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भिक्षा देना और स्वीकार करना मूल उद्देश्य से अलग हो गया है : मानवाधिकार आयोग

भिक्षा देना और स्वीकार करना मूल उद्देश्य से अलग हो गया है : मानवाधिकार आयोग

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New Delhi news: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के मुख्यालय में शुक्रवार को ‘भिक्षावृत्ति रोकने और भिक्षावृत्ति में लगेव्यक्तियों के पुनर्वास’ पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस दौरान एनएचआरसी की कार्यवाहक अध्यक्ष विजया भारती सयानी ने कहा कि तेजी हो रहे आर्थिक विकास, केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा लागू की गयी कल्याणकारी कार्यक्रमों के बावजूद भीख मांगने की प्रथा पर रोक नहीं लग पा रही है। पहले, भिक्षा देना और स्वीकार करना विनम्रता पैदा करने के उद्देश्य से आध्यात्मिक प्रथाओं का हिस्सा था, लेकिन अब वह भाव समाप्त हो गया है और अनेक प्रकार की विसंगतियां भी पैदा हो गयी हैं।

विजया भारती सयानी ने बताया कि 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 4 लाख 13 हजार से अधिक भिखारी थे। इनमें महिलाएं, बच्चे, ट्रांसजेंडर और बुजुर्ग शामिल हैं, जो जीवनयापन के लिए भीख मांगने को मजबूर हैं। पर यह भी दिखाई देने लगा है कि अब भीख मांगना एक धंधा बन गया है और इसमें आपराधिक प्रवृत्ति के साथ ही बच्चों तस्करी तक शामिल हो गयी है।

सयानी ने आगे कहा कि सामाजिक उपेक्षा के कारण शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के पास दैनिक जीविका के लिए दूसरों पर निर्भर रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। इन व्यक्तियों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए एनएचआरसी समर्पित है और यह सुनिश्चित करता है कि उनके साथ मानवीयतापूर्ण व्यवहार किया जाये।

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