पांच दिन के अंतराल में भारत ने दूसरी बार मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल (एमआरएसएएम) के दो सफल परीक्षण करके एयरोस्पेस की दुनिया में बुधवार को एक और कामयाबी हासिल की है। उन्नत मिसाइल का यह परीक्षण ओडिशा के तट पर एकीकृत परीक्षण रेंज चांदीपुर में किया गया। मिसाइलों ने हवाई लक्ष्यों को रोक दिया और दोनों सीमाओं पर सीधे हिट करते हुए उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर दिया।
25 मार्च को किया गया था पहला परीक्षण
डीआरडीओ प्रवक्ता के अनुसार इससे पहले मिसाइल (एमआरएसएएम) के नए वर्जन का परीक्षण 25 मार्च को किया गया था, जो पूरी तरह सफल रहा था। पांच दिन के अंदर ही आज सुबह ओडिशा के तट पर एकीकृत परीक्षण रेंज चांदीपुर में एक और फायर टेस्ट किया गया। हथियार प्रणाली के प्रदर्शन को आईटीआर, चांदीपुर में तैनात रडार, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल ट्रैकिंग सिस्टम और टेलीमेट्री जैसे रेंज उपकरणों ने कैप्चर किया और उड़ान डेटा को मान्य किया।एमआरएसएएम का यह उड़ान परीक्षण डीआरडीओ और भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में किया गया।
लंबी दूरी की मारक क्षमता है
भारतीय सेना संस्करण के यह दो सफल उड़ान परीक्षण उच्च गति वाले हवाई लक्ष्यों के खिलाफ लाइव फायरिंग हिस्से के रूप में किए गए थे। पहला प्रक्षेपण एक मध्यम ऊंचाई लंबी दूरी के लक्ष्य को रोकना था और दूसरा प्रक्षेपण कम ऊंचाई वाली छोटी दूरी के लक्ष्य की क्षमता को साबित करने के लिए था। दोनों मिसाइलों ने हवाई लक्ष्यों को रोककर दोनों सीमाओं पर सीधे हिट दर्ज करते हुए उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर दिया। नए वर्जन में बेस वेरिएंट की तुलना में काफी लंबी दूरी तक मारक क्षमता के अलावा अधिक सक्षम इलेक्ट्रॉनिक काउंटर-काउंटर मेजर्स (ईसीसीएम) विशेषताएं विकसित की गई हैं।
इजराइल के सहयोग से बनी मिसाइल
भारतीय सेना के लिए सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल एमआरएसएएम के इस संस्करण का विकास डीआरडीओ और इजराइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (आईएआई) ने संयुक्त रूप से किया है।एमआरएसएएम आर्मी वेपन सिस्टम में मल्टी-फंक्शन रडार, मोबाइल लॉन्चर सिस्टम और अन्य वाहन शामिल हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने और रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव और डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ. जी सतीश रेड्डी ने एमआरएसएएम के सेना संस्करण के सफल उड़ान परीक्षण में शामिल टीमों की सराहना की और कहा कि ये परीक्षण ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लिए प्रमुख मील के पत्थर हैं।
वायुसेना में हो चुकी है शामिल
मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली बराक-8 मिसाइल प्रणाली (एमआरएसएएम) काे भारतीय वायुसेना में शामिल किया जा चुका है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 09 सितम्बर, 2021 को जैसलमेर में एक कार्यक्रम में एमआरएसएएम को वायुसेना के 2204 स्क्वाड्रन में शामिल किये जाने की औपचारिकता पूरी की थी। इस मिसाइल में 50-70 किलोमीटर की दूरी पर दुश्मन के विमान को मार गिराने की क्षमता है। यह आकाश के बाद दूसरा मिसाइल डिफेंस सिस्टम है, जो वायुसेना में शामिल किया गया है। एमआरएसएएम से लैस करने के लिए जैसलमेर की स्क्वाड्रन 2204 का गठन किया गया है। इसी स्क्वाड्रन ने कारगिल वार के दौरान पश्चिमी सेक्टर में युद्ध परिचालन में अहम भूमिका निभाई थी।
हमारे लिए क्यों खास है हवाई रक्षा प्रणाली
एक सैन्य अफसर के म्अनुसार सेना की हवाई रक्षा के लिए एमआरएसएएम हर मौसम में 360 डिग्री पर काम करने वाली हवाई रक्षा प्रणाली है, जो किसी भी संघर्ष क्षेत्र में विविध तरह के खतरों के खिलाफ संवेदनशील क्षेत्रों की हवाई सुरक्षा करेगी। एमआरएसएएम का वजन करीब 275 किलोग्राम, लंबाई 4.5 मीटर और व्यास 0.45 मीटर है। इस मिसाइल पर 60 किलोग्राम तक हथियार लोड किए जा सकते हैं। यह मिसाइल दो स्टेज की है, जो लॉन्च होने के बाद कम धुआं छोड़ती है। एमआरएसएएम एक बार लॉन्च होने के बाद 70 किलोमीटर के दायरे में आने वाली किसी भी मिसाइल, लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर, ड्रोन और निगरानी विमानों को मार गिराने में पूरी तरह से सक्षम है। यह 2469.6 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से दुश्मनों पर प्रहार और हमला कर सकती है।