बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने राज्य के शहरों के विकास के लिए बने मास्टर प्लान को धरातल पर उतारने के लिए एक बड़ा फैसला किया है। अब इसके लिए जमीन की कमी नहीं रहेगी। जमीन अधिग्रहण के पुराने कानून में बदलाव के लिए विधानसभा में बिहार शहरी आयोजना तथा विकास संशोधन विधेयक 2022 पेश किया गया। विपक्ष के सांकेतिक विरोध के बीच यह ध्वनिमत से पारित हो गया। इसके साथ ही मास्टर प्लान की जरूरतों के मुताबिक सरकारी प्राधिकार की ओर से होने वाले जमीन अधिग्रहण में भू स्वामियों की सहमति की बाध्यता समाप्त कर हो गई।
पहले 80 प्रतिशत मालिकों की सहमति थी जरूरी
इससे पूर्व शहरी विकास के लिए अधिग्रहण के समय 80 प्रतिशत जमीन मालिकों की सहमति या कुल भू भाग के 80 प्रतिशत हिस्से के जमीन के मालिकों की सहमति की बाध्यता थी। मूल विधेयक के इस प्रविधान को समाप्त कर दिया गया है। उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने विधेयक पेश किया। उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य यह नहीं है कि सरकार किसी की जमीन जबरन हासिल कर ले। भू स्वामियों को निर्धारित मुआवजे का भुगतान किया जाएगा। शहरों के विकास के लिए जमीन का अधिग्रहण जरूरी है। यह शहरी क्षेत्र में सुविधाओं के विकास के लिए किया जा रहा है। इससे शहरों में सड़क, पार्क, खेल का मैदान, आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आवास आदि की व्यवस्था होगी।
विपक्ष ने किया विरोध
नियम में संशोधन के बावजूद निजी क्षेत्र के डेवलपर्स के मामले में पुराने नियम लागू होंगे। ऐसे डेवलपर्स जब विकास से जुड़ी परियोजना की मंजूरी के लिए सरकार के पास आवेदन करेंगे तो उन्हें 80 प्रतिशत जमीन मालिक या जमीन के 80 प्रतिशत हिस्से के मालिकों की सहमति से जुड़ा दस्तावेज पेश करना करना होगा। इसे पंजीकृत दस्तावेज या पंजीकृत विकास समझौता के रूप में आवेदन के साथ देना होगा। राजद के ललित कुमार यादव, समीर कुमार महासेठ और कांग्रेस के अजित शर्मा का कहना था कि संशोधन के बाद सरकार किसी की जमीन अपनी मर्जी से अधिग्रहीत करेगी। विधेयक पर विपक्ष के सभी संशोधन नामंजूर कर दिए गए।