डुमरियागंज से लौटकर आनंद सिंह की रिपोर्ट
“Bhishma” will win the battle of Dumariyaganj with “skillfulness”, age dominates Jagdambika Pal, even the organization and loved ones are not getting support, UP news, election 2024, dumariaganj election : कांग्रेस और भाजपा में लगभग पांच दशक तक सक्रिय राजनीति करने वाले जगदंबिका पाल इस बार डुमरियागंज से लोकसभा का चुनाव जीत पाएंगे, इसमें शुबहा है. यह शुबहा उनके ही करीबी लोग जता रहे हैं. उनके एक करीबी ने नाम न छापने की शर्त पर बतायाः इस बार पाल साहब की स्थिति खराब बताई जा रही है। हम लोग चिंतित हैं, लेकिन कर क्या सकते हैं. सूत्र बताते हैं कि जगदंबिका पाल अपने घर और पार्टी कार्यकर्ताओं की घोर नाराजगी झेल रहे हैं. बताया जाता है की श्री पाल के किचेन कैबिनेट के लोग भी इस बार उनके साथ नहीं है. वहीं दूसरी ओर इंडिया गठबंधन के बैनर तले साइकिल चुनाव चिह्न पर समाजवादी पार्टी की ओर से लड़ने वाले भीष्म शंकर तिवारी उर्फ कुशल तिवारी की स्थिति बेहद मजबूत बताई जा रही है.
बताया जाता है कि मुसलमानों के थोक वोट के साथ-साथ ब्राह्मणों का भी एक अच्छा खासा वोट बैंक कुशल तिवारी के पाले में आ गया है. इतना ही नहीं, सपा का जो परंपरागत यादव वोट है, वह भी कुशल तिवारी के साथ है हालांकि एक पेंच यह है कि एक तबके का वोटबैंक पूरी तरह उनके साथ नहीं है. यह तबका ऐसा है जो हर हाल में भाजपा के साथ जाएगा ही. बचा हुआ तबका कुशल के साथ आ जाए तो कोई अचरज नहीं, हालांकि अभी वक्त है और आने वाले 20 दिनों में कुछ भी संभव है. स्थानीय पत्रकार भी मानते हैं कि डुमरियागंज में भारतीय जनता पार्टी को इस बार धक्का लग सकता है. यहां कोई लहर नहीं है. बसपा कभी यहां एक फैक्टर होती थी. अब तो पूरे यूपी में बसपा 12.5 परसेंट की पार्टी बन कर रह गई है. बसपा में कन्फ्यूजन की स्थिति को समझना हो तो इसी से समझ लें कि बीते 10 दिनों में बहनजी ने यहां से दो उम्मीदवार बदल दिये हैं. ख्वाजा शमसुद्दीन पहले उम्मीदवार थे. उन्हें हटा कर अब मोहम्मद नजीम मिर्जा को उम्मीदवार बनाया गया है. शमसुद्दीन और नदीम, इन दोनों का ताल्लुक मूल रूप से गोरखपुर से रहा है. मुसलमान होने के नाते, मुस्लिम वोट बैंक सहेजने के नाते इन्हें डुमरियागंज भेजा गया. इस प्रकार, बसपा अब यहां कोई चुनौती दे पाएगी, इसमें संदेह है. चुनाव आमने-सामने का है.
भीष्म शंकर बनाम जगदंबिका पाल. कपिलवस्तु के एक पत्रकार बताते हैं कि इस बार जगदंबिका पाल के राह में सबसे बड़ा रोड़ा उनके स्वजातीय और पार्टी के ही असंतुष्ट बन गए हैं. वह जगदंबिका पाल की मदद नहीं कर रहे हैं. राजनीति के स्थानीय जानकार बताते हैं कि श्री पाल का कार्यकर्ताओं के प्रति नजरिया 2019 के बाद ही बदल गया था. यह भी कहा जा रहा है कि कार्यकर्ताओं को वह जो स्नेह देते थे, 2019 के परिणाम के बाद वह बंद हो गया। कार्यकर्ताओं का कहना है कि वे (श्री पाल) उनकी सुनते नहीं. उन्होंने उनसे (कार्यकर्ताओं से) नज़रें फेर लीं. कई ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं कि श्री पाल ने कुछ कमिटमेंट किया और फिर उसे पूरा नहीं किया. इससे भारतीय जनता पार्टी के जो मूल कैडर के लोग हैं, वह उनसे धीरे-धीरे क्षुब्ध होने लगे. भाजपा के कई लोग श्री पाल को आज भी कांग्रेसी ही समझते हैं. यही कारण है कि अब उनकी सभाओं में भीड़ नहीं होती और लोग भी धीरे-धीरे उनसे कन्नी काटने लगे हैं. ऐसा नहीं की श्री पाल का जनाधार खिसक गया हो लेकिन यह भी सत्य है कि श्री पाल बढ़ती उम्र के कारण उनके इफैक्टिव नहीं रह गये हैं. उधर कुशल तिवारी की बात करें तो दो बार वह सांसद रह चुके हैं और उन्हें पराजय का भी सामना करना पड़ा है लेकिन उनके साथ कार्यकर्ताओं का समूह पहले भी था और आज भी चट्टानी एकता के साथ खड़ा है. सुबह से देर रात तक वह गांव की पगडंडियों पर चल रहे हैं डोर टू डोर कैंपेन कर रहे हैं. गर्मी की परवाह किए बगैर वह लोगों से मिल रहे हैं और इसका एक बड़ा ही सुखद संदेश लोगों के बीच जा रहा है. अल्पसंख्यक वोटो की बात करें तो लगभग 40% अल्पसंख्यक वोट डुमरियागंज में हैं, जो समाजवादी पार्टी का कोर वोटर है. मुसलमानों के साथ-साथ यादवों की संख्या भी निर्णायक है और संजोग से मुसलमान और यादव अब तक समाजवादी पार्टी के साथ इंटैक्ट हैं. इस चुनाव में उत्तर प्रदेश के बड़े ब्राह्मण चेहरा रहे स्वर्गीय पंडित हरिशंकर तिवारी के पुत्र होने का लाभ निश्चित रूप से कुशल तिवारी को मिल रहा है.