एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (एटीएजीएस) के नॉन फायरिंग वाले परीक्षण एक माह में पूरे किये जायेंगे। इस बाबत रक्षा मंत्रालय के अधीन गुणवत्ता आश्वासन महानिदेशालय एटीएजीएस हॉवित्जर के इन परीक्षणों का निरीक्षण करेगा। इसके बाद डीआरडीओ सेना की 1,580 तोपों की जरूरतों को पूरा करने के लिए निविदा जारी करेगा। पूर्वी लद्दाख में जारी दो साल के लंबे टकराव में इन दोनों तोपों को चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तैनात किया गया है।
शीतकालीन परीक्षण रहा था सफल
स्वदेशी रूप से विकसित एटीएजीएस के शीतकालीन परीक्षण फरवरी, 2021 में सिक्किम के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पूरे किए गए थे, लेकिन ग्रीष्मकालीन परीक्षणों के अंतिम दौर के दौरान यह तोपें ‘कुछ मापदंडों’ को पूरा नहीं करती थीं। इसलिए सेना ने इसी साल मार्च से 155 मिमी. 52 कैलिबर की आर्टिलरी गन के परीक्षण पोखरण फील्ड फायरिंग रेंज में शुरू किये। आखिरी परीक्षण 26 अप्रैल से 2 मई तक रेगिस्तान में रेत के टीलों पर नेविगेशन के साथ और 70 सड़कों पर हाई-स्पीड के साथ हुए हैं। इन परीक्षणों के दौरान टैंक के आकार और लक्ष्यों पर दिन-रात की फायरिंग, पांच राउंड बस्ट के लिए परीक्षण, लगभग तीन मिनट में 15 राउंड की रैपिड-फायर दर और हर घंटे 60 राउंड की निरंतर फायरिंग क्षमता आंकी गई है।
पूरी तरह से है स्वदेशी
पूरी तरह स्वदेशी रूप से विकसित एटीएजीएस के परीक्षण पूरे होने के बाद अब नॉन फायरिंग वाले परीक्षण बचे हैं, जिन्हें एक महीने के भीतर करने का लक्ष्य डीआरडीओ ने निर्धारित किया है। रक्षा मंत्रालय के अधीन गुणवत्ता आश्वासन महानिदेशालय एटीएजीएस हॉवित्जर के इन परीक्षणों का निरीक्षण करेगा। रक्षा सूत्रों के मुताबिक 3,365 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 150 एटीएजीएस के शुरुआती ऑर्डर को टाटा और भारत फोर्ज के बीच विभाजित किया जाएगा। रक्षा मंत्रालय की ओर से हथियारों के विदेशी आयात पर प्रतिबंध लगाने के साथ स्वदेशी एटीएजीएस के आदेश बढ़ने की उम्मीद है, क्योंकि सेना को मौजूदा समय में 1,580 तोपों की जरूरत है।
रखरखाव में परेशानी नहीं और विश्वसनीयता भी
डीआरडीओ के मुताबिक एटीएजीएस में लंबे समय तक रखरखाव-मुक्त और विश्वसनीय संचालन सुनिश्चित करने के लिए ‘ऑल इलेक्ट्रिक ड्राइव टेक्नोलॉजी’ भी है। भारत की जरूरतें पूरी होने के बाद भविष्य में एटीएजीएस के लिए निर्यात बाजार भी उपलब्ध होगा। दरअसल, भारत को 1980 के दशक के मध्य में स्वीडिश बोफोर्स से लेकर 2005 में दक्षिण अफ़्रीकी डेनेल और 2009 में सिंगापुर टेक्नोलॉजी कैनेटीक्स तक तोपखाने की खरीद परियोजनाओं में बार-बार होने वाले घोटालों से जूझना पड़ा है। आखिरकार लगभग तीन दशक बाद भारतीय सेना ने अमेरिका से 2018 में 145 एम-777 अल्ट्रा-लाइट हॉवित्जर खरीदकर अपनी जरूरतें पूरी कीं।
अब उत्पादन का रास्ता साफ
इसके बाद दक्षिण कोरियाई हनवा डिफेंस और एलएंडटी के संयुक्त उद्यम ने 4,366 करोड़ रुपये की लागत से 100 के-9 वज्र स्व-चालित ट्रैक गन में निर्मित की, जिन्हें सेना के तोपखाने में शामिल किया गया। पूर्वी लद्दाख में जारी दो साल के लंबे टकराव में इन दोनों तोपों को चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तैनात किया गया है। इसके बाद सेना ने 200 और के-9 `वज्र ‘तोपों का ऑर्डर देने की योजना बनाई है। एटीएजीएस के परीक्षण पूरे होने के बाद अब इनके उत्पादन का रास्ता साफ हो गया है। अब इनके नॉन फायरिंग वाले परीक्षण एक महीने के भीतर पूरे किये जाने की योजना बनाई गई है। रक्षा मंत्रालय के अधीन गुणवत्ता आश्वासन महानिदेशालय एटीएजीएस हॉवित्जर के इन परीक्षणों का निरीक्षण करेगा।