How else did the Jyotirlinga of Lord Shiva in Gujarat get the name Somnath?, dharm, religious, Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, jyotish Shastra, dharmik totke, dharm adhyatm : शापमुक्त होने के उपरांत चंद्रदेव ने अन्य देवताओं के साथ मिल कर मृत्युंजय भगवान से प्रार्थना की, कि आप माता पार्वतीजी के साथ सदा के लिए प्राणियों के उद्धारार्थ यहां निवास करें। भगवान शिव उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार करके ज्योतिर्लिंग के रूप में माता पार्वती जी के साथ तभी से यहां रहने लगे। भगवान श्री सोमनाथ का मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ मंदिर गुजरात राज्य के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे स्थित है। पहले यह क्षेत्र प्रभास क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। यहीं भगवान श्रीकृष्ण ने जरा नामक व्याध के बाण को निमित्त बना कर अपनी लीला का संवरण किया था।
सोमनाथ मंदिर के ज्योतिर्लिंग का पुराणों में भी वर्णन
सोमनाथ मंदिर के ज्योतिर्लिंग की कथा पुराणों में भी मिलती है। पुराणों में उल्लिखित पहली कथा के मुताबिक दक्ष प्रजापति की 27 कन्याएं थीं। उन सभी का विवाह चंद्र देवता के साथ हुआ था। किन्तु, चंद्रमा का समस्त अनुराग उनमें एक केवल रोहिणी के प्रति ही रहता था। उनके इस कार्य से दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याओं को बहुत कष्ट होता था। उन्होंने अपनी यह व्यथा कथा अपने पिता को सुनायी। दक्ष प्रजापति ने इसके लिए चंद्र देव को बहुत प्रकार से समझाया। किन्तु रोहिणी के वशीभूत उनके हृदय पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंततः दक्ष ने क्रुद्ध होकर उन्हें ‘क्षयी’ हो जाने का शाप दे दिया। इस शाप के कारण चंद्रदेव तत्काल क्षयग्रस्त हो गये। उनके क्षयग्रस्त होते ही पृथ्वी पर सुधा-शीतलता-वर्षण का उनका सारा कार्य रुक गया। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गयी। चंद्रमा भी बहुत दुःखी और चिंतित थे। उनकी प्रार्थना सुन कर इन्द्र आदि देवता तथा वशिष्ठ आदि ऋषिगण उनके उद्धार के लिए पितामह ब्रह्माजी के पास गये। सारी बातों को सुन कर ब्रह्माजी ने कहा, ‘चंद्रमा अपने शाप विमोचन के लिए अन्य देवों के साथ पवित्र प्रभास क्षेत्र में जाकर मृत्युंजय भगवान की आराधना करें। उनकी कृपा से अवश्य ही इनका शाप नष्ट हो जायेगा और ये रोगमुक्त हो जायेंगे।
चंद्रदेव ने दस करोड़ महामृत्युंजय मंत्र का जप किया
उनके कथनानुसार चंद्रदेव ने मृत्युंजय भगवान की आराधना का सारा कार्य पूरा किया। उन्होंने घोर तपस्या करते हुए दस करोड़ महामृत्युंजय मंत्र का जप किया। इससे प्रसन्न होकर मृत्युंजय- भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वर प्रदान किया। उन्होंने कहा- चंद्रदेव ! तुम शोक न करो। मेरे वर से तुम्हारा शाप मोचन तो होगा ही, साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जायेगी। कृष्णपक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी, किंतु पुनः शुक्ल पक्ष में उसी क्रम से तुम्हारी एक-एक कला बढ़ जाया करेगी। इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा। चंद्रमा को मिलनेवाले पितामह ब्रह्माजी के इस वरदान से सारे लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे। सुधाकर चंद्रदेव पुनः दसों दिशाओं में सुधा वर्षण का कार्य पूर्व की भांति करने लगे। शापमुक्त होने के उपरांत चंद्रदेव ने अन्य देवताओं के साथ मिल कर मृत्युंजय भगवान से प्रार्थना की, कि आप माता पार्वती जी के साथ सदा के लिए प्राणियों के उद्धारर्थ यहां निवास करें। भगवान शिव उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार करके ज्योतिर्लिंग के रूप में माता पार्वती जी के साथ तभी से यहां रहने लगे।
चंद्रमा ने भगवान शिव को ही अपना नाथ माना
पावन प्रभास क्षेत्र में स्थित इस सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कन्द पुराण आदि में विस्तार से बतायी गयी है। चंद्रमा का एक नाम सोम भी है। उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ मान कर यहां तपस्या की थी। अतः इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है। इसके दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म जन्मांतर के सारे पालक और दुष्कृत्य विनष्ट हो जाते हैं। वे भगवान शिव और माता पार्वती की अक्षय कृपा का पात्र बन जाते हैं। मोक्ष का मार्ग उनके लिए सहज ही सुलभ हो जाता है। उनके लौकिक-पारलौकिक सभी कृत्य स्वयमेव, अनायास सफल हो जाते हैं।