Some traditions are according to faith. दुनिया के अलग-अलग समाजों में अलग-अलग किस्म की परंपराएं प्रचलित रहती हैं। कुछ परंपराएं लोगों की आस्था की वजह से जिंदा रहती हैं। ऐसी परंपराओं को आज के समय में कुछ लोग अच्छा कह सकते हैं तो कुछ लोग खराब, लेकिन जो है, उसे तो मानना ही पड़ेगा। बिहार के नालंदा जिले में एक ऐसा देवी मंदिर है, जहां नवरात्र के समय उस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। स्थानीय लोगों का यह मानना है कि यह परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है और आज तक सभी लोग मानते हैं। बता दें कि कल यानी 2 अप्रैल से नवरात्र का प्रारंभ हो रहा है।
यहां की महिलाएं बाहर से ही करेंगी मां आशापुरी के दर्शन
नालंदा का यह मंदिर आशापुरी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह घोसरावां गांव में है। इस मंदिर में शारदीय और चैत्र नवरात्र में महिलाओं का प्रवेश नहीं हो सकता है। 2 अप्रैल से शुरू हो रही चैत्र नवरात्र में महिलाएं बाहर से ही मां आशापुरी के दर्शन करेंगी। नवरात्र खत्म होने के बाद 10वीं से महिलाएं मंदिर के अंदर जाकर पूजा कर सकेंगी। बिहारशरीफ से 15 किमी दूर घोसरावां गांव में मां आशापुरी का प्राचीन मंदिर है। यहां नवरात्र के मौके पर तांत्रिक विधि से पूजा की जाती है।
पूर्वजों से चली आ रही परंपरा
पूर्वजों से चली आ रही परंपरा के अनुसार शारदीय नवरात्र के दौरान महिलाओं का मंदिर परिसर के साथ ही गर्भगृह में जाने की मनाही होती है। चैत्र नवरात्र में मंदिर में प्रवेश तो होता है, लेकिन गर्भगृह में जाने पर प्रतिबंध रहता है। पुजारी पुरेंद्र उपाध्याय बताते हैं कि पूर्वजों से यह परंपरा चली आ रही है, जिसे सभी लोग आज भी निष्ठा पूर्वक निभा रहे हैं।
मंदिर में मां दुर्गा की अष्टभुजी प्रतिमा
मां आशापुरी मंदिर अति प्राचीन है। मान्यता है कि यह मगध काल में बना है। मां दुर्गा के नौ रूपों में से एक सिद्धिदात्री स्वरूप में पूजा की जाती है। यहां मां दुर्गा की अष्टभुजी प्रतिमा स्थापित है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में सबसे पहले राजा जयपाल ने पूजा की थी।
मनोकामना पूर्ण होने पर दी जाती है बलि
हर मंगलवार को मां आशापुरी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। संतान प्राप्ति को भी लेकर दूर-दूर से श्रद्धालु मां भगवती की पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं। मां को भोग के रूप में नारियल और बताशा चढ़ता है। मनोकामना पूर्ण होने पर बलि भी दी जाती है।