Indian railway news, Indian Railway update, Darjeeling mail, New Jalpaiguri : अपने देश भारत के उत्तर बंगाल में एक कहावत मशहूर है कि दार्जिलिंग मेल के आगमन के साथ ही न्यू जलपाईगुड़ी जागता और शाम को उसके प्रस्थान के साथ ही सो जाता है। यह वह ट्रेन है, जिसकी शुरुआत आजादी से भी काफी पहले, यूं कहें 145 वर्ष पहले हुई थी। इस अवधि में काफी बदलाव हुए, परंतु यह ट्रेन आज भी कोलकाता और सिलीगुड़ीवासियों के लिए सबसे भरोसेमंद और लोकप्रिय ट्रेन बनी हुई है। इसका नाम है सियालदह- हल्दीबाड़ी-सियालदह दार्जिलिंग मेल।
तब कलकत्ता था कोलकाता, 1848 में चली थी ट्रेन
1848 में जब यह ट्रेन पटरी पर दौड़ना शुरू की,तब कोलकाता को कलकत्ता कहा जाता था। उस समय कोलकाता से सिलीगुड़ी तक का रेल मार्ग दो चरणों में था। पहले चरण में 184.9 किलोमीटर लंबी यात्रा पूर्वी बंगाल राज्य रेलवे के कलकत्ता स्टेशन से शुरू होकर पद्मा नदी के दक्षिणी तट दमूकडीह घाट तक था। इसके बाद यात्री नदी पार करने के लिए नौका का सहारा लेते थे। फिर दूसरे चरण की यात्रा 363.1 किमी मीटर गेज लाइन की थी, जो उत्तर बंगाल रेलवे और सियालदह के बीच पद्मा के उत्तरी तट पर साराघाट को सिलीगुड़ी से जोड़ती थी। बाद में 1912 में पद्मा नदी पर 1.8 किलोमीटर लंबा हार्डिंग ब्रिज का निर्माण हुआ। इसके बाद 1916 में ब्रिज के उत्तर में मीटर-गेज सेक्सन को ब्रॉड गेज में बदल दिया गया और इस तरह पूरा कलकत्ता- सिलीगुड़ी रेल मार्ग ब्रॉड-गेज में तब्दील हो गया।
तब गंगा नदी पर नहीं था कोई पुल, 60 के दशक में आये कई क्रांतिकारी परिवर्तन
देश की आजादी के वक़्त तक तब कोलकाता और सिलीगुड़ी को जोड़ने में बड़ी बाधा थी पश्चिम बंगाल या बिहार में गंगा नदी पर कोई ब्रिज नहीं होना। सिलीगुड़ी के लिए आम तौर पर एक ही रुट था जो वाया साहिबगंज लूप से राजमहल तक था। इसके बाद नाव द्वारा गंगा नदी को पार कर दूसरी तरफ मनिहारी घाट तक जाना पड़ता था। इसके बाद किशनगंज वाया मनिहारी, कटिहार और बारसोई के रास्ते नैरो गेज के माध्यम से सिलीगुड़ी जाना पड़ता था। 1949 में किशनगंज-सिलीगुड़ी सेक्शन को भी मीटर गेज में परिवर्तित कर दिया गया। इस बीच 1960 के दशक में जब फरक्का बैराज का निर्माण हुआ तो रेल परिचालन की दिशा में कई क्रांतिकारी परिवर्तन किये गए। भारतीय रेलवे ने कोलकाता से एक नया ब्रॉड-गेज रेल लिंक बनाया और साथ ही सिलीगुड़ी टाउन के दक्षिण में एक ग्रीनफील्ड साइट बनाया गया, जिससे यह पूरा रुट नया ब्रॉड-गेज जंक्शन बन गया। बाद में गंगा नदी पार करने के लिए 2,256.25 मीटर लंबा फरक्का बैराज रेल-सह-सड़क ब्रिज का निर्माण हुआ।