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साइड इफेक्ट : केंद्र में नई सरकार बनी नहीं कि मंत्रालयों के लिए होने लगी खींचतान,आगे क्या होगा…

साइड इफेक्ट : केंद्र में नई सरकार बनी नहीं कि मंत्रालयों के लिए होने लगी खींचतान,आगे क्या होगा…

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Side effect: As soon as a new government is not formed at the Centre, there is a tussle for ministries, what will happen next, Breaking news, National top news, national news, national update, national news, new Delhi top news : तीसरी बार नरेंद्र मोदी जी का शपथ ग्रहण सुनिश्चित है, मगर अब दबाव की डोर नीतीश और चंद्रबाबू नायडू के हाथ में होगी। मोदी के 9 जून को शपथ ग्रहण की तैयारी की जा रही है। उधर, एनडीए के सहयोगियों ने साफ कर दिया है कि उनका पूरा समर्थन प्रधानमंत्री की अगुवाई में बनने जा रही एनडीए सरकार के साथ है, लेकिन ट्विस्ट भी है इसमें कि अब मंत्रालयों को लेकर खींचतान शुरू हो चुकी है। 

सहयोगी दलों ने डिमांड रखनी शुरू कर दी है

कल एनडीए की बैठक के बाद ही बीजेपी के सहयोगी दलों ने कैबिनेट में अपनी उपस्थिति के लिए डिमांड रखनी शुरू कर दी है। बता दें कि मोदी 3.0 में सहयोगी दलों की भूमिका महत्वपूर्ण है। टीडीपी, जदयू, शिवसेना, लोक जनशक्ति पार्टी चिराग पासवान की भूमिका महत्वपूर्ण है। इन चार पार्टियों को मिलाकर 40 सांसद हैं। टीडीपी और जदयू अपने लिए मनपसंद मंत्रालय चाहती हैं। हर चार सांसद पर एक मंत्री की मांग है। इस लिहाज से टीडीपी (16) चार, जदयू (12) 3, शिवसेना (7) और चिराग पासवान (5) दो-दो मंत्रालयों की उम्मीद कर रहे हैं। टीडीपी स्पीकर पद भी चाहती है, हालांकि बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं है। ज्यादा जोर देने पर डिप्टी स्पीकर पद टीडीपी को मिल सकता है। जदयू के पास पहले से ही राज्यसभा में डिप्टी चेयरमैन का पद है। अभी तक मोदी के दो कार्यकाल में सहयोगी दलों को सांकेतिक प्रतिनिधित्व मिला है, यानी उनकी संख्या के अनुपात में मंत्री पद देने के बजाए केवल सांकेतिक नुमाइंदगी दी गई, जबकि जदयू ने 2019 में संख्या के हिसाब से नुमाइंदगी की मांग की थी और ऐसा न होने पर सरकार में शामिल नहीं हुई थी।

रक्षा, वित्त, गृह और विदेश मंत्रालय पर समझौता नहीं करेगी बीजेपी

बदली परिस्थितियों में बीजेपी को संख्या के हिसाब से ही मंत्री बनाने होंगे। इसका मतलब होगा कि मंत्रिपरिषद में बीजेपी के मंत्रियों की संख्या घटेगी और सहयोगियों की संख्या बढ़ेगी, लेकिन कुछ शर्तों पर बीजेपी शायद ही समझौता करे। सीसीएस के चार मंत्रालयों में सहयोगी को जगह नहीं देगी, वो हैं रक्षा, वित्त, गृह और विदेश।

युवा और कृषि भी सहयोगियों को देकर सुधार की रफ्तार धीमी नहीं करना चाहती बीजेपी

इंफ्रास्ट्रक्चर, गरीब कल्याण, युवा से जुड़े और कृषि मंत्रालयों को भी बीजेपी अपने पास ही रखना चाहेगी। यह मोदी की बताई गई चार जातियों- गरीब, महिला, युवा और किसान के लिए योजनाओं को लागू करने के लिए अहम है। रेलवे, सड़क परिवहन आदि में बड़े सुधार किए गए हैं और बीजेपी इन्हें सहयोगियों को देकर सुधार की रफ्तार धीमी नहीं करना चाहेगी।

रेलवे सहयोगियों को देने से बंटाधार हुआ, बड़ी मुश्किल से पटरी पर लौटा है

रेलवे जिस किसी भी सरकार में सहयोगियों के पास रहा, तब लोकलुभावन नीतियों के चलते उसका बंटाधार हुआ। बड़ी मुश्किल से उसे पटरी पर लाया जा रहा है। अगर मोदी एक और मोदी दो कार्यकाल देखें तो सहयोगियों को सांकेतिक प्रतिनिधित्व में नागरिक उड्डयन, भारी उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण, स्टील और खाद्य, जन वितरण और उपभोक्ता मामले जैसे मंत्रालय दिए गए। खाद्य, जन वितरण एवं उपभोक्ता मामले 2014 में राम विलास पासवान के पास था, नागरिक उड्डयन टीडीपी के पास रहा, भारी उद्योग एवं पब्लिक एंटरप्राइज शिवसेना के पास रहा, खाद्य प्रसंस्करण अकाली दल और बाद में पशुपति पारस के पास रहा और स्टील जेडीयू के पास रहा।

बीजेपी को कुछ हद तक झुकना होगा

बाजपेयी सरकार में उद्योग, पेट्रोलियम, रसायन एवं उर्वरक, कानून एवं विधि, स्वास्थ्य, सड़क परिवहन, वन एवं पर्यावरण, स्टील एंड माइन्स, रेलवे, वाणिज्य और यहां तक कि रक्षा मंत्रालय भी सहयोगियों के पास रहा, लेकिन अब बीजेपी को सहयोगियों के आगे कुछ हद तक झुकना होगा। पंचायती राज्य और ग्रामीण विकास जैसे मंत्रालय जदयू को दिए जा सकते हैं। नागरिक उड्डयन, स्टील जैसे मंत्रालय टीडीपी को मिल सकते हैं। भारी उद्योग शिवसेना को मिल सकता है। महत्वपूर्ण मंत्रालयों जैसे वित्त, रक्षा में सहयोगियों को राज्य मंत्री पद दिया जा सकता है। पर्यटन, एमएसएमई, स्किल डेवलपमेंट, साइंस टेक्नॉलॉजी एंड अर्थ साइंसेज, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता जैसे मंत्रालय सहयोगियों को देने पर बीजेपी को समस्या नहीं होनी चाहिए, हालांकि टीडीपी MEITY जैसा मंत्रालय भी मांग सकती है।

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