Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, Dharm- adhyatm, Ranchi Bhagwat Katha: वैदिक इतिहास के पाठ्यक्रम में दुर्गा सप्तशती और गीता को नवीन शिक्षा नीति में शामिल करना चाहिए, क्योंकि इसमें आशीर्वाद की दुर्मति, देवताओं का संत्रास, राक्षसों का विस्तारवाद, स्त्री विमर्श के साथ दुर्गा के युद्ध कला कौशल, दानव का पाश्विक प्रेम प्रणय और देवी की क्षमा भी है, कैसे भयभीत देव समाज अबला युवती को अतिबला बना कर योद्धा का सृजन करता है, इसका भी उल्लेख है। यह कहना है पंडित रामदेव पांडेय का। वह श्रीमद्देवीभागवत कथा के आठवें दिन अपने प्रवचन में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि यही अबला सबला बन कर राक्षसों से जीत कर देव और मानव को सुख शांति देती है। यह कथा बेटियों के लिए प्रेरणादाई होगी। तीन सृष्टि तक महिषासुर देवी से हार गया। पहली सृष्टि में उग्रचण्डा, दूसरी में भद्रकाली और तीसरी मे दुर्गा का युद्ध महिषासुर से हुआ था। तीनों हार के बाद महिषासुर ने दुर्गा के चरण में जगह मांग कर शरणागत रहने का वरदान प्राप्त कर लिया। गीता में जीवन दर्शन है। भक्ति, कर्म, ब्रह्मांड विज्ञान और जीवनशैली है। हताश-निराश अर्जुन को विजेता बनाने की कला है, सनातन संघ हर गांव में दो घंटे की परिचर्चा रखे। सप्तशती और गीता को अनिवार्य रूप से पाठ्यक्रम में सरकार शामिल करे। आज विदेश के पच्चीस विश्वविद्यालयों में वैदिक शिक्षण, वेद पुराण की पढ़ाई हो रही है। उन पाठ्यक्रम को भारतीय विश्वविद्यालय में चलाना चाहिए। सनातनी हर रविवार गीता और दुर्गा सप्तशती को अपने बच्चों को जरूर पढायें। यह कथा आगामी 12 अगस्त तक चलेगी। हर साल की भांति 27 अगस्त को भण्डारा होगा।
हमारे वेद और गीता पर विश्व कर रहा है रिसर्च
आजकल लोग खाने-पीने की तुलना शिव और दुर्गा जी से करते हैं और जब शिव और दुर्गा की तरह समाज कल्याण की जिम्मेदारी निभानी है, तो पुरुषार्थ विहीन हो जाते हैं।श्रीमद्देवीभागवत की कथा में पं रामदेव पाण्डेय ने कहा, “छद्मई भक्त कहते हैं हमारे शिव, कृष्ण, दुर्गा जी जो खाते हैं, हम वही खाते हैं। शिव जी गांजा-भांग लेते हैं, दुर्गा जी मधु पीती हैं, तो हम भी पीते हैं, शिव जी जहर पीते हैं और अमर हैं, सांप लपेटे हैं, कानों में बिच्छू का कुण्डल है, दिगम्बर भी हैं, श्मशान में रहते हैं, तो तुम शिव की तरह रहो और करो। दुर्गा जी मधु पीती हैं, दुर्गा जी फाइटर हैं, विदुषी हैं और ब्रह्मचारिणी हैं। आजकल बेटे बेटियां अल्कोहल को मधु कह कर पीते हैं और समाज तथा राष्ट्र को मुश्किलों में डाल देते हैं। जो मधु दुर्गा पीती हैं, द्वारिका के यदुवंशी पीते थे, वह अल्कोहल नहीं है, वह है मधुपर्क, जो कांसा के कटोरे में बनता है। उसका समिश्रण है मधु का आधा घी, घी का आधा दूध, दूध का आधा दही और दही का आधा गुड़ से जो पेय बनता है, वह पेय पंचामृत और मधु कहलाता है। सनातन के हजारों ग्रंथ और करोड़ों देवता हैं। इसमें हरि भी अनन्त हैं और इनकी कथा भी, जबकि पश्चिम के कथित धर्म के पास जो एक ग्रंथ है, उसमें ओल्ड और न्यू हुए, एक ग्रंथ को लेकर विश्व में विवाद है और न्यायलय में सैंकड़ों विवाद अटके हैं। जबकि वेद और गीता पर विश्व, नासा और इसरो रिसर्च कर रहे हैं। यही है सनातन का गौरव।