकिन केवल दो वर्षों में इसमें दरार पड़ गई। कुमार 2017 में भाजपा नीत राजग में लौट आए। पांच साल बाद, उनका फिर से भाजपा से मोहभंग हो गया और उन्होंने 2020 के विधानसभा चुनाव में जद(यू) की हार के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराया क्योंकि चिराग पासवान ने अपनी लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर भाजपा के कई बागियों को मैदान में उतारा था। अगस्त 2022 में वह महागठबंधन में वापस आए, जिसमें तीन वामपंथी दल भी शामिल हैं।