भारत के शीर्ष कोर्ट ने सेक्स वर्कर्स के काम को पेशा मानते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे उनके काम में हस्तक्षेप नहीं करें। जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा है कि सहमति से सेक्स के मामले में कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए।
सेक्स वर्कर को भी कानून के तहत जीने का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेक्स वर्कर को भी कानून के तहत गरिमा और सुरक्षा के साथ जीने का अधिकार है। जब यह साबित हो जाए कि सेक्स वर्कर वयस्क है और वह अपनी मर्जी से सेक्स कर रहा है तो पुलिस को इसमें हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए। देश के हर नागरिक को धारा 21 के तहत सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार है। ऐसे में जब पुलिस छापेमारी करे तो सेक्स वर्कर को परेशान न करे। कोर्ट ने कहा कि वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है लेकिन अपनी मर्जी से सेक्स करना गैरकानूनी नहीं है।
यौन हिंसा होने पर तुरंत इलाज उपलब्ध कराया जाए
कोर्ट ने कहा कि किसी भी बच्चे को उसकी मां से इसलिए अलग नहीं किया जा सकता है। वेश्यालयों में अगर कोई नाबालिग बच्चा पाया जाता है या सेक्स वर्कर्स के साथ रहते हुए पाया जाता है तो यह नहीं माना जाना चाहिए कि वह तस्करी करने के लिए लाया गया है। कोर्ट ने कहा कि अगर किसी सेक्स वर्कर के साथ यौन हिंसा की गई है तो उसे तुरंत इलाज उपलब्ध कराया जाए और उसे वो सभी सुविधाएं दी जानी चाहिए, जो यौन प्रताड़ना की पीड़िता को मिलती हैं।
कोर्ट ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को निर्देश दिया कि वह पत्रकारों से अपील करें कि जब पुलिस छापेमारी करे या कोई अभियान चलाए तो सेक्स वर्कर की पहचान उजागर न हो चाहे कोई पीड़ित हो या आरोपित।