Investment of money did not work properly. पैसे के निवेश ने सही तरीके से काम नहीं किया, इसलिए लक्ष्य की तस्वीर सामने नहीं आई। सेंट्रल गवर्नमेंट यानी केंद्र सरकार ने 10 साल में 2.5 लाख करोड़ रुपये रेलवे ट्रैक अवसंरचना पर खर्च किए। फिर भी मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों की एवरेज स्पीड अर्थात औसत रफ्तार नहीं बढ़ी। सरकार ने यात्री ट्रेन की रफ्तार बढ़ाने के लिए मिशन रफ्तार अभियान शुरू किया, लेकिन जमीन पर इसका कोई खास असर नहीं हुआ। Reality यानी सच्चाई कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (CAG) की रिपोर्ट में खुलकर सामने आई है।
हासिल नहीं हुआ लक्ष्य
6 April को महा लेखापरीक्षक (कैग) की ओर से संसद में पेश रिपोर्ट में बताया गया है कि रेलवे में 2008 से 2019 के दौरान 2.5 लाख करोड़ का निवेश किया गया। इसके बाद भी गतिशीलता परिणाम में सुधार नहीं कर पाया है। 2016-17 में शुरू किए गए मिशन रफ्तार में 2021-22 तक मेल-एक्सप्रेस के लिए 50 किलोमीटर प्रतिघंटा और मालागड़ियों के लिए 75 किलोमीटर प्रतिघंटा की औसत गति का लक्ष्य रखा था।
778 सुपरफास्ट ट्रेनों में 123 की औसत रफ्तार 55 किलोमीटर प्रति घंटा
2019-20 तक मेल-एक्सप्रेस की औसत गति 50.6 किलोमीटर प्रतिघंटा और मालगाड़ी की 23.6 किमी प्रतिघंटा के आसपास थी। रिपोर्ट में उल्लेख है कि 478 सुपर फास्ट ट्रेन में 123 (26 फीसदी) की औसतन रफ्तार 55 किमी प्रतिघंटा से कम थी।
बेकार चली गई 13 करोड़ की राशि
CAG ने स्पष्ट किया है कि डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (डीएफसी) विश्व बैंक की निधि का पूर्ण उपयोग नहीं कर सका। इस कारण 16 करोड़ रुपये के प्रभारों का भुगतान हुआ। भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया के दौरान 285 करोड़ का गैर जरूरी व्यय किया। रेलटेल ने आवंटित स्पेक्ट्रम को उपयोग के बिना वापस कर दिया। इससे स्पेक्ट्रम के रॉयल्टी पर प्रभारों पर खर्च की गई 13 करोड़ राशि बेकार गई।