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बस कंडक्टर से हीरो बने इस एक्टर के एक फैसले ने  किया कंगाल, दांव पर लगा…

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Bollywood news: यह कहानी है बॉलीवुड में अपनी एक्टिंग से करोड़ों दिलों पर राज करने वाले उस शख्स की, जिसने राजनीति की दुनिया में भी अपनी साख स्थापित की, परंतु एक वक्त ऐसा भी आया जब वे दीवालिया हो गए और उन्हें अपने घर-बार तक दांव पर लगाने पड़ गए। अब नहीं समझे तो बताता हूं। बात हो रही है सुनील दत्त की, जिनका जन्म 6 जून 1929 को हुआ था। आखिर उन्हें तंगहाली के इस दौर से क्यों गुजरना पड़ा। आइए जानें…

1950 और 1960 के दशक के सुपरस्टार थे सुनील दत्त

1950 और 1960 के दशक में सुनील दत्त बॉलीवुड के सुपरस्टार बन गए थे। लोगों को उनकी फिल्में देखने का अलग ही चस्का रहता था। वह आपनी हर फिल्म में संजीदा एक्टिंग से बोल्ड मैसेज देते थे। ‘मदर इंडिया’, ‘साधना’, ‘इंसान जाग उठा’, ‘सुजाता’, ‘मुझे जीने दो’, ‘पड़ोसन’ जैसी कई हिट फिल्में उन्होंने दीं। हर फिल्म में उनका अलग, अंदाज, अवतार और तेवर देखने को मिला। वह एक्टिंग के साथ-साथ राजनीति में भी कामयाब रहे। यही वजह है कि उनकी राजनीतिक विरासत को उनकी बेटी प्रिया दत्त आगे लेकर जा रही हैं। 

फ़िल्म रेशमा और शेरा ने डुबोई लुटिया, बनाया कर्जदार

सुनील दत्त ने अपने एक्टिंग करियर में करीब 50 फिल्मों में काम किया। एंक्टिंग करियर में सफल होने के बाद उन्होंने फिल्में प्रोड्यूस करने में भी हाथ आजमाया, लेकिन यह काम उन्हें रास नहीं आया। इस काम के कारण उनकी आर्थिक स्थिति काफी बिगड़ गई। दरअसल, सुनील दत्त फिल्म ‘रेशमा और शेरा’ को प्रोड्यूस कर रहे थे और इसमें लीड एक्टर भी थे। फिल्म को सुखदेव डायरेक्ट कर रहे थे, लेकिन सुनील दत्त को सुखदेव का निर्देशन पसंद नहीं आया। इसके बाद उन्होंने इस फिल्म को खुद डायरेक्ट करने का फैसला कर लिया। सुखदेव के निर्देशन में फिल्म की शूटिंग काफी हद तक पूरी हो गई थी, लेकिन सुनील दत्त ने इसे नए सिरे से शूट करने का फैसला किया। इस फिल्म के लिए उन्होंने काफी बड़ा कर्ज भी ले लिया।  

कार बेची, घर गिरवी रख दी, बस से करने लगे सफर

एक ओर सुनील दत्त पर कर्ज था, वहीं दूसरी ओर फिल्म फ्लॉप हो गई। ऐसे में उन्हें बड़ा झटका लगा। फिल्म के पिटते ही लोग उनसे पैसे वापस मांगने लगे। सुनील दत्त ने एक पुराने इंटरव्यू में बताया था, ‘मैं उस वक्त दिवालिया हो गया था। मुझे अपनी कारें बेचनी पड़ी और मैं बस में सफर करने लगा था। मैंने बस अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने के लिए एक कार रखी थी। मेरा घर तक गिरवी था।’ कई मेहनत के बाद सुनील दत्त इस मुश्किल वक्त से निकल गए और उनकी आर्थिक स्थिति दोबारा बेहतर हुई। इस वक्त उन्हें पत्नी नरगिस और बच्चों का साथ मिला। 

पांच वर्ष की उम्र में पिता गुजर गए, पेट पालने के लिए बस में कंडक्टर की नौकरी की 

सुनील दत्त का जीवन बचपन में भी आसान नहीं था। उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे। पांच साल की छोटी उम्र में ही उन्होंने अपने पिता को खो दिया था। जैसे-तैसे ही उनकी पढ़ाई पूरी हो सकी। जय हिंद कॉलेज, मुंबई में उन्होंने हायर एजुकेशन के लिए एडमिशन लिया। पढ़ाई के साथ ही पेट पालने के लिए उन्होंने काम की तलाश शुरू कर दी। इस तलाश में उन्हें बस कंडक्टर की नौकरी मिली और वह इसे करने लगे।

बन गए रेडियो जॉकी, 1955 में पहली फ़िल्म रेलवे प्लेटफार्म की, फिर मुड़कर नहीं देखा

कुछ दिनों तक इसे करने के बाद उन्होंने रेडियो जॉकी के तौर पर काम किया। कई सालों तक इसे करने के बाद उन्हें पहली फिल्म हाथ लगी। साल 1955 में उन्हें उनकी पहली फिल्म ‘रेलवे प्लेटफॉर्म’ में काम किया था। बस इसी शुरुआत के साथ उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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