उत्तर प्रदेश के वाराणसी में मौजूद ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। हाल ही में हुए सर्वे की लीक रिपोर्ट का हवाला देकर कहा जा रहा है कि मस्जिद में मंदिर के कई प्रमाण मिले हैं। ऐसे में अपने बीच एक शख्स ऐसा भी है, जो मस्जिद से मंदिर का प्रमाण जुटाने के लिए मुस्लिम बनकर ज्ञानवापी के अंदर गये थे। हम बात कर रहे हैं हरिहर पांडेय की। वहीं हरिहर पांडेय जो ज्ञानवापी मुकदमे के मुख्य पक्षकार हैं। आइए जानते हैं हरिहर पांडेय ने 1991 में ज्ञानवापी परिसर में क्या-क्या देखा था।
जालीदार टोपी पहन कर रात एक बजे गए थे परिसर में
1991 के ज्ञानवापी मुकदमे के मुख्य पक्षकार हरिहर पाण्डेय ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि वह 1991 में मंदिर के सबूतों को इकट्ठा करने के लिए मुसलमान बनकर ज्ञानवापी परिसर में गये थे। उन्होंने कहा कि उस वक्त मैं रात एक बजे जालीदार टोपी पहनकर ज्ञानवापी परिसर में गया। वहां मैंने मंदिर का ढांचा देखा। मैंने अपनी आंखों से मंदिर के सबूत देखे और कोर्ट को आकर बताया।
मलबा हटाया तो ज्योतिर्लिंग दिखेगा
उन्होंने कहा कि मैंने ज्ञानवापी परिसर में कलश, कमल, हाथी, मगरमच्छ की आकृतियां देखीं। मैंने देखा कि मंदिर के मलबे को पत्थरों से ढक कर रखा गया है और उसके ऊपर इमारत बनाई गई है। मलबा हटाना चाहिए, मलबा हटेगा तो ज्योतिर्लिंग दिखेगा। परिसर में कई शिवलिंग मिलेंगे। उन्होंने कहा कि बाबा मंदिर को बड़े ही साजिश के तहत मुगलों ने तहस-नहस किया है। यह मस्जिद नहीं बल्कि बाबा भोलेनाथ का मंदिर है।
बाबा विश्वनाथ को आजाद करा कर रहेंगे
उन्होंने बताया कि उनके खुलासे के बाद मुस्लिम पक्ष उनसे मिलने पहुंचा था और पूछा था कि समाधान के क्या विकल्प हैं। तो मैंने मुस्लिम पक्ष को बताया कि सड़क किनारे मेरी आठ बीघे जमीन आप ले लीजिए और मस्जिद शिफ्ट कर लीजिए, लेकिन वो लोग तैयार नहीं हुए। इसके बाद मैंने उन सब उसे कहा की हम मंदिर लेकर रहेंगे और फिर मुस्लिम पक्ष चला गया। मैं ही आखिरी व्यक्ति इस केस में जिंदा बचा हूं, मेरे साथ के दो पक्षकारों की मौत हो चुकी है। मैं अंतिम सांस तक यह केस लड़ूंगा, मेरे बाद मेरे बेटे लड़ेंगे, लेकिन बाबा विश्वनाथ को आजाद कराएंगे।
ज्ञानकूप और ज्ञानवापी के बारे में क्या कहा
उन्होंने कहा कि देश की जनता को यह भी पता होना चाहिए कि ज्ञानकूप और ज्ञानवापी का अर्थ क्या है? उन्होंने कहा कि जब शिवजी जगत जननी माता पार्वती जी के साथ काशी आए तो स्वयंभू ज्योतिर्लिंग के जलाभिषेक के लिए जल की आवश्यकता थी, तो शिवजी ने अपने त्रिशूल से ज्ञानकूप बनाया और फिर जलाभिषेक हुआ। पार्वती जी को इसी स्थान पर शिवजी ने ज्ञान दिया। इसीलिए यह परिसर ज्ञानवापी कहलाता है।