Home
National
International
Jharkhand/Bihar
Health
Career
Entertainment
Sports Samrat
Business
Special
Bright Side
Lifestyle
Literature
Spirituality

Ranchi : झारखंड जनजातीय महोत्सव 2023 : आदिवासियों के जीवन एवं संस्कृति को उपन्यास और लोकनृत्य के माध्यम से जानने का प्रयास

Ranchi : झारखंड जनजातीय महोत्सव 2023 : आदिवासियों के जीवन एवं संस्कृति को उपन्यास और लोकनृत्य के माध्यम से जानने का प्रयास

Share this:

Jharkhand news, Jharkhand update, Ranchi news, Ranchi update : विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान, रांची में आयोजित झारखंड आदिवासी महोत्सव 2023 के दूसरे दिन के राष्ट्रीय आदिवासी साहित्य सेमिनार का आयोजन तीन सत्रों में किया गया। पहले सत्र में विभिन्न राज्यों से आये ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञों, साहित्यकारों, कथाकारों ने आदिवासी जीवन को उपन्यास में ढालने की प्रक्रिया, यथार्थ बनाम संवेदना, लोक कथाओं और लोकगीतों का लेखन में उपयोग विषय पर अपने विचार रखे।

ट्राइबल लिट्रेचर सेमिनार

इसी क्रम में पहले सत्र की शुरुआत तेलंगाना से आये सुरेश जगन्नाथम ने की। उन्होंने आदिवासी समाज के जीवन को समझने में उपन्यास की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि उपन्यास के माध्यम से हमें आदिवासियों की संस्कृति एवं जीवनी को समझने में मदद मिलती है। वहीं, छत्तीसगढ़ से आयीं वरिष्ठ साहित्यकार कुसुम माधुरी टोप्पो ने आदिवासी उपन्यास में भाषा की शैली की जानकारी दी। उन्होंने साहित्य में बिंब के स्वरूप की विस्तार से चर्चा की।

उपन्यास से आदिवासियों को समझने का प्रयास

केन्द्रीय विश्वविद्यालय, तेज़पुर से आये साहित्यकार एवं आलोचक प्रो. प्रमोद मेढ़ा ने आदिवासी उपन्यास के सृजन की दुश्वारियों के बारे में जानकारी दी। आदिवासियों पर उपन्यासों की लेखनी में आनेवालीं चुनौतियों एवं उनके ख़तरों के बारे में विस्तार से बताया। आदिवासी उपन्यास को लिखने की कला एवं शैली के उपयोग के बारे में भी जानकारी दी। आदिवासियों के बारे में शोध करनेवाले प्रो. एडवर्ड और हिन्दी साहित्य के लेखक प्रो. सानी के लेखन के माध्यम से आदिवासियों के जीवन के चित्रण को प्रस्तुत किया।
पश्चिम बंगाल से आये कथाकार सुंदर मनोज हेम्ब्रम ने कहा कि उन्होंने संथाली भाषा में कई रचनाएं लिखीं हैं। उन्होंने अपनी रचित रचनाओं के माध्यम से आदिवासी समाज की जीवनी को प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि कहानियों में घटनाओं का समायोजन होता है, जबकि कथां रोचक होती हैं। एस एस मेमोरियल कॉलेज की प्राध्यापक प्रो. सावित्री बड़ाईक ने पहाड़गाथा एवं मताई उपन्यास के माध्यम से आदिवासी समाज की जीवनी एवं संस्कृति को समझाने का प्रयास किया। नागालैंड विश्वविद्यालय से आये श्री थूनबुइ ने जनजातियों के बारे में लिखे साहित्य के बारे में चर्चा की। दिल्ली विश्वविद्यालय से आयीं प्रो. स्नेहलता नेगी ने किन्नौर प्रजाति के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि आदिवासियों के जीवन जीने का तरीक़ा एवं उनकी संस्कृति लोकगीतों में देखने को मिलती है। त्रिपुरा विश्वविद्यालय से आयीं प्रो. मिलान रानी जमातीया ने हाचुक खुरिको उपन्यास के माध्यम से आदिवासी के जीवन एवं संस्कृति को समझाया। इस अवसर पर सेवानिवृत्त प्राध्यापक, छत्तीसगढ़ डाॅ. कोमल सेन सरवा और वरिष्ठ कथाकार छत्तीसगढ़ लोक बाबू ने भी अपने विचार रखे।

दूसरा सत्र

दूसरे सत्र का विषय समाजशास्त्र, ऐतिहासिक एवं अन्य शोध परख लेखन था, जिसका आरम्भ उड़ीसा से आये वरिष्ठ साहित्यकार हेमंत दलपती ने किया। उन्होंने फ़िल्म के माध्यम से आदिवासियों के जीवन की स्थिति के बारे में चर्चा की। फ़िल्म में आदिवासियों की उपेक्षा के बारे में बताया। कश्मीर से आये जान मोहम्मद हाकिम ने कश्मीर की गुर्जर जनजातियों के बारे में जानकारी साझा की। वाराणसी से आयीं प्रो. वंदना चौबे ने आदिवासियों की वर्तमान स्थितियों एवं भविष्य में उनके विकास की सम्भावनाओं के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि आदिवासी की परम्परा बहुत ही सुदृढ़ है। आदिवासी हमेशा से ही तकनीक के मामले में काफ़ी आगे हैं। वे अपना इलाज पुरानी पद्धति से करते हैं। प्रकृति का संरक्षण उनसे बेहतर कोई नहीं जान सकता। सुल्तानपुर से आयीं चर्चित कवयित्री एवं लेखिका रूपम मिश्र ने आदिवासी स्त्रियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

वरिष्ठ साहित्यकार अनिल यादव ने कहा कि आदिवासियों के पास प्रकृति एवं समाज की जो जानकारी है, वह बहुत व्यापक है। आदिवासियों की जो सबसे क़ीमती चीज़ है, जिसे बचाने की ज़रूरत है, वह है सामुदायिकता। उन्होंने कहा कि आदिवासी हमेशा से ही प्रकृति पूजक रहे हैं और प्रकृति को क़रीब से जानते हैं।दिल्ली से आये लेखक एवं कवि अशोक कुमार पांडेय एवं डाॅ. शंभुनाथ वरिष्ठ साहित्यकार व गुवाहाटी से आये वरिष्ठ साहित्यकार दिनकर कुमार ने भी अपने विचार रखे।

तीसरा सत्र

तीसरे सत्र में प्रो. वंदना चौबे, वरिष्ठ साहित्यकार, चर्चित कवयित्री एवं लेखिका रूपम मिश्र, प्रो. पार्वती तिर्की एवं प्रो. जसिंता केरकेट्टा ने अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से आदिवासियों की संस्कृति, सभ्यता एवं उनकी संस्कृति के बारे में प्रकाश डाला। सत्र का संचालन सरोज झा ने किया।

Share this: