भारत की वर्तमान स्थिति पर देश के तीन बड़े मुस्लिम संगठनों ने चिंता व्यक्त की है। इन संगठनों के जिम्मेदारों का आरोप है कि केंद्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी अपने खास मकसद और एजेंडे के तहत समाज में नफरत का जहर घोलने का काम कर रही है। मुस्लिम संगठनों ने दिल्ली में दो दिवसीय सम्मेलन आयोजित करने का फैसला किया है। 20-21 मई को इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर में आयोजित होने वाले इस सम्मेलन में देश के कई और बड़े संगठन शामिल हो रहे हैं। संगठनों का कहना था कि सम्मेलन में देश के ताजा हालात पर चर्चा कर आगे की रणनीति बनाने का काम किया जाएगा।
हिंदू भी विघटनकारियों के भेदभाव का शिकार
ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस मुशावरत के अध्यक्ष नवेद हामिद, जमात-ए-इस्लामी हिंद के अमीर इंजीनियर सआदतउल्ला हुसैनी, जमीयत अहले हदीस के अमीर मौलाना असगर अली इमाम सल्फी मेहंदी ने कहा कि देश की सबसे बड़े बहुसंख्यक हिंदू भी विघटनकारी ताकतों के भेदभाव का शिकार हैं और सांप्रदायिकता के चपेट में हैं। हिंदूवादी लीडरों के तरफ से दिए जाने वाले भाषणों में मुसलमानों का नरसंहार करने की धमकियां दी जा रही हैं। भीड़तंत्र के जरिए मॉबलिंचिंग की बढ़ती घटनाएं और मुसलमानों का आर्थिक बायकाट करने के मंसूबे सामने आ रहे हैं। केंद्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी संसद में बहुमत के बल का गलत इस्तेमाल करते हुए ऐसे कानून बना रही है, जिसके जरिए मुसलमानों की नागरिकता पर सवाल खड़ा किया जा रहा है। धार्मिक स्वतंत्रता को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है और अपनी संस्कृति सभ्यता और राष्ट्रवाद के एजेंडे को लागू करने का रास्ता आसान किया जा रहा है।
ताकत के बल पर दवाई जा रही आवाज
उनका कहना है कि देश के किसानों को इस बात का अंदेशा एक बार फिर हो रहा है कि रद्द किए गए कृषि कानूनों को दोबारा से सामने लाकर अपने समर्थक व्यापारियों को इसका फायदा पहुंचाने का प्रयास किया जा सकता है। उनका कहना है कि देश वासियों को प्राप्त शांतिपूर्वक विरोध-प्रदर्शन का हक जो संविधान ने दिया है, उसे खत्म किया जा रहा है। बल्कि संवैधानिक तरीके से उठने वाले विरोध के स्वर ताकत से दबाने की कोशिश की जा रही है और सरकार के विरोधियों को काले कानूनों के जरिए जेलों में बंद किया जा रहा है।
तानाशाही का लबादा ओढ़ने की ओर भारत
उनका कहना है कि आज देशवासियों के सामने सबसे बड़ा मुद्दा आर्थिक अस्थिरता का है। इसकी वजह से देश में बेरोजगारी का प्रतिशत खतरनाक हद तक बढ़ गया। रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाली आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं। अमीर और गरीब के बीच सरकार के फैसलों की वजह से खाई बढ़ती जा रही है। उनका कहना है कि इस बात का खतरा बढ़ गया है कि दुनिया के सबसे बड़ा लोकतंत्र तानाशाही का लबादा ओढ़ने की कोशिश में लगा हुआ है।