Success Story, Bihar news, Hathua news, business news : बोलक्कड़ भोंभा की तरह बोलता ज्यादा है। करता कम है। करने वाला चुपचाप करता है। ढिंढोरा नहीं पीटता है। वैसे आजकल ढिढोरा पीटने का चलन कुछ बढ़ गया है यानी प्रचार-प्रसार का रंग चोखा और दम लिजलिजा। हम बिहार में बचपन से एक कहावत सुनते आए हैं- ‘ऊपर से ठाटबाट, भीतर से मोकामा घाट’। मतलब समझाने की जरूरत नहीं है। याद रखिए, सफलता को बताने की जरूरत नहीं होती है वह स्वयं बोलती है और इसका उदाहरण बिहार की एक हाउसवाइफ हैं। तीन बच्चों की मां रेखा कुमारी।
सिर्फ ₹1000 से शुरू किया बिजनेस
बिहार के हथुआ की रहने वाली रेखा कुमारी के बच्चे बड़े हो गए तो उन्हें कुछ करने का खाली समय मिला। उन्होंने इस समय का उपयोग करने का फैसला किया। उन्होंने मशरूम बिजनेस के माध्यम से खेती और एंटरप्रेन्योरशिप को एक साथ लाने का प्रयास किया। अब वह बहुत मोटी कमाई करती हैं। जानते हैं कैसे शुरू किया उन्होंने अपना बिजनेस। 2013 में महज 1,000 रुपये के साथ उन्होंने अपना कारोबार शुरू किया। कुछ ही वर्षों में उनका कारोबार फलता-फूलता कृषि और उद्यमशीलता वेंचर में बदल गया। एक छोटे से प्रयास के रूप में की गई शुरुआत रंग ला चुकी थी। आज मशरूम की खेती से रेखा सालाना 3 से 4 लाख रुपये कमाती हैं। ‘द बेटर इंडिया’ की रिपोर्ट के अनुसार, रेखा के अनुसार वर्षों से इस प्रोफेशन के बारे में सीखने से उन्होंने हजारों लोगों को मशरूम की खेती के लिए प्रशिक्षित भी किया।
ऑनलाइन क्लासेज देती हैं रेखा
रेखा अब लोगों को ऑफलाइन के साथ साथ ऑनलाइन तरीकों से भी मशरूम उगाने की क्लासेज देती हैं। मुफ्त ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से वे देश के विभिन्न हिस्सों में लोगों को प्रशिक्षित करने में कामयाब रही हैं। साथ ही वे हर महीने घर पर भी प्रशिक्षण कक्षाएं लेती हैं, जिसके लिए वे फीस लेती हैं। 2018 से रेखा ने अब तक लगभग 1,000 लोगों को ऑनलाइन और ऑफलाइन प्रशिक्षित किया है।
शुरू में इस प्रकार की स्टडी
2013 में रेखा ने मशरूम की क्षमता, इसके पोषण गुणों और उगाने के बारे में जानकारी खोजना शुरू किया तो उन्होंने यूट्यूब पर फंगी (कवक) के बारे में भी काफी अध्ययन (Study) किया। उन्होंने कई अन्य लोगों के साथ भी बातचीत की जो पहले से ही मशरूम की खेती कर रहे थे। बिना सही प्रशिक्षण के अपना कारोबार शुरू करने वाली रेखा का कहना है कि शुरुआत में ज्ञान की कमी के कारण उन्हें कई नुकसान हुए। इसके बाद उन्होंने 2018 में सिपाया के कृषि विज्ञान केंद्र और समस्तीपुर के राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा से ट्रेनिंग हासिल की।
इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएट
रेखा इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएट हैं। उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. संजय कुमार से मदद मिली। साथ ही उन्हें डॉ. दयाराम राव ने प्रशिक्षित किया। उनसे प्रशिक्षण लेने के बाद ही रेखा को सकारात्मक नतीजे मिलने शुरू हो गए। उन्होंने शुरुआत सिर्फ ऑयस्टर मशरूम से की थी, मगर अब पांच और किस्मों के मशरूम उगाती हैं। इनमें बटन मशरूम, मिल्की बटन मशरूम, शीटकेक मशरूम, हेरिकियम मशरूम और धान स्ट्रॉ मशरूम शामिल हैं।
इकोनॉमी से ग्रेजुएट हैं रेखा
रेखा इकोनॉमी से ग्रेजुएट हैं। उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ संजय कुमार से मदद मिली। साथ ही उन्हें डॉ दयाराम राव ने प्रशिक्षित किया। उनसे प्रशिक्षण लेने के बाद ही रेखा को सकारात्मक नतीजे मिलने शुरू हो गये। उन्होंने शुरुआत सिर्फ ऑयस्टर मशरूम से की थी, मगर अब पांच और किस्मों के मशरूम उगाती हैं। इनमें बटन मशरूम, मिल्की बटन मशरूम, शीटकेक मशरूम, हेरिकियम मशरूम और धान स्ट्रॉ मशरूम शामिल हैं।
ऑनलाइन क्लासेज देती हैं रेखा
रेखा अब लोगों को ऑफलाइन के साथ साथ ऑनलाइन तरीकों से भी मशरूम उगाने की क्लासेज देती हैं। मुफ्त ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से, वे देश के विभिन्न हिस्सों में लोगों को प्रशिक्षित करने में कामयाब रही हैं। साथ ही वे हर महीने घर पर भी प्रशिक्षण कक्षाएं लेती हैं, जिसके लिए वे फीस लेती हैं। 2018 से रेखा ने अब तक लगभग 1,000 लोगों को ऑनलाइन और ऑफलाइन प्रशिक्षित किया है।