बिहार के सभी मठ-मंदिर को अब राज्य धार्मिक न्यास परिषद में पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। इसके लिए सरकार ने 15 जुलाई तक की अवधि तय कर दी है। सभी जिला प्रशासन को इसे सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है। साथ में चेतावनी भी कि अगर तय समय तक पंजीकरण नहीं कराया जाएगा तो सरकार को विवश होकर अन्य विकल्प अपनाने पड़ सकते हैैं। राज्य में अभी साढ़े पांच हजार मंदिर-मठ निबंधित हैैं। फिर भी दो हजार 512 मंदिर और मठ ऐसे हैैं, जिनका पंजीकरण नहीं हो सका है। इनके पास 4,321.64 एकड़ भूमि है। सबसे ज्यादा वैशाली जिले में 438 मंदिर-मठ हैैं, जिनका पंजीकरण नहीं हुआ है।
मठ, मंदिर, न्यास और धर्मशालाओं को देना होगा अपनी संपत्ति का पूरा ब्योरा
विधि मंत्री प्रमोद कुमार ने बताया कि जिला प्रशासन को मंदिरों, मठों, न्यासों और धर्मशालाओं की संपत्तियों का ब्योरा दो हफ्ते के भीतर धार्मिक न्यास परिषद की वेबसाइट पर अपलोड करना होगा। इन्हें बिहार राज्य हिंदू धार्मिक ट्रस्ट अधिनियम-1950 के तहत पंजीकरण कराना होगा। उन्होंने दावा किया कि बिहार देश का पहला ऐसा राज्य है, जहां इस तरह का प्रयास किया जा रहा है। परिषद की वेबसाइट तैयार कर ली गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उद्घाटन करना है।
मंदिरों-मठों के पास 18 हजार एकड़ भूमि
प्रदेश में मंदिरों और मठों के पास 18 हजार 456.95 एकड़ जमीन है। अन्य मंदिरों के पंजीकरण के तुरंत बाद ढाई हजार मंदिरों और मठों की घेराबंदी की तैयारी है। राज्य सरकार को सभी मंदिरों एवं मठों के पंजीकरण का फैसला इसलिए करना पड़ा है कि कई मठों एवं मंदिरों की संपत्तियों पर अनधिकृत रूप से दावा किया जा रहा है। उनकी हजारों एकड़ भूमि पर माफियाओं की भी नजर है। कहीं-कहीं से ऐसी भी शिकायतें आ रही हैैं कि पुजारी और केयरटेकर ही संपत्ति को बेच रहे हैैं। राज्य सरकार ऐसे सभी मंठों-मंदिरों को कब्जे से मुक्त करना चाहती है।
सिर्फ तीन सौ मंदिर-मठ ही देते हैैं टैक्स
राज्य में निबंधित मंदिरों एवं मठों की संख्या साढ़े पांच हजार से ज्यादा है, लेकिन आश्चर्य है कि इनमें से सिर्फ तीन सौ ही कर देते हैैं। निबंधन के बाद उन्हें वार्षिक आय का चार प्रतिशत कर देना होता है। सबसे ज्यादा कर पटना के महावीर मंदिर से आता है। इसकी वार्षिक आय दस से 12 करोड़ रुपये है।