Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, Dharm adhyatm : विभुतियों का जन्म कठिन परिस्थितियों में होता है। परिस्थितियों का आकलन कर जो राष्ट्र और समाज के प्रति अपनी कर्मठता को उजागर करता है वही कृष्ण है। राष्ट्र और समाज की दुर्दशा को देखकर कृष्ण ने समाज में नव चेतना, संरक्षण और संवर्धन के लिए जो काम किया वह धर्म है। राम ने राष्ट्र को जननी यानि जन्म देने वाली मां कहा तो कृष्ण ने राष्ट्र रक्षा को धर्म कहा है। दोनों राष्ट्र वाद के प्रतीक हैं। द्वापर में आज के जैसी विषम परिस्थिति भारत की थी। राजगीर में जरासंध सोलह हजार राजाओं को, कामरूप में भोंमासुर सोलह हजार बेटियों को और मथुरा में कंस अपने पिता,जीजा तथा बहन को कैद कर रखा था। पशुओं का काम मनुष्य से लिया जा रहा था। झारखंड का राजा अपने को बासुदेव ईश्वर घोषित कर दिया था। गोवंश और नारियों का अपरहण हो रहा था पर कोई राजा इस अधर्मी के लिए आवाज नहीं उठा सकता था। इन्हीं परिस्थितियों में कृष्ण को कारागार में जन्म लेना पड़ा, जहां बच्चा रोए तो मारा जाए और न रोए तो विकलांग हो जाए।
सारे राजा के धर्मज्ञ पुत्रों को राजसत्ता सौप दिया
कृष्ण ने समाजिक राजनीतिक अराजकता का अनुभव किया कि राजनीति धर्म विहीन हो गयी है। इसलिए राजा, सगे सम्बन्धी और बेटियां बन्दी बनाईं गयी हैं। कृष्ण ने धर्म की स्थापना राजसत्ता से करने की ठानी और स्वयं युद्ध न कर पाण्डवों से कंधार से म्यानमार तक के राज्यों को जीत लिया और सारे राजा के धर्मज्ञ पुत्रों को राजसत्ता सौप दिया, इसलिए आज भी राजनीति में धर्म की आवश्यकता है, राजनीति का प्राण धर्म है। उपर्युक्त बातें पं रामदेव पाण्डेय ने राम-जानकी मन्दिर बरियातू में पांचवें दिन भागवत के कथा में कहीं। यह कथा अगले 12 अगस्त तक चलेगी।