Religion-Karma Spirituality and the story of Mahabharata : महाभारत का युद्ध द्वापर युगीन इतिहास की सबसे मार्मिक घटनाक्रम है। भगवान श्री कृष्ण ने तमाम श्रेष्ठ जनों के साथ मिलकर युद्ध को रोकने का अथक प्रयास किया था। पर नियति को कुछ और ही मंजूर था। जब अहंकार के सामने शांति का प्रयास विफल रहा तब युद्ध की घोषणा की गई। भगवान श्री कृष्ण पाण्डव के पक्ष में थे। अर्जुन ने अपने परिजनों को युद्धभूमि में देखकर उनके विरुद्ध हथियार उठाने से इंकार कर दिया। तब प्रभु ने उसे जीवन का वास्तविकता का बोध कराने के लिए गीता सुनाया। जो आज हिन्दुओं का पवित्र ग्रंथ है l यह युद्ध मार्गशीर्ष शुक्ल 14 वी की तिथि को प्रारम्भ हुआ था जो लगातार 18 दिनों तक चला था। इस युद्ध की समाप्ति अक्षय तृतीया को हुई थी।
पहला दिन- कौरवों के सामने पांडव हुए धराशायी
पांचजन्य के शंखनाद के युद्ध की शुरुआत हुई। कौरवों की सेना के सेनापति पितामह भीष्म थे। युद्ध के पहले दिन कौरव सेना पांडव पक्ष पर भारी था। उन्हें भारी हानि हुई थी। महाराज विराट नरेश के पुत्र उत्तर और श्वेत को वीरगति प्राप्त हुई। शल्य और भीष्म के साथ युद्ध में दोनों की मृत्यु हुई। भीष्म के आक्रमण में पांडवों के और भी कई बलशाली सैनिक मारे गए था। युद्ध के पहले दिन कौरवों के प्रचंड वेग के सामने पांडव धराशायी होगए ।
दूसरा दिन- भीम-अर्जुन ने भीष्म की सेना को रोके रखा
पहले दिन की क्षति के बाद भीम ने मोर्चा। संभाला। उसने हजारों कलिंग और निषाद को मार गिराया । आज भीष्म का लक्ष्य अर्जुन और श्रीकृष्ण थे। उन्हें कई बार घायल किया। परंतु आज अर्जुन ने भीष्म के वेग को रोके रखा। इस कारण दूसरे दिन पांडवों की सेना को अधिक नुकसान नहीं हुआ । द्रोणाचार्य का युद्ध धृष्टद्युम्न के साथ हुआ जिसमें गुरु द्रोणाचार्य ने उन्हें कई बार हराया।
तीसरा दिन- अर्जुन को हताश देख युद्ध में कूदे कृष्ण
तीसरे दिन युद्धभूमि में भीम पिता पुत्र कौरवों पर भारी थे। भीम और घटोत्कच ने दुर्योधन की सेना को युद्ध भूमि से भागने पर विवश किया। इस हार को देखते हुए भीष्म के आक्रमण से कौरव कमजोर हुए। उसने पांडवों का भीषण संहार किया। इसे रोकने के लिए श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भीष्म वध का वध करने को कहा, परंतु पितामह के सामने अर्जुन निरुत्साहित थे। वह युद्ध नहीं कर पा रहे थे। तब श्रीकृष्ण स्वयं ही भीष्म से युद्ध के लिए दौड़ पड़ते हैं। तब अर्जुन ने उन्हें भरोसा दिलाया कि अब वे परिवार के मोह से बाहर निकल कर पूरे उत्साह से युद्ध लड़ेंगे।
चौथा दिन- कौरव और पांडव के बीच भीषण युद्ध
महाभारत के चौथे दिन कौरव और पांडव के बीच भीषण युद्ध हुआ। इस दिन कौरवों की सेना अर्जुन को रोक नहीं पाई । भीम के सामने भी कौरव सेना असहाय हो गया। इसके बाद दुर्योधन ने अपनी गजसेना को भीम को मारने के लिए भेजी, लेकिन आज भी घटोत्कच के साथ मिलकर भीम ने उन सबको मार दिया। चौथे दिन भी भीष्म से अर्जुन और भीम का भयंकर युद्ध हुआ।
पांचवां दिन- द्रोण – सात्यकि व भीष्म से भीम- अर्जुन का युद्ध
युद्ध में कौरवों को कमजोर होता देख के भीष्म ने पांडव सेना पर काफी आक्रामक हो गए, उनके हमले से पांडवों में खलबली मच गई । सेना मनोबल कमजोर होता देख अर्जुन ने मोर्चा संभाला। भीष्म को रोकने के लिए अर्जुन और भीम ने उनसे युद्ध किया। उधर सात्यकि ने महारथी गुरु द्रोणाचार्य को रोके रखा। तब भीष्म ने स्थिति संभाली, उसने सात्यकि को युद्ध से भागने के लिए मजबूर कर दिया।
