Madhya Pradesh news, khargone news, shakuntalam mohanam virdha sansthan : अपने झारखंड की धरा के लिए वह क्षण कितना गर्व का रहा होगा जब उसके एक सपूत ने अपने कार्य-कौशल का परचम राज्य से लगभग 1012 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित किसी दूसरे राज्य में फहराया होगा। बात हो रही है मध्य प्रदेश की। वहां एक जिला है खरगोन। इस जिले के महेश्वर थानान्तर्गत गवला क्षेत्र आता है, जहां शकुंतलम मोहनम वृद्धावस्था सेवा संस्थान अवस्थित है। इस संस्थान को स्थापित करनेवाले शख्स हैं मदन मुरारी सिन्हा। सवा एकड़ जमीन में उन्होंने इस वृद्धावस्था सेवा संस्थान का निर्माण कराया है।
मदन जी के पिता मोहन प्रसाद सिन्दरी में ही सेवारत थे
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श्री सिन्हा का वनों के प्रदेश झारखंड की मिट्टी से गहरा सम्बन्ध है। वह इस राज्य के धनबाद जिला स्थित सिन्दरी के सपूत हैं। बीआईटी सिन्दरी से अपनी शिक्षा पूरी करनेवाले मदन जी के पिता मोहन प्रसाद सिन्दरी में ही सेवारत थे। बाद में उनका स्थानांतरण मध्य प्रदेश हो गया। उसके बाद सिन्हा परिवार पूरी तरह वहीं शिफ्ट हो गया। शकुंतलम मोहनम वृद्धावस्था सेवा संस्थान की बाबत जन-जिज्ञासा के मद्देनजर हिंदी न्यूज़ पोर्टल ‘समाचार सम्राट’ ने संस्थापक मदन मुरारी सिन्हा से बातचीत की। हमने जानने का प्रयास किया कि इस संस्थान की स्थापना कब हुई…उसकी पृष्ठभूमि क्या रही…प्रेरणा कहां से मिली…और, भविष्य में लक्ष्य क्या है।
पूरी विनम्रता और आत्मीयता के साथ उन्होंने बताया कि 2019 में संस्थान की स्थापना के निमित्त सरकार के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया गया। दो वर्षों तक विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरने के उपरान्त 2021 में इसे मान्यता प्राप्त हुई। श्री सिन्हा कहते हैं, ‘2005 में मेरे पिता मोहन प्रसाद की मृत्यु हो गयी और इसके ठीक एक वर्ष के अंतराल 2006 में माता शकुंतला देवी चल बसीं। बड़े ही साधारण तरीके से मैंने उन्हें विदा किया। लेकिन, तब से ही मन में एक सवाल कौंधने लगा कि मैंने अपने जीवन में क्या किया ? अपने मां-बाप से मिले संस्कारों को मैंने कितना अमलीजामा पहनाया।’ वह बताते हैं, ‘बस, यहीं से जुनून सवार हो गया कुछ करने का…कुछ ऐसा कर जाने का, जो मेरे दुनिया से जाने के बाद भी मुझे लम्बे समय तक लोगों के दिलों में जिन्दा रखे।’
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मां का नाम शकुंतला और पिता का नाम मोहन
श्री सिन्हा ने कहा, ‘फिर क्या था, लग गया अपने मिशन में। मां का नाम शकुंतला और पिता का नाम मोहन था। अत:, मां-बाबूजी के नाम पर ही संस्थान का नामकरण किया ‘शकुंतलम मोहनम’। लक्ष्य रखा गया कौशल विकास। उन्होंने कहा, ‘हमारे देश में 60 वर्ष और उससे अधिक की आयु के बाद मूलत: लोग विभिन्न कारणों से समाज में अपना योगदान नहीं दे पाते हैं। हमने अपना लक्ष्य बनाया कि यहां हम अपने ट्रस्ट के माध्यम से आस-पास के समाज, स्कूलों, गांवों, संस्थानों आदि में उनके कौशल और अनुभव के आधार पर उनकी क्षमता विकसित करेंगे। ऐसा करने पर स्वाभाविक रूप से उन्हें इसका लाभ मिलेगा।
सवा एकड़ जमीन में स्थापित इस संस्थान
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मदन मुरारी सिन्हा ने बताया कि उनकी परिकल्पना के मूल में मुख्यत: सेवानिवृत्त लोग हैं। इन्हें ही इसमें प्राथमिकता दी जायेगी। सवा एकड़ जमीन में स्थापित इस संस्थान में 300 मीटर में जॉगिंग ट्रैक है…योगा ट्रैक है। खेतीबाड़ी भी होती है। अपने खेत की शुद्ध सब्जी लोगों को खिलाई जाती है। अकस्मात सेवा के लिए एम्बुलेंस भी उपलब्ध है। संस्थान में दाखिल होने के लिए सालाना डेढ़ लाख रुपये योगदान के रूप में लिये जाते हैं। कोई दो साल के लिए आया, तो योगदान राशि कम हो जाती है। इसी तरह तीन साल से पांच साल तक रहनेवाले का सालाना योगदान और कम हो जायेगा। दस साल तक के लिए कोई रहना चाहे, तो योगदान अपेक्षाकृत काफी कम हो जायेगा। उन्होंने बताया कि वृद्धावस्था सेवा संस्थान में रहनेवाले लोगों को संस्थान की तरफ से ही विद्यालयों, उद्योगों, कल-कारखानों अथवा उनकी दक्षता के अनुरूप वाले संस्थानों-प्रतिष्ठानों में समायोजित भी करा दिया जायेगा।
शकुंतलम मोहनम का उद्देश्य बहुत बड़ा
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वह कहते हैं, ‘प्रत्येक सदस्य, जो हमारे ट्रस्ट का हिस्सा होंगे, उन्हें अपने विचारों को खोजने…व्यक्त करने…और, हमारे समाज की बेहतरी में योगदान करने की स्वतंत्रता होगी। हमारे ट्रस्ट का हिस्सा बननेवाले सभी सदस्यों को अपने घर से दूर घर जैसा एहसास होगा और उन्हें अपनी बेहतरी के लिए आवश्यक सभी दैनिक सुविधाएं मिलेंगी।
मदन मुरारी सिन्हा ने कहा, ‘समाज में बदलाव के हम वाहक बनने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि ‘मेक इन इंडिया’ में योगदान दे सकें।’ बहरहाल, शकुंतलम मोहनम का उद्देश्य निश्चित रूप से बहुत बड़ा है। डगर जितनी कठिन है, लक्ष्य भी उतना ही बड़ा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह संस्थान अपने सुकृत्यों से एक आदर्श स्थापित करेगा।