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आप बस पैसा कमाइए ; बाकी सब कुछ भांड़ झोंकिये!

आप बस पैसा कमाइए ; बाकी सब कुछ भांड़ झोंकिये!

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राजीव थेपड़ा

कहीं पर प्रश्न उठा है इन तस्वीरों के माध्यम से, नैतिकता-अनैतिकता आदि का। थोड़ा विवादित विषय है यह। क्योंकि, कोई क्या करता है, यह उसकी अपनी मर्जी है।

( अब यह बात अलग है कि हम इतने उच्चश्रृंखल या अनियंत्रित-असीमित आजाद भी नहीं कि समाज से परे जाकर अपनी मनमर्जी से कुछ भी करने लगें!)

जहां तक इन चीजों का सवाल है, मुझे लगता है कि यदि कोई किसी हद में रह कर अपना काम करता है, तो उसमें कुछ बुरा भी नहीं।

देखा जाये, तो सदा से ही ग्लैमर समाज के सिर चढ़ कर बोलता रहा है। ग्लैमर देखा जाता है, इसलिए ग्लैमर सबसे ज़्यादा बिकता है। इसलिए ग्लैमर में अपार पैसा है, बल्कि उससे जुड़ी प्रत्येक वस्तु में पैसा है। ग्लैमर से जुड़ीं वस्तुओं के धंधे में भी अपार प्रॉफिट है।

…और, सच तो यह है कि पैसे के लिए ही हम सब हैं, जीने के लिए थोड़ी ना हैं ! जीने के लिए हम कम हैं, पैसा कमाने की एक मशीन के रूप में ज्यादा हैं। बल्कि, पैसा कमाते हुए असल में हम जीना भी भूल जाते हैं !

ऐसा नहीं है यह जिन्दगी हमें जीने के बहुत सारे अवसर नहीं देती। लेकिन, पैसा कमाने की धुन में हम उन अवसरों को भी छोड़ देते हैं ! अब यहां पर सवाल यह उठता है कि कौन-सा काम गलत है और कौन-सा काम सही है?…तो, एक ही बात कहना चाहूंगा कि जिसके हाथ जो काम लगता है, वह वही कर डालता है। मुख्य मुद्दा है हाथ में पैसा आना ! पैसा आना नैतिकता और अनैतिकता से परे हो गया है ! रास्ता कोई भी हो ; बस पैसा आना चाहिए। हम सब पैसे के लिए मरे जा रहे हैं !

…और, पैसे के लिए हमारा हमारी यह अतिशयता भरी या पागलपन भरी लाग जब तक खत्म नहीं होगी या हम जब तक यह नहीं समझ जायेंगे कि हमें कितना जीना है और उस जीने के लिए कितना कमाना है या यूं कहें कि सही तरीके से जीने के लिए कितना कमाना पर्याप्त होगा !.. और, जीने के लिए अन्य गतिविधियां कौन-सी व कितनी होंगी, जिसके साथ या जिनको करते हुए हम लोगों के साथ भी जुड़े रहते हुए एक गुणवत्तापूर्ण जीवन जी सकें।…और, लोगों से जुड़ने की बात भी बाद की बात है। पहले तो यूं हो कि हम अपने परिवार से गुणवत्ता पूर्ण ढंग से जुड़े हुए रहते हुए अटूट पारिवारिक रिश्तों के साथ जी सकें। किन्तु, जब तक पैसा पहले रहेगा, तब तक इन बातों का कोई औचित्य ही नहीं है ! क्योंकि, अकूत दौलत कमाने के इससे हमारे निहित तर्क भी इतने ऊल-जलूल हैं, जिन पर बात करने से इस विषय पर कोई समाधान भी नहीं मिलता, क्योंकि वह तर्क नहीं, कुतर्क हैं !

 फिर, जिसके पास जो साधन है, वह उसी से ना कमायेगा ? किसी को कोई अवसर नहीं मिलेगा, तो वह चोरी करेगा, डकैती करेगा और जब उसका मन बढ़ जायेगा या उसे कोई ऐसी सीख दे दे, जिससे कि वह आतंकवाद करके भी कमा सके, तो वह भी करेगा !

…तो, यहां मैटर नैतिकता का तो है ही नहीं ! इसलिए बेशक हम इन विषयों पर कितनी ही रांद-काट क्यों न मचा लें, दुनिया बिलकुल ऐसे ही चलती रहेगी, जैसे कि अभी वह चल रही है ! पैसा है, तो जीवन है !! बाकी जीवन कैसा है, क्या है ! फ़िज़ूल है कि सार्थक है ! इससे हमको क्या ? कोई मतलब नहीं है !!

…और, कई बार तो यह सवाल उठानेवाले नैतिकता के कारण नहीं, बल्कि किसी/किन्हीं पैसेवाले के प्रति अपनी ईर्ष्या के कारण भी यह सवाल उठाते हैं ! हालांकि, यह मेरा किसी पर आरोप नहीं है, लेकिन ऐसा भी होता है!

अलबत्ता, एक बात और है कि अपने-आप को सही राह से पैसा कमाते हुए, समझते हुए हम किसी ज्यादा पैसा कमाने वाले को आरोपित और लांछित करने के अधिकारी भी हो जाते हैं ! ऐसा भी मैं अक्सर पाता हूं। …तो, कुल मिला कर स्थिति गड्डमगड्ड है ! यद्यपि, उपरोक्त तस्वीरें या इससे भी ज्यादा नग्न तस्वीरें, अश्लील तस्वीरें, वीडियो, किताबें, फिल्में आदि हमारी नैतिकता पर एक प्रश्न तो है ही!!

…लेकिन, यह प्रश्न खड़े करनेवाले हम क्या यह देख पाने में भी सक्षम हैं कि इन तस्वीरों या वीडियो और फिल्मों, या जिसे भी हम अश्लीलता की संज्ञा दे रहे हैं, का आस्वाद दरअसल कौन ले रहा है ? यदि हम नहीं ले रहे होते, तो फिर यह दिखती ही क्यों और बिकती भी कैसे ? …तो, बहुत बार हम अपने छुपे हुए चरित्र को नहीं देखते हुए, दिखाई देती हुईं चीजों पर आक्रोशित होते हैं ! किन्तु, मेरी समझ से यही एक अलग और एक्चुअली सबसे बड़ा सवाल भी है !!

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