National new, special story, sati pratha : इसे यातना की पराकाष्ठा कहना किंचित मात्र गलत नहीं होगा। जीवन प्रकृति की धरोहर है और उसका अंत भी उसी में समाहित है। इसके बावजूद किसी को जिंदा आग के हवाले कर देना, घोर अपराध और मानवीय संवेदनाओं को धता बताने वाली ही बात हुई, जो कि प्राचीन काल में खूब होता था। हम बात कर रहे हैं सती प्रथा की। पति की मृत्यु के बाद औरतें किस तरह आग में झोंक दी जाती थी, आइये इस प्रथा के विद्रूप चेहरे से आप भी अवगत हो लें…
एक कटोरा भांग और धतूरा पिलाकर नशे में मदहोश कर दी जातीं थीं औरतें
पति की मृत्यु के बाद उसकी विधवा को एक कटोरा भांग और धतूरा पिलाकर नशे में मदहोश कर दिया जाता था। ऐसे में जब वह श्मशान की ओर जाती थी, कभी हंसती थी, कभी रोती थी और कभी रास्ते में जमीन पर ही सो जाना चाहती थी और यही उसका सहमरण (सती) के लिए जाना था। इसके बाद उसे चिता पर बैठा कर कच्चे बांस की मचिया
से दबा दिया जाता था ताकि वह तड़प-तड़पकर वहीं दम तोड़ दे। चाहकर भी वहां से निकल न सके।
इतना धुआं कि उसे तड़पता कोई देख न पाए, इतना शोर कि उसकी वेदना कोई सुन न पाए
चिता पर बहुत अधिक राल और घी डालकर इतना अधिक धुआं कर दिया जाता था कि उस यंत्रणा को देखकर कोई डर न जाए। और तो और दुनिया भर के ढोल, करताल और शंख बजाए जाते थे कि कोई उसका चिल्लाना, रोना, अनुनय- विनय न सुनने पाए। इस क्रूर प्रथा से छुटकारा दिलाई लार्ड विलियम बेन्टीक और राजा राममोहन राय ने। समाज सुधार की दिशा में यह बड़ी क्रांति थे। दोनों को श्रद्धांजलि।