बिहार में नीतीश कुमार मंत्रिमंडल का गठन 16 अगस्त को हो जाएगा। इसके लिए सारी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। शपथ ग्रहण के लिए राजभवन को भी दुरुस्त कर दिया गया है। यहां की सारी व्यवस्था चाक-चौबंद हो गई है। लेकिन उम्मीद जताई जा रही है कि मंत्रिमंडल के गठन के बाद भाजपा और जनता दल यूनाइटेड के बीच एक और मोर्चा खुलेगा। आपको बता दें कि यह मोर्चा राज्यसभा के उपसभापति और बिहार विधान परिषद के कार्यकारी सभापति के पद के नाम पर खुलेगा। उपसभापति के पद पर जदयू के हरिवंश विराजमान हैं, तो बिहार विधान परिषद के कार्यकारी सभापति के पद पर भाजपा के अवधेश नारायण सिंह। इन दोनों को जदयू और भाजपा ने अब तक पद छोड़ने को नहीं कहा है। इस मामले में कुछ समानता भी दिख रही है। हरिवंश जहां भाजपा की पसंद हैं, वहीं अवधेश नारायण सिंह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पसंद हैं। इस स्थिति से यह साफ है कि भाजपा हरिवंश को पद छोड़ने के लिए नहीं कहेगी। इसका मतलब यह कि भाजपा अपनी तरफ से हरिवंश को पद छोड़ने के लिए नहीं कहने जा रही है।
नेतृत्व के फैसले के साथ होंगे अवधेश नारायण सिंह
सूत्रों की मानें तो बिहार विधान परिषद के कार्यकारी सभापति अवधेश नारायण सिंह राजनीतिक कारणों से पद पर बने रहने को इच्छुक नहीं हैं। वह गया स्नातक क्षेत्र से निर्वाचित हुए हैं। 2023 के मई में उन्हें फिर से चुनाव में जाना है। ऐसे में वह भाजपा नेतृत्व के फैसले के खिलाफ नहीं जाएंगे। यानी पार्टी जो कहेगी वह वैसा ही करेंगे।
राज्यसभा में फंस सकता है पेच
देश के संवैधानिक पद पर विराजमान हरिवंश की ओेर से बिहार में पिछले दिनों हुए राजनीतिक घटनाक्रम पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। यदि वह अपने पद से स्वतः इस्तीफा देते हैं तो आसानी से विवाद का हल हो सकता है। यदि ऐसा संभव नहीं हो पाया तो उन्हें हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव का सहारा लिया जा सकता है। अगर जदयू उन्हें दल से निलंबन की अनुशंसा करता है तो भी हरिवंश को पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाना पड़ेगा। गौरतलब है कि 245 सदस्यीय राज्यसभा में भाजपा के सदस्यों की संख्या 91 है। जदयू के एनडीए से अलग होने के बाद भाजपा इस हालत में नहीं है कि वह अपने दम पर हरिवंश की जीत सुनिश्चित कर सके।