Home
National
International
Jharkhand/Bihar
Health
Career
Entertainment
Sports Samrat
Business
Special
Bright Side
Lifestyle
Literature
Spirituality

जीवन से विरक्ति : जीते जी खुदवाई अपनी और पत्नी की कब्र, बच्चों और धन-संपत्ति से भी तोड़ा नाता

जीवन से विरक्ति : जीते जी खुदवाई अपनी और पत्नी की कब्र, बच्चों और धन-संपत्ति से भी तोड़ा नाता

Share this:

Gajapati odisha news : भौतिक सुख संसाधनों से वशीभूत होकर एक आम आदमी जिंदगी जीने के जीवन में क्या कुछ नहीं करता। एक- एक पैसे जोड़ने में पूरी जिंदगी गुजर जाती है। जिम्मेदारियों का निर्वहन करते-करते हम असमय बूढ़े हो जाते हैं। उम्दा किस्म की सुख सुविधाओं के लिए धनोपार्जन करते वक़्त मानों हममें अच्छाइयों और बुराइयों का विभेद नहीं रह जाता। चोरी, डकैती, लूटमार, भ्रष्टाचार आदि इसकी ही तो बानगी है। लेकिन, आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस भौतिकतावादी युग में ओडिशा के गजपति जिले में एक ऐसे दंपति भी हैं, जो इसके अपवाद हैं। उन्होंने सुख-सुविधाओं को जीवन का सेकेंडरी पार्ट माना। एक न एक दिन सभी को जाना है, यह सोचकर उन्होंने अपने लिए आलीशान घर न बनाकर स्वयं और अपनी पत्नी के लिए कब्रें बनवा ली हैं। बहरहाल, इस दंपति कि यह सोच संबंधित इलाके में चर्चा की विषय-वस्तु बनी है।

भरा-पूरा परिवार व जी रहे एकांकी जीवन, जानें क्यों…

जी हां, यह कहानी गजपति जिले के सौरी गांव निवासी 80 वर्षीय लक्ष्मण भुइंया और उनकी 70 वर्षीय पत्नी जेंगी भुइंया की जी है। बेटे-बहू, बेटी-दामाद, नाती-पोतों से भरा पूरा परिवार होने के बावजूद वे एकांकी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। समाज की तमाम कुरीतियों का सामना करते हुए इन्होंने यह कदम उठाया है। इन्होंने न सिर्फ अपने बच्चों और रिश्तेदारों से नाता तोड़ डाला है, बल्कि चल-अचल संपत्ति का भी परित्याग कर दिया है। एक सामान्य सोच से विपरीत उन्होंने घर न बनाकर वैराग्य का रास्ता अपनाते हुए जीते जी अपनी और पत्नी की कब्र खुदवा डाली है।

रहते हैं एस्बेस्टस के घर में, कब्र में खर्च किये डेढ़ लाख

आपको बता दें यह दंपति आज भी एस्बेस्टस के घर में रहता है। जबकि कब्र के निर्माण पर उन्होंने लगभग डेढ़ लाख रुपए खर्च कर दिए हैं। उन्होंने स्वयं और अपनी पत्नी के लिए एक मकबरे के साथ संगमरमर निर्मित कब्र का निर्माण कराया है। इसके निर्माण में उन्होंने उनके पास बची शेष संपत्ति बेच डाली। लक्ष्मण बहरहाल हर दिन वहां जाकर कब्र को निहारते हैं, मानों वे अपने घर की रखवाली कर रहे हों। लक्ष्मण ने इस मसले पर दो टूक कहा कि मृत्यु के बाद मैं देख नहीं सकता कि मेरे बच्चे हमारे शरीर के साथ क्या करेंगे। इसलिए हमने कब्र का निर्माण कराया ताकि बच्चे सहूलियत से उन्हें दफना सकें और वे जीवन के बाद ही सही, शांति से सो सकें।

Share this: