National News Update, SriHarikota, Lander Module Vikram Successfully Softly Landed On The Moon : 23 अगस्त 2023 भारत के वैज्ञानिक इतिहास का अमर और अविस्मरणीय दिन। पूर्व निर्धारित समय के अनुसार आज शाम 6:04 बजे हमारा लैंडर माड्यूल विक्रम चंद की सतह पर कामयाबी के साथ उतर गया। हमारा मिशन चंद्रयान-3 सफल हो गया। वैज्ञानिकों के साथ इस देश के 140 करोड लोगों ने गौरव का एहसास किया और यह महसूस हुआ कि अब चंदा मामा दूर के नहीं रहे। हम उनके घर में प्रवेश कर गए हैं। यह सफलता हासिल करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन चुका है। लैंडर विक्रम जैसे ही चांद पर उतरा, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दक्षिण अफ्रीका से राष्ट्र को संबोधित किया। सभी वैज्ञानिकों के साथ ही देश की जनता को बधाई दी।
साउथ पोल पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश
भारत के पहले पहले अमेरिका, USSR (पूर्व सोवियत संघ) और चीन ये कारनामा कर चुके हैं। भारत के चंद्रयान-3 की सबसे खास बात ये है कि वह साउथ पोल (दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र) पर उतरा, जो अब तक कोई भी देश नहीं कर पाया था।
ऐसे हुई चंद्रयान-3 की लैंडिंग
विक्रम लैंडर 25 किलोमीटर की ऊंचाई से चांद पर उतरने की यात्रा शुरू की। अगले स्टेज तक पहुंचने में उसे करीब 11.5 मिनट लगे। यानी 7.4 किलोमीटर की ऊंचाई तक। 7.4 km की ऊंचाई पर पहुंचने तक इसकी गति 358 मीटर प्रति सेकेंड थी। अगला पड़ाव 6.8 किलोमीटर था। इसके बाद 68 km की ऊंचाई पर गति कम करके 336 मीटर प्रति सेकेंड हो गई। अगला लेवल 800 मीटर था। 800 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर के सेंसर्स चांद की सतह पर लेजर किरणें डालकर लैंडिंग के लिए सही जगह खोजने लगे।
150 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की गति 60 मीटर प्रति सेकंड थी
150 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की गति 60 मीटर प्रति सेकेंड थी। यानी 800 से 150 मीटर की ऊंचाई के बीच। 60 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की स्पीड 40 मीटर प्रति सेकेंड थी। यानी 150 से 60 मीटर की ऊंचाई के बीच। 10 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की स्पीड 10 मीटर प्रति सेकेंड थी। चंद्रमा की सतह पर उतरते समय यानी सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडर की स्पीड 1.68 मीटर प्रति सेकेंड थी।
14 जुलाई को हुई थी लॉन्चिंग
चंद्रयान-3 14 जुलाई को लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (एलवीएम3) रॉकेट के जरिए प्रक्षेपण किया गया था। इसकी कुल लागत 600 करोड़ रुपये है।
5 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में किया था प्रवेश
चंद्रयान-3 ने 14 जुलाई को प्रक्षेपण के बाद 5 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया था। प्रोपल्शन और लैंडर मॉड्यूल को अलग करने से पहले इसे 6, 9, 14 और 16 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में नीचे लाने की कवायद की गई, ताकि यह चंद्रमा की सतह के नजदीक आ सके।
साउथ पोल पर लैंडिंग मुश्किल क्यों
साउथ पोल पर लैंडिंग मुश्किल इसलिए होती है क्योंकि ये बेहद रहस्मयी जगह है। यहां सूरज हमेशा क्षितिज पर होता है। परछाई बेहद लंबी बनती है। रोशनी में भी सतह पर साफ नहीं दिखाई देता। लैंडिंग के दौरान बेहद धूल उड़ती है। सेंसर और थ्रस्टर खराब होने का डर रहता है। कैमरे के लेंस पर धूल जलमने से मुश्किल आ जाती है। सही दूरी का पता लगाने में भी कठिनाई संभव होती है। जबकि लैंडिंग मुश्किल होने की दूसरी वजह है चांद पर वायुमंडल न होना। इस वजह से पैराशूट लेकर उतर नहीं सकते। नीचे उतरने के लिए थ्रस्टर्स की ज़रूर पड़ती है। थ्रस्टर्स के लिए भारी मात्रा में ईंधन जरूरी होता है। सीमित ईंधन होने से गलती की गुंजाइश नहीं होती। इसके अलावा चांद पर कोई GPS भी नहीं होता। जिसके चलते लोकेशन बताने वाला सैटेलाइट काम नहीं करता। ऐसे में लैंडिंग की सटीक पोजिशन पता लगाना मुश्किल हो जाता है।