डुमरियागंज में कांग्रेस का भी जनाधार है. इसलिए सपा और कांग्रेस कुशल तिवारी को मजबूत करने में कोई कोताही नहीं बरत रही है. जिस तरीके से कुशल तिवारी लोगों से बेहद प्यार और अपनापन से मिल रहे हैं, उनकी ही भाषा में बात कर रहे हैं, उससे लगता नहीं कि कुशल तिवारी उनके लिए कोई नया उम्मीदवार हैं.
बड़े भाई और पूर्व सभापति का योगदान
कुशल तिवारी इस रणक्षेत्र में कतई अकेले नहीं उतरे हैं. इस रणक्षेत्र में उनके अनुज विनय शंकर तिवारी और विधान परिषद के पूर्व सभापति गणेश शंकर पांडेय भी उनके साथ ही हैं. एक योजना बनती है और तीनों उस पर अमल करते हैं. कोई दुविधा की स्थिति नहीं. इसका मैसेज यह है कि पूरा परिवार इंटैक्ट है और अगर भीष्म शंकर तिवारी चुनाव जीते तो जैसे परिवार को इंटैक्ट रखा है, वैसे ही पूरी संसदीय क्षेत्र को भी इंटैक्ट रखेंगे.
निज जीवन
जन्म गोरखपुर के टांडा गांव में 30 सितम्बर 1960 को हुआ था. इनके पिता का नाम पंडित हरिशंकर तिवारी और मां का नाम रामलली देवी था.
शुरुआत भाजपा से, फाइट देने में माहिर
भीष्म शंकर तिवारी ने बीजेपी के सदस्य के रूप में राजनीतिक शुरुआत की. सबसे पहले बलरामपुर लोकसभा से 1999 में इन्होंने भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और 34.7% मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे. इस चुनाव में हार के बाद यह सपा से जुड़ गए और 2004 में खलीलाबाद लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में आए लेकिन यहां भी वह बसपा के भाल चंद यादव से चुनाव हार गए. इस चुनाव में भालचंद यादव को 2,34,712 मत मिले. वहीं 2,07,689 मत पाकर तिवारी दूसरे स्थान पर रहे. 2007 में भीष्म शंकर तिवारी ने सपा का दामन छोड़ा और बहुजन समाज पार्टी से जुड़ गए. इसके बाद खलीलाबाद में हुए उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव में जीत दर्ज की. 2009 में खलीलाबाद सीट का नाम संतकबीर नगर लोकसभा सीट किया गया. संतकबीरनगर सीट से इन्होंने 2009 में फिर से बीएसपी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और भाजपा के शरद त्रिपाठी को 29496 मतों से हराकर विजयी हुए. फिर 2014 में हुए चुनाव में तिवारी ने बीएसपी के सिंबल पर फिर से संतकबीरनगर से चुनाव लड़ा लेकिन इस बार शरद त्रिपाठी ने इन्हें पराजित कर दिया. 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में श्री तिवारी ने सपा और बसपा गठबंधन के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा मगर इस बार भाजपा के प्रवीण निषाद से श्री तिवारी चुनाव हार गए. 2019 के चुनाव में प्रवीण निषाद को 4,64,998 मत मिले तो वही भीष्म शंकर तिवारी 4,29,507 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे.
बच्चे भी समर क्षेत्र में
चुनाव में कुशल तिवारी की पत्नी श्रीमती रीना तिवारी अपने ज्येष्ठ पुत्र ईशान शंकर तिवारी (जो हाल ही में अमेरिका के विश्व प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी जॉन्स होपकिन्स यूनिवर्सिटी से अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्र और विकास नीति में यूपी और बिहार की अर्थिक विकास नीति और नीतियों पर राजनीतिक प्रभाव पर शोध कर आए हैं) तथा सात्विक शंकर तिवारी को लगातार क्षेत्र में भेजकर चुनाव समीकरण और सुधार का अपडेट ले रहीं हैं।
(साथ में आशुतोष मिश्रा)