National News : आज के कुछ दिन पहले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर चिंता जताई थी। उनकी चिंता पर वाजिब चर्चा भी हुई, लेकिन मोदी सरकार के अन्य मंत्री अथवा RSS और BJP की किसी कद्दावर हस्ती ने उस पर विशेष ध्यान नहीं दिया था। अब मामला कुछ अलग ही टर्न लेता दिख रहा है। जिस मुद्दे को राहुल गांधी वर्षों से उठाते रहे हैं, उसके महत्व को अब RSS ने भी पहचानना शुरू कर दिया है। भले सीधे वह मोदी सरकार पर कोई सवाल न उठाए, देश के लिए यह सुखद बात है। लेकिन, अमल में इस पर क्या किया जाएगा, इसका कोई खाका सामने नहीं है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दतात्रेय होसबोले ने भी देश में महंगाई, बेरोजगारी और अमीर-गरीब के बीच लगातार बढ़ती जा रही आय की असमानता को राक्षस जैसी चुनौती बताते हुए इस हालात पर चिंता जताई है।
क्या बोले दत्तात्रेय होसबोले…
दतात्रेय होसबोले ने कहा कि पिछले 75 वर्षों में भारत ने कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है, लेकिन देश में गरीबों की संख्या, बेरोजगारी की दर और आय की असमानता अभी भी राक्षसों की तरह चुनौती बनी हुई है और इसे खत्म करना बहुत जरूरी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच द्वारा स्वावलंबी भारत अभियान के अंतर्गत 2 अक्टूबर को आयोजित वेबिनार कार्यक्रम ‘स्वावलंबन का शंखनाद में बोलते हुए दतात्रेय होसबले ने कहा कि कि देश में आज भी 20 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। देश के 23 करोड़ लोगों की प्रति व्यक्ति आय 375 रुपये से भी कम है। उन्होंने आगे कहा कि देश में बेरोजगारी की दर 7.6 प्रतिशत है और चार करोड़ लोग बेरोजगार हैं। देश के ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में बेरोजगारी की स्थिति को चिंताजनक बताते हुए संघ के वरिष्ठ नेता ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र में 2.2 करोड़ लोग बेरोजगार हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में 1.8 करोड़ लोग बेरोजगार हैं। उन्होंने कहा कि देश के एक प्रतिशत अमीर लोगों की आय देश के सभी लोगों की आय का 20 प्रतिशत है, जबकि देश की आधी आबादी (50 प्रतिशत) के हिस्से में कुल आय का सिर्फ 13 प्रतिशत हिस्सा ही आता है।
संघ की खामोशी टूटना महत्वपूर्ण
ध्यान दीजिए, गरीबी, बेरोजागरी को लेकर न तो न्यूज चैनलों में चर्चा की जाती है और न ही अखबारों की सुर्खियों मे इनके लिए जगह है। शायद यही वजह है कि मोदी सरकार के लिए ये मुद्दे मायने नहीं रखते, लेकिन अब सरकार में शामिल लोग और उनके सहयोगी भी गरीबी, बेरोजगारी और अमीर-गरीब के बीच लगातार बढ़ती खाई को लेकर अपनी खामोशी तोड़ रहे हैं।