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Dharm adhyatm : मैहर माता के दर्शन के लिए भी खूब आते हैं श्रद्धालु, लेकिन रात में यहां कोई नहीं रुकता। जानना नहीं चाहेंगे क्यों…?

Dharm adhyatm : मैहर माता के दर्शन के लिए भी खूब आते हैं श्रद्धालु, लेकिन रात में यहां कोई नहीं रुकता। जानना नहीं चाहेंगे क्यों…?

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Maihar wali Mai ka Rahasya, Maihar Devi Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, Dharm- adhyatm, religious : यूं तो शरीर को भी भगवान का मंदिर कहा जाता है, लेकिन उन स्थानों का विशेष महत्त्व है, जहां परमात्मा की किसी शक्ति की उत्पत्ति हुई। ऐसे स्थानों को तीर्थ कहा जाता है। क्या आपने ऐसे मंदिर के बारे में सुना है, जहां रात 02 से 05 बजे के बीच रुकने से मौत हो सकती है? मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित मैहर माता मंदिर के बारे में श्रद्धालुओं का यही मानना है। कहते हैं, वहां इस दौरान मंदिर में देर रात कोई नहीं रुकता ।

मैहर नाम क्यों पड़ा

दरअसल, मध्य प्रदेश का एक जिला है सतना। इस जिले में ही अवस्थित है ‘मैहर देवी’ का मंदिर। भले ही इसकी गिनती 52 शक्तिपीठों में नहीं की जाती हो, लेकिन इसका महत्त्व भारत, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश में स्थित अन्य शक्तिपीठों जैसी ही है। मैहर नाम को लेकर जो मान्यताएं हैं, उनके अनुसार जब भगवान शिव सती का पार्थिव शरीर लेकर तांडव कर रहे थे, तब पार्वती जी का हार यहीं गिर गया था। मैहर (माई का हार) इसी कारण यहां का नाम मैहर पड़ा। मंदिर में देवी-देवता के दर्शन करने और मन्नत मांगने का रिवाज शायद उतना ही पुराना है, जितना मनुष्य का अज्ञात इतिहास।

श्रद्धालुओं को चढ़नी होती हैं 1063 सीढ़ियां

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यहां मां शारदा पर्वत पर विराजमान हैं। इनके दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को 01 हजार 63 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। कहा जाता है कि हर सीढ़ी चढ़ते हुए मां का स्मरण करने पर वह भक्त की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। मंदिर में एक प्राचीन शिलालेख भी लगा हुआ है। यहां भगवान नृसिंह की प्राचीन मूर्ति विराजमान है, जिसे 502 ईसा पूर्व में लगवाया गया था। शारदा देवी का मंदिर सिर्फ आस्था और धर्म की दृष्टि से ही खास नहीं है। इस मंदिर का अपना ऐतिहासिक महत्त्व भी है। माता शारदा मां की मूर्ति की स्थापना विक्रम संवत 559 को की गयी थी। मूर्ति पर देवनागिरी लिपि में शिलालेख भी अंकित है। इसमें बताया गया है कि सरस्वती के पुत्र दामोदर ही कलियुग के व्यास मुनि कहे जायेंगे।

साल 1922 में पशुओं की बलि पर लगा था प्रतिबंध

दुनिया के जाने-माने इतिहासकार ए. कनिंग्घम ने इस मंदिर पर विस्तार से शोध किया है। इस मंदिर में प्राचीन काल से ही बलि देने की प्रथा चली आ रही थी। लेकिन, 1922 में सतना के राजा ब्रजनाथ जूदेव ने पशु बलि को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया। कहते हैं, मां हमेशा ऊंचे स्थानों पर विराजमान होती हैं। उत्तर में जैसे लोग मां दुर्गा के दर्शन के लिए पहाड़ों को पार करते हुए वैष्णो देवी तक पहुंचते हैं, ठीक उसी तरह मध्य प्रदेश के सतना जिले में भी माता के दर्शन करने आते हैं। सतना जिले की मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी का मंदिर कहा जाता है। मैहर का सम्बन्ध है मां का हार। त्रिकूट पर्वत पर माता शारदा देवी का वास है। पर्वत की चोटी के मध्य में ही शारदा माता का मंदिर है। पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है। इसी पर्वत की चोटी पर माता के साथ ही श्री काल भैरवी, भगवान, हनुमान जी, देवी काली, दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेषनाग, फूलमति माता, ब्रह्म देव और जालापा देवी की पूजा की जाती है।

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