Political crisis in Rajasthan : कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव राजस्थान में पार्टी के लिए अब गले की हड्डी बन गई है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष पद की दावेदारी के बाद पार्टी आलाकमान ने राजस्थान में मुख्यमंत्री का पद युवा और तेजतर्रार नेता सचिन पायलट को देने का लगभग फैसला कर चुका था। लेकिन अशोक गहलोत के 80 से ज्यादा विधायकों के इस्तीफे के बाद अब राजस्थान में कांग्रेसी सरकार संकट में फंस गई है। रविवार की देर रात कांग्रेस के 80 से ज्यादा विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को अपना इस्तीफा सौंपा है। राजस्थान में आए इस संकट के पीछे राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का हाथ माना जा रहा है। आलाकमान इस स्थिति के लिए अशोक गहलोत को ही जिम्मेदार मान रहा है। ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व उन पर बड़ी कार्रवाई भी कर सकता है। अशोक गहलोत के समर्थक विधायक नहीं चाहते कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री का पद दिया जाए।
प्रताप का दावा- 92 विधायकों ने दिया इस्तीफा
इधर, गहलोत सरकार के कद्दावर मंत्री और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी प्रताप खाचरियावास ने 92 विधायकों के इस्तीफे की बात स्वीकारी है। उन्होंने बताया कि कांग्रेस नेतृत्व ने विधायकों की राय के बिना अपना फैसला सुना दिया है। ठीक बात नहीं है। मुख्यमंत्री के चुनाव में आलाकमान को कम से कम विधायकों से रायशुमारी जरूर करनी चाहिए थी। जब उनसे पूछा गया कि क्या राजस्थान में कांग्रेस की सरकार गिरने वाली है तो उन्होंने कहा इतनी जल्दी सरकारें नहीं गिरतीं।
प्रेशर पॉलिटिक्स का खेल खेल रहे अशोक गहलोत!
खाचरियावास द्वारा दिए गए बयान से ऐसा प्रतीत हो रहा है की अशोक गहलोत खेमे का इसमें गेम प्लान छिपा है। वैसे गहलोत अपनी सरकार नहीं गिराना चाहते हैं, बल्कि वह कांग्रेस आलाकमान पर इस बात का दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि राजस्थान का फैसला उनकी सहमित के आधार पर ही हो। गहलोत की इच्छा है कि 2020 में बगावती तेवर दिखा चुके पायलट और उनके नजदीकी विधायकों को छोड़कर अन्य किसी को सत्ता सौंपी जाए। इसमें स्पीकर सीपी जोशी सबसे आगे चल रहे हैं। गहलोत गुट के सभी विधायकों ने स्पीकर को इस्तीफा जरूर सौंपा है, परंतु उनकी सदस्यता तब तक खत्म नहीं होती, जब तक स्पीकर इन्हें मंजूर नहीं कर लेते। यह स्पष्ट है कि स्पीकर अभी इस्तीफों पर कोई फैसला नहीं करने जा रहे हैं।
कांग्रेस नेतृत्व नहीं झुका तो क्या हो सकता है
अशोक गहलोत खेमे के विधायकों के तेवर को आलाकमान को सीधी चुनौती के रूप में भी देखा जा रहा है। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी भी पायलट के नाम पर सहमत हैं। लेकिन अब पायलट का इस तरह विरोध करके एक तरह के आलाकमान के फैसले का विरोध किया गया है। जानकारों की मानें तो यदि गहलोत कैंप ने अपना फैसला नहीं बदला तो पार्टी नेतृत्व बड़ा फैसला ले सकता है। यह फैसला अशोक गहलोत को भारी भी पड़ सकता है। अशोक गहलोत ने अध्यक्ष बनने के पहले ही गांधी परिवार के प्रभुत्व को खुली चुनौती दे दी है। यह उनके खिलाफ जा सकता है।
कांग्रेस नेतृत्व को सता रहा पायलट खेमे का डर
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भले ही अपनी सरकार को नहीं गिराना चाहते। गेम प्लान के तहत उनके समर्थन में विधायकों ने इस्तीफा दिया है। वर्तमान परिस्थितियों में अशोक गहलोत के कैंप द्वारा जिस तरह का खुला विरोध पायलट का हो रहा है, उससे संभव है कि सचिन पायलट का भी ‘सब्र’ टूट जाए। यदि आलाकमान स्थिति को संभालने में नाकाम रहा तो सचिन पायलट का खेमा भी अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल सकता है। माना जा रहा है कि पायलट के पास करीब 25 विधायक हैं, जो उनके कहने पर पार्टी छोड़ सकते हैं। ऐसा हुआ तो भी सरकार का बचना मुश्किल हो जाएगा।
जानें क्या है राजस्थान विधानसभा का अंकगणित
फिलहाल 200 सीटों वाली राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस के 108 विधायक हैं। सरकार को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के 2, भारतीय ट्राइबल पार्टी के 2, राष्ट्रीय लोकदल के एक और 13 निर्दलीय का समर्थन प्राप्त है। कांग्रेस के 108 विधायकों में करीब 80-90 गहलोत कैंप में है और करीब 25 विधायक पायलट कैंप के हैं। विपक्ष की बात करें तो भाजपा के पास 71 विधायक हैं और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के पास 3 सदस्य हैं। ऐसे में सचिन पायलट ने यदि कड़ा रुख अपना लिया तो काग्रेस को लेने के देने पड़ जाएंगे।