Jharkhand News : राज्य में आरक्षण प्रतिशत बढ़ाए जाने का सपना देख रहे लोगों के लिए बुरी खबर है। राज्यपाल ने इससे संबंधित ‘झारखंड पदों एवं सेवाओं की नीतियों में आरक्षण संशोधन विधेयक 2022’ राज्य सरकार को वापस कर दिया है। इस विधेयक के तहत पिछड़ा वर्ग का आरक्षण प्रतिशत 14 से बढ़ाकर 27, अनुसूचित जनजाति का 26 से 28 तथा अनुसूचित जाति का 10% से बढ़ाकर 12% किया जाना था। राज्यपाल ने इस विधेयक को आखिर किस आधार पर वापस किया, आइये जानते हैं।
आरक्षण की सीमा बढ़ाना,सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विपरीत
दरअसल, राज्यपाल ने झारखंड में आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने से संबंधित राज्य सरकार द्वारा भेजे गए विधेयक पर अटॉर्नी जनरल का मंतव्य लिया था। अटॉर्नी जनरल ने अपने मंतव्य में संबंधित विधेयक को सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के विपरीत बताया है। मंतव्य में कहा गया है कि जातिगत आरक्षण की सीमा सर्वोच्च न्यायालय ने इंदिरा साहनी मामले में निर्धारित कर रखी है, जो कि 50% है। इसके विपरीत झारखंड सरकार द्वारा भेजे गए विधेयक में यह सीमा बढ़ाकर 67% करने का प्रस्ताव है। ऐसे में अटॉर्नी जनरल का मंतव्य संलग्न करते हुए राज्यपाल ने इसकी फिर से समीक्षा करने का आदेश देते हुए विधेयक वापस लौटा दिया है।
पिछले वर्ष नवंबर में भेजा गया था विधेयक, तब रमेश बैस थे राज्यपाल
जहां तक राज्य सरकार के स्तर से इस विधेयक को राज्यपाल के अनुमोदन के साथ ही इसे राष्ट्रपति को भेजने का प्रस्ताव दिया गया था, तब झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस हुआ करते थे। तिथि की बात करें तो 11 नवंबर 2022 को आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने से संबंधित यह विधेयक 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति से संबंधित विधेयक झारखंड स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और परिणामी, सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लोगों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिए विधेयक 2022 के साथ ही भेजा गया था। आपको बता दें कि खतियान आधारित स्थानीय नीति से संबद्ध विधेयक राजभवन से पूर्व में ही लौटाया जा चुका है। राज्यपाल ने इसे यह कहते हुए वापस कर दिया था कि राज्य विधानमंडल को इस संबंध में निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।
सरकार ने जिन तीन महत्वपूर्ण विधेयकों/नीतियों को साधना चाहा, सभी हुए धड़ाम
राज्य सरकार ने जिन तीन महत्वपूर्ण विधेयकों/नीतियों को साधना चाहा था, तीनों धड़ाम हो चुके हैं। आरक्षण और स्थानीय नीति से संबंधित विधेयक जहां राजभवन ने वापस कर दिया है, वहीं नियोजन नीति को झारखंड हाईकोर्ट ने रद कर दिया है। इन तीनों ही विधेयक के बड़े राजनीतिक मायने थे, जिसके सहारे सरकार ने बड़ा माइलेज लेने की कोशिश की थी। अब जबकि तीनों ही विधेयकों को मुकाम नहीं मिल सका है, सरकार की अगली रणनीति क्या होगी, इसके लिए करना होगा इंतजार।