Dibrugarh news, Mohan Bhagwat : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि लोग “हम और वे, हमारे और उनके” में विभाजित हैं। जो लोग इन समूहों से परे जाना चाहते हैं और मानवता को बचाना चाहते हैं, वे अंत में एक अलग समूह बन जाते हैं। डॉ. भागवत आज इंटरनेशनल सेंटर फॉर कल्चरल स्टडीज के तत्वावधान में “प्राचीन परम्पराओं और संस्कृतियों के बुजुर्ग” विषयक पांच दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित कर रहे थे। सम्मेलन का आयोजन डिब्रूगढ़ स्थित वैली स्कूल परिसर में किया गया है। संघ प्रमुख ने 30 से अधिक देशों की 33 से अधिक प्राचीन परम्पराओं का प्रतिनिधित्व करनेवाली परम्पराओं और संस्कृतियों के बुजुर्गों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि वे अपने आसपास अत्यधिक आक्रामक वातावरण के बावजूद अपने प्राचीन परम्पराओं एवं विश्वासों को जीवित रखने का प्रयास करें; क्योंकि दुनिया को अब उनके ज्ञान की जरूरत है।
इसके बाद भी दुनिया संघर्षों का सामना कर रही है
उन्होंने कहा कि दो हजार साल की प्रगति और भौतिक समृद्धि के बावजूद, दुनिया संघर्षों का सामना कर रही है। बाहर या भीतर कोई शांति नहीं है। बच्चे बंदूक के साथ स्कूलों में जाते हैं और बिना किसी स्पष्ट कारण के लोगों को गोली मार देते हैं। ईर्ष्या और अहंकार है और मन की संकीर्णता के कारण संघर्ष है, जहां लोग “हम और वे, हमारे और उनके” में विभाजित हैं। जो लोग इन समूहों से परे जाना चाहते हैं और मानवता को बचाना चाहते हैं, वे अंत में एक अलग समूह बन जाते हैं। उन्होंने कहा कि नेता और विचारक पर्यावरण बचाने की बात करते रहे हैं, लेकिन बातचीत के अलावा कुछ भी ठोस नहीं हुआ है।
हम सब स्थिति को बदल सकते हैं
उन्होंने बताया कि कैसे 1951 में संयुक्त राष्ट्र के एक प्रस्ताव में प्राचीन दर्शन को खत्म करने और तेजी से आर्थिक प्रगति के एक लक्ष्य के लिए पुरानी सामाजिक संस्थाओं के विघटन के बारे में बात की गयी थी। डॉ. भागवत ने कहा कि इसे स्वीकार करना पड़ा कि वैश्विक विकास के लिए विकास की नीतियों में संस्कृति का एकीकरण आवश्यक था। हम, विभिन्न परम्पराओं से सम्बन्धित प्राचीन ज्ञान प्रणालियों को जानते थे।
सरसंघचालक डॉ. भागवत ने एक कहानी का जिक्र किया, जिसका सबक यह था कि सही ज्ञान के साथ, हम एक साथ आ सकते हैं और स्थिति को बदल सकते हैं और संघर्षों एवं पर्यावरणीय आपदा से मुक्त एक नयी दुनिया बना सकते हैं। एक ऐसी दुनिया, जिसमें प्राचीन ज्ञान के साथ शांति भी हो।