National top news, national news, national update, national news, new Delhi top news : देश के शीर्ष कोर्ट ने कहा है कि किसी भी व्यक्ति को शादी के सात वर्ष के भीतर आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी तब तक नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि उत्पीड़न के ठोस सुबूत नहीं मिले। सुप्रीम कोर्ट ने एक पति को बरी करते हुए यह टिप्पणी की जिस पर तीन दशक पहले अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप था।
न्यायाधीश जेबी पार्डीवाला व मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराने के लिए उत्पीड़न के आरोप पर्याप्त नहीं हैं। अदालतों को शादी के सात साल के भीतर महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने के मुकदमों में कानून के सही सिद्धांतों को लागू करने में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। अन्यथा धारणा बन सकती है कि दोषसिद्धि कानूनी नहीं, बल्कि नैतिक है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113ए उन मामलों में पति और ससुराल वालों की ओर से उकसाने की धारणा तब सिद्ध होती है, जब महिला ने शादी के सात साल में आत्महत्या की हो और उसके साथ क्रूरता हुई हो। अभियोजन पक्ष के मुताबिक, “आरोपित ने 1992 में शादी की थी। उसके तुरंत बाद उसने व उसके माता-पिता ने पैसे की मांग शुरू कर दी। पति राशन की दुकान खोलना चाहता था। महिला ने पति के उत्पीड़न के कारण 19 नवंबर, 1993 को जहर खाकर आत्महत्या की थी।” करनाल के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 1998 में पति को धारा 306 के तहत दोषी ठहराया था। पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट ने फैसले को कायम रखा।