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संसार में गुरु की उपमा देने लायक नहीं है कोई दृष्टांत: सुशील

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Motihari news : आषाढ़ की परम पवित्र पूर्णिमा तिथि गुरु पूर्णिमा के नाम से प्रसिद्ध है। इसी दिन भगवान व्यास जी का जन्म हुआ था। इस पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं, क्योंकि भगवान व्यास की ही प्रदर्शित पद्धति का उनके परवर्ती विद्वानों ने अनुशरण किया है। रविवार को उक्त उद्गार महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय में आयोजित गुरुपूर्णिमा उत्सव कार्यक्रम में प्राचार्य सुशील कुमार पांडेय ने व्यक्त की। उन्होंने गुरु की महिमा पर विस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि इस संसार में गुरु की उपमा देने लायक कोई दृष्टांत नहीं है। गुरु को पारस की उपमा भी नहीं दी जा सकती है, क्योंकि पारस तो मात्र सोना ही बनाता है,परन्तु सद्गुरु तो अपने शिष्य को स्वयं अपने समान ही बना लेते हैं। ज्ञान देते समय गुरु के पास जो भी साधना एवं सिद्धियों का समुद्र होता है, वह शिष्य में उड़ेल देता है और शिष्य में ऐसी क्षमता पैदा कर देता है, जिससे उसमें सिद्धियों को समाहित करने की शक्ति आ जाए। 

छात्रों ने की गुरुओं की पूजा

इस दौरान सुधीर दत्त पाराशर, विकास पाण्डेय, रुपेश ओझा, राजन पाण्डेय, सुधाकर पाण्डेय, कुन्दन पाठक आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर विद्यालय में व्यास पूजन, वेद पूजन व रुद्राभिषेक आदि अनुष्ठान सम्पन्न किए गए। इसके साथ ही छात्रों ने अपने गुरुजनों का पूजन किया। मौके पर अरुण तिवारी, सुजीत मिश्र, सुनील कुमार उपाध्याय, कृष्ण कुमार, प्रदीप कुमार सहित विद्यालय के बटुक मौजूद थे।

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