Kolkata news : देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि देश की जनता न्यायालय को मंदिर समझती है। इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है कि इसमें बैठनेवाले न्यायाधीश खुद को देवता समझने लगें। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को संवेदनशील और सहानुभूति रखनेवाला बनना पड़ेगा।सीजेआई ने कलकत्ता हाई कोर्ट के बार एसोसिएशन की लाइब्रेरी के 200 साल पूरे होने के मौके पर एक विशेष परिचर्चा कार्यक्रम में बोल रहे थे। उनके साथ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मौजूद थीं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘जनता कहती है कि न्यायालय न्याय का मंदिर है। ऐसे में न्यायाधीश अगर खुद को देवता समझते हैं, तो यह बहुत बड़ी भूल होगी।
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न्यायाधीश जनता के सेवक हैं
मुझे लगता है कि न्यायाधीश जनता के सेवक हैं। वे मामलों की सुनवाई करें, लेकिन अपराध के प्रति पहले से कोई धारणा तैयार न करें। उन्हें सहानुभूति रखनी होगी। उन्हें इस बात का ख्याल रखना होगा कि हमारे सामने खड़ा हुआ शख्स मनुष्य है। न्यायाधीश भी सामाजिक रीति-रिवाजों के मुताबिक अपनी धारणा नहीं बना सकते। उन्हें संविधान के मुताबिक काम करना होगा। संवैधानिक नैतिकता कहती है कि एक भारतीय जो चाहे सोच सकता है, जो चाहे बोल सकता है। जिसकी चाहे पूजा कर सकता है, जिसका चाहे अनुसरण कर सकता है। किसी के साथ शादी कर सकता है और जो चाहे खा सकता है। संविधान में दी गयी स्वतंत्रता का हमेशा ख्याल रखना होगा।’
कोर्ट अपनी भाषा में जो फैसला सुनाता है, उसे जिस भाषा में चाहें अनुवाद कर सकते हैं
इसके बाद उन्होंने टेक्नोलॉजी का जिक्र करते हुए कह, ‘इससे हमें बहुत सारे मौके मिले हैं। कोर्ट अपनी भाषा में जो फैसला सुनाता है, उसे जिस भाषा में चाहें अनुवाद कर सकते हैं। हम लोगों (सुप्रीम कोर्ट) ने 51 हजार से अधिक आदेशों का कई भाषाओं में अनुवाद किया है। बंगाली और ओड़िया सहित संविधान जिस किसी भी भाषा की स्वीकृति देता है, उन सभी भाषाओं में अनुवाद किया जा सकता है।’ उन्होंने कहा, ‘मैं बंगाली और ओड़िया भाषा का जिक्र कर रहा हूं, क्योंकि मेरी पत्नी ओड़िया को बहुत पसंद करती हैं और बंगाली भी बहुत करीब है।’ उन्होंने कहा, ‘बहुत सारे हाई कोर्ट हैं, जो जमानत से सम्बन्धित मामलों में तत्परता नहीं दिखाते हैं। इसे लेकर मैं बहुत चिन्तित हूं। यह न्याय व्यवस्था का आदर्श मॉडल नहीं है।’