Devotion and reverence flashes in emotion. श्रद्धा और भक्ति भावना में झलकती है। जैसी भावना,वैसी भक्ति। यदि भक्ति के आधार को दबा दिया गया,तो कैसे रहेगी भावना। कुछ ऐसा ही उदाहरण श्रीनगर के एक मंदिर में देखने को मिला। नवरात्र के समय यहां नवरेह का पर्व मनाया जाता है, लेकिन इस साल यह दिन कुछ खास रहा। करीब 32 सालों के बाद श्रीनगर में माता शारिका देवी मंदिर खास तरीके से सजा और इसमें एक बार फिर कश्मीरी पंडितों ने पूजा की।
हिंसा के दौर में पलायन के लिए मजबूर लोगों ने भी की पूजा
इस दौरान पूजा में शामिल होने वालों में वे लोग भी थे, जो हिंसा के दौर में पलायन के लिए मजबूर हुए थे। माता की भक्ति में शामिल हुए लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं था। साथ ही वे अपने पिछले और नए अनुभवों को भी साझा कर रहे थे। कश्मीरी पंडित कैलेंडर के अनुसार, नवरेह, नववर्ष का पहला दिन होता है। कार्यक्रम में सांसद सुब्रमण्यम स्वामी मुख्य अतिथि थे।
‘हरी पर्वत’ पर है सारिका देवी मंदिर
श्रीनगर के मध्य में ‘हरी पर्वत’ नाम की छोटी पहाड़ी पर मौजूद माता शारिका देवी मंदिर में 2 अप्रैल का नजारा कुछ अलग था। तीन दशक से भी ज्यादा समय के बाद यह मौका आया था, जब कश्मीरी पंडित नवरेह के मौके पर माता की पूजा कर रहे हैं। इन्हीं लोगों में डॉक्टर रवीश का नाम भी शामिल है। मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि वे नहीं बता सकते हैं कि यहां आकर कैसा लग रहा है। रवीश बताते हैं कि जीवन के शुरुआती 20 सालों तक वे मंदिर आते रहे और यहां प्रार्थना करते थे। घाटी में दोबारा बसने की उम्मीद रखे लोगों में कश्मीरी पंडित विजय रैना भी हैं। उन्होंने कहा कि नए साल के दिन इस माहौल से विस्थापित हुए लोगों में अच्छा संदेश जाएगा। पहले हम सोचते थे कि यहा वापसी नहीं हो पाएगी, लेकिन अब स्थिति सुधर रही है और लग रहा है कि पंडित समुदाय जल्द ही लौटेगा।