West Bengal (पश्चिम बंगाल) के गवर्नर जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सरकार के बीच तनातनी का नया मामला उभरकर सामने आया है। ताजा टकराव तब शुरू हुआ, जब राज्य कैबिनेट ने 26 मई को राज्यपाल के बजाय राज्य के सभी विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति (चांसलर) मुख्यमंत्री को माने जाने संबंधी विधेयक लाने का फैसला किया। यह पहली बार है कि राज्य सरकार ने राज्य के विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति (चांसलर) राज्यपाल को माने जाने के प्रोटोकॉल को तोड़ने के लिए इस तरह की पहल की है।
राज्यपाल की मंजूरी नहीं मिलने पर अध्यादेश लाने की तैयारी
सचिवालय में राज्य कैबिनेट की बैठक के बाद शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने कहा कि राज्य सरकार विधानसभा में एक विधेयक लाएगी, जिसमें प्रस्ताव होगा कि राज्य के विश्वविद्यालयों की कुलाधिपति मुख्यमंत्री होंगी, राज्यपाल नहीं।
उन्होंने कहा, “विधानसभा में पारित होने के बाद इसे राज्यपाल की सहमति के लिए भेजा जाएगा। यदि राज्यपाल विधेयक को मंजूरी देने से इनकार करते हैं, तो राज्य सरकार इस अभ्यास में बदलाव को लागू करने के लिए एक अध्यादेश लाएगी।”
यूनिवर्सिटी की स्वायत्तता को नियंत्रित करने का प्रयास
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता शमिक भट्टाचार्य ने कहा कि यह राज्य के विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता पर नियंत्रण करने का सीधा प्रयास है। उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री शुरू से ही राज्य को एक स्वतंत्र इकाई के रूप में चलाने की कोशिश कर रही थीं और इसलिए, उन्होंने ऐसा निर्णय लिया है जो पहले किसी राज्य सरकार ने नहीं किया है। यह परंपरा के खिलाफ है।” माकपा केंद्रीय समिति के सदस्य और विधानसभा में वाम के पूर्व नेता डॉ. सुजान चक्रवर्ती ने तर्क दिया कि इस पहल का उद्देश्य राज्य के विश्वविद्यालयों पर प्रत्यक्ष प्रशासनिक और राजनीतिक नियंत्रण रखना है।