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ऐसा बेटा दुश्मन को भी न हो : फिल्म ‘बागवान’ की याद दिलाती है झरिया के बुजुर्ग दंपती की कहानी, पांच बेटों के रहते वृद्धा आश्रम में कर रहे गुजारा

ऐसा बेटा दुश्मन को भी न हो : फिल्म ‘बागवान’ की याद दिलाती है झरिया के बुजुर्ग दंपती की कहानी, पांच बेटों के रहते वृद्धा आश्रम में कर रहे गुजारा

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Jharia, Dhanbad, Jharkhand news : वर्षों पहले एक बॉलीवुड फिल्म आयी थी ‘बागवान,’। शायद आपको भी याद होगा। फिल्मी की कहानी में चार बेटों के बावजूद दाेनों पति-पत्नी ( Amitabh Bachchan or Hema Malini) को अलग-अलग रहना पड़ता है। ऐसी ही कहानी धनबाद जिले के झरिया में चरितार्थ हो रही है। हरिया वाली कहानी में बस अंतर यह है कि यहां पांच बेटों-बहू और पोते-पोतियों से भरापूरा परिवार होने के बावजूद बुजुर्ग दंपत्ति अनाथों की तरह रहने को विवश हैं। मां-बाप बच्चों को पालने में अपना सारा जीवन खपा देते है। अपने हिस्से की खुशियां भी बच्चों में ही बांट देते हैं। पूरा जीवन संघर्ष में गुजर जाता है और बुढ़ापे में जब उन्हें अपनों की सबसे अधिक जरूरत होती है तो वही बच्चे उन्हें बोझ समझने लगते हैं। और बूढ़े हो चुके अपने माता पिता को घुट घुट कर जीने के लिए वृद्धा आश्रम में छोड़ देते हैं। वृद्धा आश्रम में रहने वाले सभी वृद्धों की ऐसी ही कहानी है।

टुंडी के वृद्धाआश्रम में रह रहा झरिया का दंपती

86 वर्ष की उम्र में बद्री प्रसाद केसरी व 83 वर्षीय उनकी पत्नी मंजूश्री केसरी पिछले डेढ़ वर्षों से नक्सल प्रभावित टुंडी के लालमणि वृद्धा आश्रम में रह रहे हैं। इनके पांचों बेटे धनबाद के ही झरिया में गुप्ता बिल्डिंग के समीप रहते हैं। आर्थिक रूप से भी सभी संपन्न हैं। दो बेटे कोयला व्यवसाय करते हैं तो तीन फेरी लगाते हैं। फिर भी मां-बाप किस हाल में होंगे, यह जानने का प्रयत्न एक बार भी नहीं करते। 

जब बेटों के घर गए माता- पिता तो कह दिया घर में जगह नहीं है आप वृद्धा आश्रम में ही रहें

कुछ माह पहले झरिया के भगानिया नर्सिंग होम में इलाज कराने गए थे। दोनों ने सोचा एक बार घर हो लें, बच्चों से मिल लें। यहां पहुंचने पर सभी ने यह कहकर वापस भेज दिया कि घर में जगह नहीं है, वहीं आश्रम में रहिए। डेढ़ वर्ष से बूढ़ी आंखें अपने बच्चों का रास्ता निहार रही हैं कि एक न एक दिन इस वृद्धा आश्रम से लेकर जाएंगे। अब तो उम्मीद भी खत्म हो चुकी है। बद्रीप्रसाद आश्रम को अपना घर और यहां रहने वाले 32 अन्य बुजुर्गों को अपना परिवार मान सुख- दुख बांटे रहे हैं। इतना सब होने के बाद भी बद्री प्रसाद अपने बेटों को एक शब्द भी भला-बुरा नहीं कहते, ऊपर वाले की नियति मान जीवन जी रहे हैं। यहां रह रहे लोग जरूर यह कहते हैं कि बेटों की संवेदना मर गई है। समाज की परवाह नहीं और न ही पाल-पोस बड़ा करने वाले मां-बाप की चिंता है। इससे अच्छा तो बेऔलाद ही रहते।

आंसुओं के सैलाब के बीच गुजर रही जिंदगी

बद्री प्रसाद और उनकी पत्नी मंजूश्री का हर दिन आंसुओं के सैलाब के बीच गुजर रहा है। बद्री प्रसाद केसरी से जब उनके परिवार के बारे में बात की गई तो वे फफक कर रो पड़े। बाेले, उन्हें भरोसा था कि बेटे बुरे वक्त में सहारा बनेंगे। हम बूढ़े-बूढ़ी को कम से कम दो वक्त की रोटी तो जरूर दे देंगे। इतने भर से ही उनकी जिंदगी कट जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हमने अब तो जिंदगी से समझाैता कर लिया है। यह आश्रम ही हमारा घर और यहां के लोग परिवार हैं। 

आरएसपी कालेज झरिया से स्नातक हैं और फर्राटेदार बाेलते हैं अंग्रेजी

बद्री प्रसाद आरएसपी कालेज झरिया से ग्रेजुएट हैं और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं। बातचीत के क्रम में धाराप्रवाह अंग्रेजी में हर प्रश्न का जवाब देते रहे। उनकी पत्नी भी शिक्षित हैं। झरिया के गुप्ता बिल्डिंग के सामने नारियल की दुकान लगाया करते थे। इसी की आमदनी से बच्चों को बड़ा किया और पढ़ाया-लिखाया। बद्री प्रसाद अपने बेटों की अनदेखी के बाद भी कबीर दास के दोहे का वाचन करते हैं – मीठी वाणी बोलिए मन का आपा खोय, औरन को शीतल करे आपहुं शीतल होए। मंजूश्री को भी इसी बात का मलाल है कि पांच पुत्र होने के बाद भी बुढ़ापे में कोई अपने साथ नहीं रख पाया। बद्री प्रसाद लालमणि वृद्धा आश्रम के नौशाद गद्दी, सुधीर वर्णवाल, नरेंद्र शरण, केयर टेकर सुबल प्रसाद सिंह और रसोइया शांति देवी का जरूर धन्यवाद देते हैं।

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