नीतीश कुमार खुली आंखों से सपना देखने लगे हैं। कह रहे हैं कि कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल एकजुट हो जाएंगे तो भाजपा को 100 सीटों से नीचे पर रोक देंगे। यह बात वही नीतीश कुमार कह रहे हैं, जिनकी नाक के नीचे उपेंद्र कुशवाहा बगावती सुर तेज किये बैठे हुए हैं। रविवार को पटना में जदयू के विद्रोही गुट के लोग बैठक कर रहे हैं और साफ-साफ कह रहे हैं कि ललन सिंह, अशोक समर्ट, संजय झा जैसे लोग पार्टी को धूल चटाने में लगे हैं और मुख्यमंत्री चुप हैं। जाहिर है, विद्रोहियों की बातों में दम है। उसी पटना में नीतीश कुमार भी हैं और विद्रोही भी। बैठक एक-अणे मार्ग पर भी हुई है जिसमें मुट्ठी भर लोगों को बुलाया गया था। विद्रोही गुट की बैठक में संगठन के लोग ज्यादा हैं और कहा जा रहा है कि कुछ मंत्रियों ने भी उन्हें समर्थन दे रखा है।
शनिवार को नीतीश कुमार ने भाकपा (माले) के प्रोग्राम में कहा कि वह इस इंतजार में हैं कि कांग्रेस आए और बोले-आई लव यू। मजेदार बात यह है कि कांग्रेस भी इसी इंतजार में है कि नीतीश बाबू आएं और बोलें- आई लव यू। पहले कौन आई लव यू बोले, यह पता ही नहीं चल रहा है। इसी चक्कर में 2024 की ट्रेन निकल जाएगी और दिल के अरमां आंसुओं में बहते चले जाएंगे।
कांग्रेस की क्या रणनीति होगी 2024 में, यह कांग्रेसियों को खुद नहीं पता। जदयू को क्या करना है, उसे भी नहीं पता। राजद का स्टैंड साफ है। वह भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ेगा और सीना ठोक कर लड़ेगा क्योंकि राजद डे वन से भाजपा को नापसंद करता रहा है। आपको याद होगा कि यह लालू यादव ही थे, जिन्होंने आडवाणी के रथ को समस्तीपुर में रोक दिया था। तो राजद का रोडमैप साफ है। रोडमैप में भी कोई भारी कन्फ्यूजन में है तो वह नीतीश कुमार का रोडमैप है। नीतीश पर न कांग्रेस को भरोसा है, न राजद को और न उनकी ही जदयू को। पलटू चाचा के उपनाम से विख्यात नीतीश कब पलटी मार दें, कोई नहीं जानता। जहां तक सवाल उनके कसमों का है, वह तो कसम खाकर पहली बार बोले थे कि वह भाजपा के साथ नहीं जाएंगे। फिर उसी भाजपा के साथ आए। ऐसे ही उन्होंने राजद के साथ भी न जाने की कसमें खाई थीं। उस कसम को भी उन्होंने बिसार दिया। उन्होंने राजद के साथ दो बार सरकार बनाई, भाजपा के साथ तो थे ही। उन्होंने किसी कसम की लाज नहीं रखी। खुद 8 बार से लगातार सीएम बने रहे। चुनावी रणनीति बनाने वाले और जनसुराज यात्रा निकाल रहे प्रशांत किशोर ठीक ही कहते हैं कि इन 17-18 सालों में बिहार में सब कुछ हो गया, सिर्फ एक चीज नहीं हुआ-नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने ही रहे। एक बार नहीं, आठ-आठ बार। पता नहीं कौन सा फेविकोल का जोड़ है जो टूटता ही नहीं।
दरअसल, नीतीश कुमार पर किसी को भरोसा है भी नहीं। वह तेलंगाना में केसीआर से मिलते हैं, केसीआर भी पटना आते हैं लेकिन हैदराबाद में वह रैली करते हैं केजरीवाल और भगवंत मान के साथ। नीतीश को वह पूछते ही नहीं। ऐसे ही, चंद्रबाबू नायडू से नीतीश मिले तो हैं पर वह बैठक सिर्फ टी मीटिंग ही बन कर रह जाती है। गुब्बारे का हवा बड़े प्यार से निकाल दिया जाता है।
मूल बात यह है कि विपक्ष के नेताओं में ही पीएम बनने की होड़ लगी है। बंगाल में ममता अपनी नाक पर मक्खी नहीं बैठने देतीं तो तेलंगाना में केसीआर किसी को तवज्जो देने के मूड में नहीं लग रहे हैं। राहुल गांधी अध्यक्ष न होते हुए भी कांग्रेस के सर्वेसर्वा हैं और वह अकेले ही मोदी से दो-दो हाथ करने के लिए उतावले हुए जा रहे हैं। मोदी ने लोकसभा और राज्यसभा में राहुल के किसी सवाल का जवाब न देकर जिस तरीके से कांग्रेस को धोया है, उसकी मिसाल बीते 5 दशकों की राजनीति में आपको कहीं नहीं मिलेगी। अब रह गए केजरीवाल, पवार और उद्धव तो इनका अपना समीकरण है। ये उस छतरी के नीचे क्यों जाना चाहेंगे, जिसमें खुद 484 पैबंद लगे हों। वैसे भी, नीतीश कोई सर्वमान्य नेता तो हैं नहीं। जिनकी पार्टी, उनके ही नेतृत्व में 43 सीटों पर सिमट जाती हो, वह प्रधानमंत्री बनने का सपना तो देख सकते हैं पर आपको याद रखना होगा कि वह असली नहीं, बल्कि मुंगेरी लाल के ही हसीन सपने हैं। ये सपने सिर्फ सपने होते हैं। आपके मन में एक गुदगुदी होती है। आप ख्वाब देखते हैं कि आप बतौर पीएम शपथ ले रहे हैं लेकिन तभी कोई आपके चेहरे पर पानी की चार बूंदें डालता है और आप हड़बड़ा कर उठ जाते हैं। आप विपक्षी एकता की बात करते हैं, लेकिन आपके पास कोई रोडमैप है ही नहीं। बिखरा हुआ विपक्ष मोदी के लिए वरदान है। भाजपा बिखरे हुए विपक्ष को और ज्यादा बिखरने में लगी हुई है और आज नहीं तो कल, उसमें सफल हो भी जाएगी। बेशक दर्जनों बार नीतीश कह चुके हैं कि वह पीएम कैंडिडेट नहीं हैं तो फिर पीएम कैंडिडेट है कौन? बिना दूल्हा के बारात कैसी?