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नहीं रहे एक रुपए में मरीजों का इलाज करने वाले मशहूर डॉक्टर पद्मश्री डॉ. सुशोभन बनर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ममता बनर्जी ने जताया गहरा दुख

नहीं रहे एक रुपए में मरीजों का इलाज करने वाले मशहूर डॉक्टर पद्मश्री डॉ. सुशोभन बनर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ममता बनर्जी ने जताया गहरा दुख

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महज एक रुपये की फीस लेकर गरीबों का इलाज करने वाले पश्चिम बंगाल के चर्चित और नामी चिकित्सक डॉ. सुशोभन बनर्जी का मंगलवार को निधन हो गया है। उन्हें निस्वार्थ समाजसेवा के लिये पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया था। सुशोभन बनर्जी बोलपुर विधानसभा से एक बार विधायक भी चुने गए थे। डॉ सुशोभन बनर्जी के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गहरा दुख व्यक्त किया है। बता दें कि सुशोभन बनर्जी लंबे समय से कैंसर से ग्रसित थे।

एक रुपए के डॉक्टर के नाम से बन गई थी पहचान

डॉ. बनर्जी बीरभूम जिले के बोलपुर में ‘एक रुपये के डॉक्टर’ के नाम से चर्चित हो गए थे। इलाज के लिए उनका घर 24 घंटे खुला रहता था। समाज सेवा को ही उन्होंने अपने जीवन का मकसद बना लिया था। वह वृद्धावस्था की बीमारी के कारण लंबे समय से अस्पताल में इलाजरत थे। मंगलवार सुबह 11:25 बजे वह हम सबों को छोड़कर स्वर्ग सिधार गए हैं। उन्होंने करीब 58 वर्षों तक लोगों की निस्वार्थ भाव से सेवा की। उनके पास बीरभूम, बर्दवान, मुर्शिदाबाद जिलों के सीमांत क्षेत्रों के लोग इलाज कराने आते थे। सुशोभन बनर्जी लंबे समय से कैंसर से पीड़ित थे। डाक्टर बनर्जी विश्व भारती की कार्यसमिति के सदस्य भी थे। वह बीरभूम जिला कांग्रेस अध्यक्ष भी रह चुके थे। सुशोभन बनर्जी पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के पारिवारिक चिकित्सक थे।

1964 में खोला था अपना पहला क्लीनिक

गौरतलब है कि पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित डॉ. सुशोभन बनर्जी ने साल 1964 में बीरभूम जिले के बोलपुर में, ‘सिस्टर निवेदिता’ के नाम से पहला क्लिनिक खोला। इस क्लिनिक का उद्देश्य था कैसे गरीब और बेसहारा मरीजों का कम खर्च में इलाज किया जा सके। कोलकाता के आजीकर मेडिकल कॉलेज से पोस्ट ग्रेजुएट और कलकत्ता विश्वविद्यालय से गोल्ड मेडल हासिल करने के बाद डॉक्टर सुशोभन बनर्जी ने लंदन से हेमाटोलॉजि में डिप्लोमा किया। इसके बाद वह अपने शहर बोलपुर में आम लोगो के बीच रहने के लिए वापस भारत आ गए। उनका कहना था कि लोग की सेवा करना ही उनके जीवन का मूल उद्देश्य है और लंदन से लौटने के बाद उन्होंने, गरीबो के लिए मुफ्त में इलाज करना शुरु किया।

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