dharm, religious, Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, jyotish Shastra, dharmik totke, dharm adhyatm : पूजा-पाठ के दौरान भगवान को भोग अर्पित किए जाने की बात नई नहीं है, भोग लगाने के भी कुछ नियम होते हैं, जिसका पालन करना जरूरी होता है। तभी आपकी पूजा सफल होती है और इसका फल प्राप्त होता है। अगर आप भोग लगाने के स्थापित नियमों की अवहेलना करते हैं तो घर-परिवार में कई तरह की नकारात्मक प्रभाव हावी हो जाते हैं। हिंदू धर्म में प्रायः सभी घरों में प्रतिदिन पूजा-पाठ किए जाते हैं। लोग मन की शांति, सकारात्मकता, सुख-समृद्धि और सौभाग्य प्राप्ति के लिए पूजा करते हैं। पूजा के क्रम में भगवान को तिलक लगाने, पाठ या मंत्र पढ़ने, भोग लगाने से लेकर आरती करने तक के नियम होते हैं। जो व्यक्ति नियमों का पालन करते हुए पूजा-पाठ करता है, भगवान उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं, लेकिन यदि आप गलत विधि से पूजा करते हैं तो इससे देवी-देवता रुष्ट भी हो सकते हैं।
सोना, चांदी, पीतल, मिट्टी के पात्र में ही भोग अर्पित करें
कुछ लोग भगवान को भोग लगाने के बाद प्रसाद वहीं छोड़ देते हैं, जो गलत है। इससे आपको भगवान की कृपा प्राप्त नहीं होगी। साथ ही इसका नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है। भगवान को प्रसाद कभी भी जमीन पर न चढ़ाएं। साथ ही सीधे भगवान के पास भी न रखें। प्रसाद को हमेशा सोना, चांदी, पीतल या मिट्टी धातु के पात्र में ही चढ़ाना चाहिए। इन्हें सनातन धर्म में पवित्र माना गया है। इसके अलावा आप केले या पान के पत्ते पर भी प्रसाद चढ़ा सकते हैं।
विश्वक्सेन, चण्डेश्वर, चण्डांशु व चांडाली घेर लेती हैं
भगवान को भोग लगाने के बाद भोग को वहीं कदापि न छोड़ें। इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पूजा संपन्न होने के बाद तुंरत प्रसाद को भगवान के पास से उठा लें। प्रसाद छोड़ना शुभ नहीं होता है। इससे भगवान रुष्ट हो सकते हैं। मान्यता है कि यदि आप भगवान के पास प्रसाद को छोड़ देते हैं तो इससे विश्वक्सेन, चण्डेश्वर, चण्डांशु और चांडाली जैसी नकारात्मक शक्तियां आ सकती हैं।
भगवान को लगा भोग पहले खुद लें, फिर बांटें दूसरों में
भगवान को लगाए हुए भोग को पूजा के बाद उठाकर इसे परिवार और दूसरे लोगों में बांटना चाहिए। यदि आपका व्रत नहीं है तो आप भी प्रसाद को ग्रहण करें। यह भोग और ईश्वर के प्रति सम्मान व्यक्त करना होता है। इससे भगवान भी प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं। हमेशा फल और मिष्ठान का ही भोग लगाएं।