Amrit Mahotsav and Kudrat ka Karishma : यही है कुदरत का करिश्मा। देश का एक जवान आज से 38 साल पहले कठिन ड्यूटी करते हुए हिमस्खलन का शिकार हो गया था और उसकी डेड बॉडी नहीं मिली थी। आज तक उनकी पत्नी को पार्थिव शरीर मिलने का इंतजार था। कुदरत के करिश्मे ने उनके इंतजार को सफल बना दिया। देश जब आजादी की 75 वीं सालगिरह का जश्न मना रहा हो और अमृत महोत्सव का माहौल हो, उस बेला में 38 साल पहले शहीद हुए भारत के एक लांस नायक की डेड बॉडी का मिलना उसके परिवार के लिए ही नहीं, पूरे देश के लिए खुशी की बात है। देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस बीच स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर सियाचीन से यह खबर सामने आई है। बताया जा रहा है कि 38 साल बाद ऑपरेशन मेघदूत में शहीद हुए लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला (बैच संख्या 5164584) का पार्थिव शरीर 13 अगस्त को एक पुराने बंकर में मिला है। पिछले 38 साल से उनकी पत्नी उनके पार्थिव शरीर का इंतजार कर रही थीं। बता दें कि हर्बोला की दो बेटियां हैं। बताया जा रहा है कि लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला (19 कुमाऊ रेजिमेंट) का पार्थिव शरीर 15 या 16 अगस्त को उनके घर हल्द्वानी पहुंचेगा।
हिमस्खलन की चपेट में आए थे कई जवान
प्राप्त जानकारी के अनुसार, लांस नायक चंद्रशेखर उस टीम का हिस्सा थे, जिसे प्वाइंट 5965 पर कब्जा करने का काम दिया गया था। इस पर पाकिस्तान की नजर थी। 29 मई 1984 को ऑपरेशन मेघदूत के दौरान कई सैनिक हिमस्खलन की चपेट में आ गए थे। इनमें से कइयों का पर्थिव शरीर का पता उसी समय लग गया था। लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला और एक सैनिक का शव नहीं पता चला था, जो अब 38 साल बाद मिला है।
16000 फीट से अधिक ऊंचाई पर मिला कंकाल
13 अगस्त को सियाचिन में 16,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर एक सैनिक का कंकाल मिला था। अवशेषों के साथ सेना के नंबर वाली एक डिस्क भी मिली, जिससे उनके पार्थिव शरीर का पता लगाया गया। इसकी जानकारी सुनकर हर्बोला के परिवार में गम और खुशी दोनों है।
13 अप्रैल 1984 को लांच हुआ था ऑपरेशन मेघदूत
बता दें कि ऑपरेशन मेघदूत में जवानों के शौर्य और अदम्य साहस को आज भी लोग भूले नहीं भुलाते। दुनिया के सबसे दुर्गम युद्धस्थल पर भारतीय जवानों के पराक्रम और शौर्य की वीर गाथा आज भी लोगों के जेहन में जिंदा है। भारतीय सेना ने 13 अप्रैल 1984 को सियाचिन ग्लेशियर में आपरेशन मेघदूत लॉन्च किया था।