छठा दिन- भीष्म और पांचाल युद्ध
छठा दिन युद्धभूमि में कमजोर पाता देख दुर्योधन काफी क्रोधित था। इस दिन भी दोनों पक्षों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। दुर्योधन क्रोधित होता देख भीष्म उसे आश्वासन दिया। आज का भीष्म का था l उसने पांचाल की सेना का संहार किया ।
सातवां दिन- कमजोर हुई कौरवों को भीष्म ने संभाला
पांचाल की सेना के संहार के बाद सातवें दिन अर्जुन ने रणनीति बदली, आज वे कौरव सेना पर हावी हो जाते है। आज धृष्टद्युम्न ने दुर्योधन को युद्ध में हरा दिया और अर्जुन का पुत्र इरावान ने विन्द और अनुविन्द को हरा दिया। कौरवों को कमजोर होता देख दिन के अंत में भीष्म ने मोर्चा संभाला और पांडव सेना पर हावी हो गए।
आठवां दिन- भीम के आक्रमण से धृतराष्ट्र के 17 पुत्र मारे गए
आठवें दिन भी भीष्म का पराक्रम युद्ध भूमि मे देखते बन रहा था। उनके आक्रमण से पांडव सेना परास्त हो रही थीं। इसी दिन भीम ने धृतराष्ट्र के आठ पुत्रों का वध कर दिया। राक्षस अम्बलुष ने अर्जुन पुत्र इरावान का वध कर देता है। उधर घटोत्कच ने दुर्योधन को अपनी माया से प्रताड़ित करता रहा । उसके बाद भीष्म की आज्ञा से भगदत्त ने घटोत्कच, भीम, युधिष्ठिर व अन्य पांडव सैनिकों पर भीषण हमला कर उन्हें पीछे ढकेल दिया। इसी दिन युद्ध विराम घोषित होने के पूर्व भीम ने धृतराष्ट्र के नौ और पुत्रों का वध कर दिया ।
नवां दिन- भीष्म को रोकने के लिए श्री कृष्ण ने धारण किया सुदर्शन चक्र
युद्ध में पांडव सेना के हावी होते दुर्योधन बौखला गया। उसने भीष्म से कर्ण को युद्ध में लाने की बात कही है, तब भीष्म उसे आश्वसत करते हैं कि या तो श्रीकृष्ण को युद्ध में शस्त्र उठाने के लिए विवश कर देंगे या किसी एक पांडव का वध कर देंगे। इस दिन भीष्म पांडवों की सेना का अधिकांश भाग समाप्त कर देते हैं। युद्ध में पांडव सेना को कमजोर होता देख श्री कृष्ण ने भीष्म को रोकने के लिए समर में उतर गए। श्रीकृष्ण ने शस्त्र नहीं उठाने की प्रतिज्ञा ली थी। जिसे अपने प्रिय अर्जुन को बचाने के लिए तोड़ दिया और वे उन्होंने सुदर्शन चक्र उठा लिया । जब उसे लेकर भीष्म की तरफ बढ़े तब पितामह हाथ जोड़ कर शरणागत हो गए। उन्होंने कहा कि हे माधव हमारी प्रतिज्ञा पूरी हुई। हमने तुमसे शस्त्र उठवा लिया।
दसवां दिन- बाणों की शैय्या पर लेटे भीष्म पितामह
जब भीष्म के प्रचंड वेग के सामने पांडव टिक नहीं पाए। तब श्री कृष्ण ने इससे बाहर निकलने का तरीका निकाला। इस दिन श्रीकृष्ण के कहने पर पांडव भीष्म से ही उनकी मुत्यु का उपाय पूछते हैं। उसके बाद भीष्म के बताए उपाय के बाद अर्जुन ने शिखंडी को आगे करके भीष्म पर बाणों की बौछारें लगा दी। भीष्म बृहन्नला शिखंडी पर हमला नहीं कर सकते थे,। इसके बाद अर्जुन के बाणों से घायल भीष्म ने बाणों की शय्या पर लिटाने का आग्रह किया।
ग्याहरवां दिन- भीष्म का युद्ध भूमि छोड़ते ही कर्ण का पदार्पण
भीष्म युद्ध भूमि से बाहर होते ही कर्ण का पदार्पण हो जाता है। कर्ण के सलाह पर द्रोणाचार्य को सेनापति बनाया गया। दुर्योधन और शकुनि ने द्रोण से युधिष्ठिर को बंदी बना लेंने की बात की, जिससे युद्ध खत्म हो जाएगा। परंतु दुर्योधन की योजना अर्जुन ने पूरी नहीं होने दिया। कर्ण भी प्रचंड वेग से पांडव सेना का भारी संहार करता रहा।
बारहवां दिन- युधिष्ठिर को बंदी बनाने की योजना विफल
