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मुसलमान ही बनवाने वाले थे मंदिर, क्या था पूर्व पीएम चंद्रशेखर का प्लान? 2 दिन में तैयार हो गए दोनों पक्ष

मुसलमान ही बनवाने वाले थे मंदिर, क्या था पूर्व पीएम चंद्रशेखर का प्लान? 2 दिन में तैयार हो गए दोनों पक्ष

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I’m National top news, national news, national update, national news, new Delhi top news, Shri Ram temple Ayodhya, Only Muslims were going to build the temple, what was the plan of former PM Chandrashekhar? Both sides were ready in 2 days : 1990 के दौर में कुछ महीनों के लिए कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने चंद्रशेखर के पास एक ऐसा प्लान था जिसमें बिना किसी खून खराबे के अयोध्या में मंदिर भी बनने वाला था और खुद मुसलमान मंदिर बनवाने वाले थे। तब शायद अयोध्या मसले का स्थायी समाधान भी निकल जाता। लेकिन कहा जाता है राजीव गांधी ने उस वक्त एक बड़ा खेल कर दिया था। अयोध्या सीरिज के पहले और दूसरे भाग में हमने आपको 1949 में रामलला के प्रकट होने और तब के प्रधानमंत्री नेहरू व फैजाबाद के डीएम केके नायर के बीच मूर्ति हटाने को लेकर हुए टकराव की कहानी व कोर्ट के आदेश के बाद राजीव गांधी द्वारा ताला खुलावाने की कहानी आपको बताई। अब आपको बताते हैं कि 90 के दौर में एक वक्त ऐसा भी था जब अयोध्या विवाद सुलझने की कगार पर था। फिर आखिर क्या हुआ ऐसा? 

अक्टूबर 1990 में कारसेवकों पर चली थी गोली

अक्टूबर 1990 में अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चली थी। उसके बाद ये मामला और भड़क गया था। उस साल नवंबर में प्रधानमंत्री बने चंद्रशेखर ने एक बड़ी पहल की थी।  चंद्रशेखर के जीवन पर लेखक रॉबर्ट मैथ्यूज कि किताब में लिखा है कि तब चंद्रशेखर ने राम जन्मभूमि न्यास और ऑल इंडिया  बाबरी एक्शन कमेटी के नेताओं को बातचीत के लिए बुलाया था। इस बातचीत को बहुत सीक्रेट रखा गया था। किसी भी प्रेस को नहीं बताया गया। मंदिर पक्ष से बातचीत करने का जिम्मा शरद पवार को दिया गया और मुस्लिम पक्ष से बातचीत की जिम्मेदारी पीएम के निजी मित्र और भाजपा के उदारवादी नेता भैरों सिंह शेखावत को दी गई। ये बातचीत पीएमओ में हुई। मीटिंग में चंद्रशेखर सरकार में मंत्री रहे कमल मोरारका भी मौजूद रहे और मैथ्यूज की किताब में उनके हवाले से लिखा गया है कि पहले वीएचपी नेताओं से बातचीत की गई। 

ढांचे को छूने वाले को गोली मारने के आदेश दे दूंगा

वीएचपी के नेताओं से उन्होंने पूछा कि मुझे बताओ, इस अयोध्या के बारे में क्या किया जाना चाहिए?’ यह सवाल इतना आकस्मिक है कि (विहिप) साथी ने इसे यह समझ लिया कि वह उन्हें धमका सकता है। उन्होंने उत्तर दिया कि अयोध्या- मामला क्या है? ये राम मंदिर है ये सब जानते हैं। यह पहले से ही एक राम मंदिर है। दो-तीन मिनट बाद चन्द्रशेखर ने खामोश रहते हुए कहा ‘ठीक है। अब, आइए गंभीर हों। मैं आज प्रधामंत्री हूं, मुझे नहीं पता कि मैं यहां कब तक रहूंगा, लेकिन मेरे प्रधानमंत्री रहते हुए कोई भी उस ढांचे को नहीं छूएगा।’ फिर वह अपने अंदाज में कहते हैं मैं वीपी सिंह नहीं हूं, जो राज्य के मुख्यमंत्री पर निर्भर रहूंगा। मैं उस मस्जिद को छूने वाले किसी भी व्यक्ति को गोली मारने का आदेश दे दूंगा। यदि 500 साधु मरते हैं, तो वे भगवान के लिए मर रहे हैं और स्वर्ग जा रहे हैं। चंद्रशेखर ने एक तरह से सीधा संदेश दे दिया कि यहां पर जबरन मस्जिद तोड़ने की बात नहीं हो सकती। 

