चीन के संभावित खतरों से निपटने के लिए देश के पूर्वोत्तर में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का नेत्रा स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस (एसएसए) सिस्टम तैनात होगा। इस राडार की रेंज 2500 किलोमीटर तक होगी। नेत्रा के हिस्से के रूप में एक ऑप्टिकल टेलीस्कोप लद्दाख में सरस्वती माउंट पर स्थापित किया जाएगा। यह राडार 2500 किलोमीटर की दूरी पर 10 सेंटीमीटर की वस्तु को ट्रैक कर सकता है। राडार के तैनाती स्थान पर इसकी तरंगों को अपने मनमुताबिक केंद्रित करके रेंज को 4000 किलोमीटर तक बढ़ाया जा सकता है।
10 सेमी की वस्तुओं पर भी रख सकता है नजर
इस स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस (एसएसए) कंट्रोल सेंटर का औपचारिक उदघाटन 14 दिसंबर 2020 को इसरो के चीफ डॉ. के सिवन ने किया था। इसका मकसद अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के समान भारत में एसएसए गतिविधियों के लिए अत्याधुनिक सुविधा देना था। सरकार ने राडार की तैनाती के लिए हरी झंडी दे दी है, जो 10 सेमी. तथा उससे अधिक आकार की वस्तुओं का पता लगाने एवं उन पर नज़र रखने में सक्षम होगा। एसएसए के लिए समर्पित नियंत्रण केंद्र का काम नेत्रा प्रोजेक्ट के तहत किया जा रहा है, जिसे नेटवर्क फॉर स्पेस ऑब्जेक्ट ट्रैकिंग एंड एनालिसिस कहा जाता है। अंतरिक्ष में कई पुराने उपग्रहों, मलबे आदि की भीड़ हो रही है, यही वजह है कि नेत्रा परियोजना शुरू की गई थी।
क्या है नेत्रा परियोजना
अगस्त 2020 में शुरू की गई नेत्रा परियोजना उपग्रहों को अंतरिक्ष के मलबे और अंतरिक्ष के अन्य खतरों से बचाने के लिए एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली है। यह परियोजना भारत को कई अन्य अंतरिक्ष शक्तियों की तरह अंतरिक्ष स्थिति संबंधी जागरुकता के लिए कुछ क्षमताएं भी प्रदान करेगी। परियोजना की अनुमानित लागत 400 करोड़ रुपये है। इसरो नेटवर्क फॉर स्पेस ऑब्जेक्ट ट्रैकिंग एंड एनालिसिस (नेत्रा) परियोजना के तहत नए राडार एवं ऑप्टिकल टेलीस्कोप तैनात करके अपनी कक्षीय मलबे की ट्रैकिंग क्षमता का निर्माण कर रहा है। नेत्रा के तहत इसरो ने कनेक्टेड राडार, टेलीस्कोप, डेटा प्रोसेसिंग यूनिट एवं एक नियंत्रण केंद्र स्थापित करने की योजना बनाई है।
भारत के लिए क्यों अहम है यह परियोजना
यह परियोजना उपग्रह कार्यक्रम संचालित करने वाली एजेंसियों को अंतरिक्ष में मलबे के टुकड़ों के बारे में सावधान रखेगी। एक नए उपग्रह के प्रक्षेपण के समय अंतरिक्ष में किसी भी मलबे की स्थिति जानना बहुत महत्वपूर्ण है। इससे 10 सेमी. जितने छोटे आकार के पिंडों को 3,400 किमी. की सीमा तक एवं लगभग 2,000 किमी. की अंतरिक्ष कक्षा में खोज सकते हैं। किसी भी उपग्रह से मलबा की टक्कर होने पर तुरंत उसे नुकसान पहुंचाएगा क्योंकि सेंटीमीटर के आकार के टुकड़ों से भी टकराना उपग्रहों के लिए घातक हो सकता है। इससे उपग्रहों पर चलने वाली सेवाएं प्रभावित नहीं होंगी।
कैसे काम करेगा सिस्टम
नेत्रा स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस पृथ्वी की निचली कक्षा में उन एलईओ उपग्रहों की निगरानी करेगा जिनके पास रिमोट सेंसिंग विमान हैं। इसे पीन्या, बेंगलुरु में इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (इस्ट्रैक) परिसर में स्थापित किया गया है। यह नियंत्रण केंद्र भारत के भीतर सभी सर्व शिक्षा अभियान गतिविधियों के केंद्र के रूप में कार्य करेगा। यहां अंतरिक्ष वस्तुओं के लिए कक्षा निर्धारण और कैटलॉग निर्माण होगा। अंतरिक्ष का मलबा नष्ट करने के लिए कुछ प्रयोगशालाएं भी स्थापित की जाएंगी। एसएसए नियंत्रण केंद्र की स्थापना इसरो की क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो भारत के ‘आत्मनिर्भर’ होने का मार्ग प्रशस्त करता है।