युधिष्ठिर को बंदी बनाने की योजना शकुनि और दुर्योधन ने बना लिया। परंतु दुर्योधन की योजना अर्जुन ने पूरी नहीं होने दी । एक रणनीति के तहत अर्जुन को युधिष्ठिर से काफी दूर भेजने में कामयाब हो जाते हैं, लेकिन अर्जुन को इसका आभास हुआ तब वह समय पर पहुंचकर युधिष्ठिर को बंदी बनने से बचा लेते हैं।
तेरहवां दिन- चक्रव्यूह में घेर कर अभिमन्यु का किया वध
इस दिन दुर्योधन अर्जुन से युद्ध करने के लिए राजा भगदत्त को भेजता है। भगदत्त काफी बलशाली योद्धा था, जो भीम को हरा देते हैं, अर्जुन के साथ युद्ध करते हैं। अर्जुन को हारते हुए देख श्रीकृष्ण ने भगदत्त के वैष्णवास्त्र को अपने ऊपर लेकर अर्जुन की रक्षा की । अर्जुन भगदत्त की आंखो की पट्टी तोड़ देता है, जिससे उसे दिखना बंद हो जाता है। अर्जुन इस अवसर का लाभ उठा उनका वध कर देता है। इसी दिन द्रोण और युधिष्ठिर ने चक्रव्यूह की रचना की ह। जिसे केवल अभिमन्यु तोड़ना जानता था, लेकिन निकलना नहीं जानता था। युधिष्ठिर भीम आदि को अभिमन्यु के साथ भेजता है, लेकिन चक्रव्यूह के द्वार पर जयद्रथ सभी को रोक देता है। केवल अभिमन्यु ही प्रवेश कर पाता है। वह अकेला ही सभी कौरवों से युद्ध करता है और मारा जाता है। पुत्र अभिमन्यु का अन्याय पूर्ण तरीके से वध हुआ देखकर अर्जुन अगले दिन जयद्रथ वध करने की प्रतिज्ञा ले लेता है और ऐसा न कर पाने पर अग्नि समाधि लेने को कह देता है।
चौदहवां दिन- अर्जुन ने किया जयद्रथ का वध
अर्जुन की अग्नि समाधि की प्रतिज्ञा वाली बात सुनकर कौरव जयद्रथ को बचाने योजना बनाते हैं। द्रोण जयद्रथ को बचाने के लिए उसे सेना के पिछले भाग मे छिपा देते है,। लेकिन श्रीकृष्ण इसे समझ गए समय से पहले माया से सूर्यास्त करा देते हैं। सूर्यास्त के कारण जयद्रथ बाहर आ जाता है और अर्जुन उसका वध कर देता है। इसी दिन युद्धभूमि मेँ द्रोण द्रुपद और विराट को मार देते हैं।
पंद्रहवां दिन – छल से धृष्टद्युम्न ने द्रोण का वध किया
भीष्म दिन पाण्डव छल से द्रोणाचार्य को अश्वत्थामा की मृत्यु का विश्वास दिला देते हैं, जिससे निराश हो द्रोण समाधि ले लेते हैं। इस दशा में धृष्टद्युम्न द्रोण का सिर काटकर वध कर देता है।
सोलहवां दिन- कर्ण बना कौरव सेनापति
गुरु द्रोणाचार्य के वध के बाद 16 वें दिन कर्ण को कौरव सेनापति बनाया जाता है। आज का दिन कर्ण का था। इस दिन वह पांडव सेना का भयंकर संहार करता है। कर्ण नकुल-सहदेव को हरा देता है, लेकिन कुंती को दिए वचन के कारण उन्हें मारता नहीं है। इसी बीच भीम दुःशासन का वध कर देता है और उसकी छाती का रक्त पीता है।
सत्रहवां दिन – अर्जुन के हांथों कर्ण का वध
युद्ध अब अपने अंतिम पड़ाव में पहुच गया था। सत्रहवें दिन कर्ण भीम और युधिष्ठिर को हरा देता है, यहां भी कुंती को दिए वचन के कारण उन्हें मारता नहीं है। युद्ध में कर्ण के रथ का पहिया भूमि में धंस जाता है, तब कर्ण पहिया निकालने के लिए नीचे उतरता है और उसी समय श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन कर्ण का वध कर देता है। फिर युद्धभूमि में ही शल्य प्रधान सेनापति घोषित हुए। जिसे युधिष्ठिर मार देता है।
अठाहरवां दिन- भीम के साथ युद्ध में दुर्योधन की मौत
इस दिन युद्ध भूमि में कौरव पक्ष वीर विहीन हो चुका था। भीम दुर्योधन के बचे हुए सभी भाइयों को मार देता है। सहदेव शकुनि को मार देता है। अंतिम मे पराजय मानकर दुर्योधन एक तालाब मे छिप जाता है, लेकिन पांडव द्वारा ललकारे जाने पर वह भीम से गदा युद्ध के लिए बाहर आता है। तब भीम छल से दुर्योधन की जंघा पर प्रहार करता है, इससे दुर्योधन की मृत्यु हो जाती है। इस तरह पांडव विजयी होते हैं।