RSS यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत कुछ कहते हैं तो दूर-दूर तक उसका खास मायना निकलता है। कश्मीरी पंडितों के दुख-दर्द और उनके पलायन की हकीकत को जानने-समझने से ज्यादा इस विषय को लेकर सियासत अधिक हुआ करती है। पहले भी ऐसा हुआ करती थी। एक फिल्म आई ‘द कश्मीर फाइल्स’ और उसके प्रमोशन और विरोध की राजनीति ने आग का रूप ले लिया। भाजपा और संघ ने इसे अपने तरीके के राष्ट्रवाद के सांचे में ढाला और विरोधियों ने इसे धर्मनिरपेक्षता के आईने में अलग इमेज बनाने की कोशिश की। वाकई 32 सालों में पलायन करने वाले कश्मीरी ब्राह्मणों की घरवापसी पर किस प्रधानमंत्री के कार्यकाल में क्या हुआ, इस पर सटीक बहस कभी नहीं होती है। नरेंद्र मोदी ने अब तक क्या किया, इसकी भी कोई स्पष्ट तस्वीर नहीं है। इस बीच आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कश्मीरी पंडितों के घाटी में जल्द लौटने की उम्मीद जताई है। यदि एक-दो वर्षों में उनकी कही हुई बात की सच्ची तस्वीर सामने आती है, तो इसे कश्मीरी पंडितों के लिए ही नहीं, पूरे देश के लिए सुखद परिणाम के रूप में देखा जाना चाहिए।
कश्मीरी हिंदू समुदाय को किया संबोधित
मोहन भागवत ने यह उम्मीद जताई है कि आतंकवाद की शुरुआत के बाद 1990 के दशक में अपने घरों से विस्थापित हुए कश्मीरी पंडित जल्द ही घाटी में वापस लौट आएंगे। भागवत ने जम्मू में नवरेह समारोह के आखिरी दिन वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से कश्मीरी हिंदू समुदाय को संबोधित करते हुए ऐसी उम्मीद जताई है। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि वह दिन बहुत करीब है, जब कश्मीरी पंडित अपने घरों में वापस आएंगे और मैं चाहता हूं कि वह दिन जल्द आए।”
नहीं भूले फिल्म को प्रमोट करना
भागवत ने कहा कि विवेक अग्निहोत्री निर्देशित ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) फिल्म ने कश्मीरी पंडितों की सच्ची तस्वीर और 1990 के दशक में कश्मीर घाटी से उनके पलायन का खुलासा किया है। विवेक अग्निहोत्री निर्देशित ‘द कश्मीर फाइल्स’ 11 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी, इसमें अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती, पल्लवी जोशी, दर्शन कुमार और अन्य एक्टर्स शामिल हैं। फिल्म ने देश में पॉलिटिकल स्पेक्ट्रम का तेजी से ध्रुवीकरण किया है। सच्चाई तो यह है कि साहस करके आरएसएस और भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं को ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म के आने के पहले इस विषय पर बनीं अन्य फिल्मों की भी चर्चा करनी चाहिए, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सकते। देश के नागरिकों को तटस्थ मन-मिजाज से सोचना चाहिए कि विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘शिकारा’ (Shikara) की चर्चा आखिर क्यों नहीं की जाती है।