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मौसम की मार : सूख रहे हैं बिचड़े और टूट रही किसानों की उम्मीद

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बारिश नहीं होने से किसान मायूस और परेशान बढ़ी किसानों की चिंता, बारिश नहीं होने से खतरे में फसल हो रही खरीफ़ फसलो की नुकसान

*बब्लू खान*

Latehar news : लातेहार मानसून की बेरुखी से जिले के किसान परेशान हैं। आमतौर पर जिले के अधिकांश आबादी खेती किसानी के कार्यों से जुड़े हैं। इनमे से धान की सर्वाधिक तौर पर खेती की जाती है। जिले में लगभग 50  से 60 हजार हेक्टेयर भूमि पर कृषक धान की खेती करते हैं। यहां सिचाई की मुकम्मल व्यवस्था नही होने के कारण ज्यादातर किसान मॉनसून के सहारे धान की खेती कर पाते हैं। मौसम ने यदि साथ दिया तो किसान बेहतर उत्पादन कर पाते हैं अन्यथा कभी अल्प वर्षा तो कभी सुखाड़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का शिकार होते हैं। इससे किसानों को दोहरी नुकसान उठाना पड़ता हैं। खाद बीज के साथ-साथ किसानों की श्रम शक्ति भी यूं ही बर्बाद हो जाती है। वही साधन सम्मन किसान बारिश नहीं होने की स्थिति में भी विलियर्स मशीन के माध्यम से सिंचाई कर की तरह धान की फसलों का उत्पादन कर लेते हैं। इस वर्ष जिले के कई किसान समय से ही 15 जून के आसपास धान का बिचड़ा छिट चुके है और कमोबेश बिचड़ा भी तैयार हो चुका है। परंतु इसे जब रोपनी की बारी आयी तो मौसम ने अपना रुख बदल लिया लातेहार जिला के गारू सरयू  महुआडार बरवाडीह हेरहंज बरियातू बालूमाथ चंदवा लातेहार समेत पूरा प्रखंड सूखे की  की ओर जा रहा है

कम बारिश ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है

आषाढ़ माह में भी अब तक हुए कम बारिश ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है।और अब तो सावन भी आ गया है।  बारिश की आस लगाए किसान आसमान की ओर टकटकी लगाए हैं। रोजाना काले घनघोर बादल आसमान पर मंडरा तो रहे हैं पर बारिश नहीं हो रही है। घनघोर काले बादल देखकर किसानों के चेहरे में खुशी आ जाती है पर बारिश नहीं होने। चिंता की लकीरें  उभर आती है। लगता है इस वर्ष भी बारिश दगा देगी। किसानों के सिर पर चिंता की लकीरें साफ झलक रही है। इस वर्ष आंकड़ों पर गौर करें तो अप्रैल माह में एक भी बारिश दर्ज नहीं किया गया। मई माह भी पूरी तरह सुखा रहा। जून माह में महज 46 एमएम बारिश दर्ज किया गया, वहीं जुलाई माह में अब तक महज 130 एमएम बारिश दर्ज किया गया है।  यह पिछले साल की अपेक्षा भी काफी खराब है। समय पर मानसून आने के बाद इस वर्ष लगा कि मानसून की स्थिति बेहतर होगी पर मानसून भी दगा दे गया है। 

रोपाई की बात तो छोड़ दे। अब तक किसान बीड़ा भी नहीं कर पाए हैं। कई गांव में इतनी भी बारिश नहीं हुई कि किसान खेत भी तैयार कर पाए। कुछ किसानों के बिचड़े भी बारिश के अभाव में सूखने के कगार पर है। किसान परेशान है गर्मी व पेयजल की समस्या से आमजन भी परेशान हो रहे हैं। आषाढ़ माह में भी चिलचिलाती गर्मी शरीर को जला रही है । उमस भरी गर्मी पड़ रही है। बारिश नहीं होने के कारण कई इलाकों में पेयजल समस्या गंभीर बनी है। आलम यह है कि अब भी कुएं एवं चापानलों का जलस्तर काफी नीचे चली गई है। नदी-तालाबों में  पानी नहीं होने से पशुधनों के समक्ष भी विकट समस्या उत्पन्न  हो गई है। अगर यही स्थिति रही तो जिले के तमाम प्रखंडों में  में अकल पड़ना निश्चित ही संभव है। 

खेतों में बिचड़ा तैयार, किसान कर रहे बारिश का इंतजार

किसान खेतों में बिचड़ा तैयार कर बारिश का इंतजार कर रहे हैं। प्रभावित किसान सोनू खान  सलमोहन भगत संजय साव मंजय उराव जीवन मसीह एक्का,  सहित अन्य किसानों का कहना है कि जुलाई माह के प्रथम सप्ताह तक अच्छी बारिश नहीं होने से धान रोपनी का कार्य बिल्कुल नहीं हो सका है। पर्याप्त बारिश नहीं होने से खेती बारी का काम लगभग रुक गया है। अच्छी बारिश होने पर रथ यात्रा के समय तक जिले में रोपनी का कार्य पूरा हो जाता है। किंतु बारिश के अभाव में इस वर्ष किसान अब तक रोपनी के लिए बिचड़ा ही डाल रहे हैं। किसानों का कहना है कि पानी के अभाव में खेती बाड़ी का काम इस वर्ष अच्छी तरीके से नहीं हो पा रहा है। किसानों का कहना है कि खेतों में तो बिचड़ा लगा दिया गया है। अब तैयार भी होने को है। लेकिन पानी के अभाव में रोपनी का काम नहीं हो पा रहा है। खेत को किसानों द्वारा जोत कर छोड़ दिया गया है। बिचड़ा तैयार होने में कम से कम 21 दिन से एक महीने का समय लगता है। 

उत्पादन क्षमता में भी कमी आ जाती है

जुलाई में रोपनी नहीं होने से उत्पादन क्षमता में भी कमी आ जाती है। चुकी धान में बाली आने के समय तक धान फसल को गर्मी मिलना चाहिए। लेकिन बारिश के अभाव में जुलाई महीने में रोपनी नहीं हो पा रहा है। ऐसी स्थिति में अगस्त, सितंबर में रोपनी करने के बाद भी अच्छी पैदावार नहीं होने की संभावना है। चुकी नवंबर से ठंड का मौसम शुरू हो जाता है। और यह मौसम धान की फसल के लिए उचित नहीं होता। किसानों ने बताया कि  खेतों में मूंगफली मकई, , बोदी टमाटर भिंडी सहित अन्य फसल लगाए गए हैं। लेकिन पानी के अभाव में यह फसल भी बर्बाद होने के कगार पर पहुंच चुका हैं। मकई एवं मूंगफली में अब तक मिट्टी चढ़ जाना चाहिए। इस स्थिति में खेती बेहतर होगी यह संभव नहीं लग रहा है। किसानों का कहना है कि यदि सिंचाई की समुचित व्यवस्था होती तो किसान अपने खेतों में समय से खरीफ फसल लगा लेते। लेकिन सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण लातेहार जिला के किसान वर्षा के पानी पर ही निर्भर है। जब तक बारिश नहीं होती। किसानों के पास कोई विकल्प नहीं होता। है । और ना ही यहां आस-पास के ग्रामीण इलाकों में वैसा डैम नही  है जिससे सिंचाई के लिए पानी लाया जा सके। और पटवन करके खेती की जा सके।

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