मुस्लिम पक्ष को दिखाया डर

फिर उन्होंने अलग से मुस्लिम पक्ष को बुलाया और उनसे बातचीत शुरू की। उन्होंने मुस्लिम पक्ष को बताया कि वीएचपी नेताओं को कह दिया गया है कि ढांचा सुरक्षित रहेगा आप चिंता नहीं करे। लेकिन, देश में पांच लाख, छह लाख गांव हैं। हर जगह हिंदू और मुसलमान साथ-साथ रहते हैं। अगर कल देश भर में दंगे होते हैं, तो मेरे पास उन्हें नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त पुलिस नहीं है। अच्छा तो मुझे बताएं कि आप क्या सोचते हैं। 

दोनों पक्ष दो दिन में ही तैयार हो गए समझौते को

दो दिनों में, दोनों समूह यह कहते हुए आ गए कि ठीक है, वे समझौता करने के लिए तैयार हैं। चन्द्रशेखर ने कहा आइए बुनियादी नियम बनाएं। आप बातचीत शुरू करें।  भैरों सिंह और शरद पवार आपके साथ बैठेंगे। आप दोनों पक्ष जिस बात पर सहमत होंगे, मेरी सरकार उसे लागू करेगी। यह मेरा वचन है। लेकिन शर्तें हैं। बातचीत के बारे में प्रेस को कुछ भी नहीं बताया जाना है, सिवाय इसके कि हम बात कर रहे हैं। अंतिम समझौते तक कोई भी सामग्री प्रेस में लीक नहीं की जाएगी। बातचीत चलती रही, लगभग पन्द्रह-बीस दिन तक। तभी भैरोंसिंह मेरे पास आये।

क्या थी मुस्लिम पक्ष की 2 शर्तें 

मुस्लिम पक्ष इस बात पर राजी हो गया कि वो विवादित ढांचे की जमीन हिंदू पक्ष को दे देगा। लेकिन उसने दो शर्तें रखी कि उन्हें इसके बदले कहीं जमीन मिल जाए। जैसा कि अभी सुप्रीम कोर्ट ने साल 2019 के फैसले में किया है। इसके अलावा एक कानून पारित कर दिया जाए कि इसके बाद धार्मिक स्थलों को लेकर कोई और विवाद नहीं होगा। 15 अगस्त 1947 की तारीख तय हो जाएगी। जैसा आगे चलकर 1991 में नरसिम्हा राव सरकार ने कर भी दिया। दोनों पक्ष इस पर राजी हो गए। लेकिन समझौता पूरा हो नहीं पाया। 

राजीव गांधी ने किया बड़ा खेल

मार्च 1991 में कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया और चंद्रशेखर के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई। चंद्रशेखर किताब में लेखक रॉबर्ट मैथ्यूज ने उस वक्त के मंत्री कमल मोरारका के हवाले से दावा किया कि शरद पवार ने समझौते के बारे में राजीव गांधी को बताया था। जिस पर राजीव गांधी ने चंद्रशेखर को फोन करके कहा था कि वो बहुत खुश हैं कि चंद्रशेखर ने ये काम कर दिया। राजीव गांधी ने समझौते को पढ़कर समझने के लिए दो दिन का वक्त मांगा। लेकिन दो दिन में ही राजीव गांधी ने समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा दी। राजीव गांधी को लगा कि अगर चंद्रशेखर ये विवाद सुलझा देंगे तो वो बहुत लोकप्रिय हो जाएंगे। रशीद किदवई की किताब भारत के प्रधानमंत्री में दावा किया गया कि चंद्रशेखर सरकार द्वारा बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि विवाद हल करने के लिए अध्यादेश लाए जाने की बाबत जानकारी मिलने पर कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी व उनके करीबी लोग बेचैन हो गए। उन्हें लगा कि एक चंद्रशेखर के नेतृत्व में बनी एक कमजोर सरकार को इतिहास में इसलिए याद रखा जाए कि उसने देशभर को उद्वेलित कर देने वाले एक विध्वंसक विवाद को सुलझा दिया। कांग्रेस ने चंद्रशेखर सरकार पर यह आरोप लगाया था कि उन्होंने राजीव गांधी की जासूसी कराई है और सरकार से समर्थन वापस ले लिया। 

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