Ram Mandir: Opposition in dilemma over attending Ramlala’s consecration ceremony!, National top news, new Delhi top news, national news, national update, national news : राम मंदिर को लेकर विपक्ष धर्मसंकट में है। वह तय नहीं कर पा रहा है कि करे, तो आखिर क्या ! ऐसे में सवाल यह उठता है कि आईएनडीआईए गठबंधन के सामने विकल्प क्या है ? राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को होगी। चार महीने से भी कम समय में होनेवाले लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या एक बार फिर से एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है। 22 जनवरी के कार्यक्रम के लिए निमंत्रण धार्मिक नेताओं और अभिनेताओं को भेजा गया है। लेकिन, विपक्षी नेताओं को भेजे गये निमंत्रण सुर्खियां बटोर रहे हैं। राम मंदिर को लेकर भाजपा की अटैकिंग मोड वाली स्ट्रैटजी ने विपक्ष को बुरी तरह फंसा दिया है। वामपंथी दलों को छोड़ कर शेष दूसरी पार्टियां तय नहीं कर पा रही हैं कि कौन-सा कदम उठाना सही होगा।
वामपंथी दलों ने साफ किया अपना स्टैंड
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी अयोध्या के राम मंदिर में रामलला के प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे। वाम दल ने कहा कि उसका मानना है कि धर्म एक व्यक्तिगत मामला है। माकपा ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा है, ‘हमारी नीति धार्मिक मान्यताओं और प्रत्येक व्यक्ति के अपनी आस्था को आगे बढ़ाने के अधिकार का सम्मान करना है। धर्म एक व्यक्तिगत पसंद का मामला है, जिसे राजनीतिक लाभ के साधन में परिवर्तित नहीं किया जाना चाहिए।’ निमंत्रण मिलने के बावजूद कॉमरेड सीताराम येचुरी समारोह में शामिल नहीं होंगे।
कांग्रेस ने नहीं किया साफ
लोकसभा नेता अधीर रंजन चौधरी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी आमंत्रित किया गया है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि राहुल गांधी को निमंत्रण मिला या नहीं। हालांकि, कांग्रेस की तरफ से अभी तक इस तरह का कोई बयान नहीं आया है कि वे लोग प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग लेंगे या नहीं। भाजपा के विरोधी दलों को निमंत्रण स्वीकार करने और ऐसा करने से विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय से अल्पसंख्यक वोटों को सम्भावित रूप से प्रभावित करने में असर पड़ सकता है। उत्तर प्रदेश से 80 लोकसभा सांसद आते हैं, जहां 20 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है।
इंडिया गठबंधन के सामने क्या विकल्प
इंडिया गठबंधन के नेता समारोह में शामिल होने के लिए एक साथ जा सकते हैं। इसके अलावा समारोह में कोई भी शामिल नहीं हो सकता है। इससे इतर सभी पार्टी को स्वतंत्र छोड़ दिया जाये। जो भी जाना चाहे, वह जाये और जो दूरी बनाना चाहे, वह नहीं जाये। इसके अलावा इस मुद्दे से विपक्षी पार्टी दूरी भी बना सकती है, जिससे भाजपा को पलटवार का कोई मौका नहीं मिला।
आडवाणी-जोशी प्रकरण ने भी बटोरीं सुर्खियां
हालांकि, अयोध्या में राम मंदिर के निमंत्रण को लेकर सियासी बयानबाजी और अटकलों का दौर विपक्षी नेताओं तक ही सीमित नहीं रहा। इसने राम जन्मभूमि आन्दोलन का नेतृत्व करनेवाले भाजपा के दो दिग्गजों लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को नजरअंदाज किये जाने की बात भी मीडिया में चर्चा के केन्द्र में रही। इस स्पष्ट अनदेखी से विवाद खड़ा हो गया और कई लोगों ने भाजपा पर पुराने लोगों का अपमान करने का आरोप लगाया। कुछ ही समय बाद विश्व हिन्दू परिषद ने कहा कि वास्तव में पूर्व उप प्रधानमंत्री आडवाणी और पूर्व केन्द्रीय मंत्री जोशी को निमंत्रण भेजा गया था। लेकिन, वे इसमें शामिल होंगे या नहीं ; यह अभी स्पष्ट नहीं है।